सीएम धामी के सिर पर फूटेगा हार का ठीकरा, मुश्किलें बढ़नी तय
GUNANAND JAKHMOLA, SENIOR JOURNALIST ( UTTARAKHAND)
- थैंक्यू जनता, आपने बता दिया उत्तराखंड किसी की जागीर नहीं है।
- भंडारी और भडाना को सिखाया बहुत ही अच्छा सबक
बदरीनाथ और मंगलौर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा का सत्ताबल, धनबल और बाहुबल काम नहीं आया। सीएम धामी दोनों सीटों पर धड़ाम हो गये। बदरीनाथ सीट पर दलबदलू राजेंद्र भंडारी 5224 मतों के भारी अंतर से हार गये। उन्हें 22937 वोट मिले और लखपत बुटोला को 28161 वोट मिले। साफ है कि भाजपा के परम्परागत वोटरों ने भी राजेंद्र भंडारी को वोट नहीं दिया। राजेंद्र भंडारी भाजपा में भितरघाट के जबरदस्त शिकार हो गये। राजेंद्र भंडारी ने जिस तरह से बिना कपड़े बदले दल बदल दिया और जनता को धोखा दिया, उससे साफ संकेत दिया कि भंडारी और भाजपा जनता को अपनी जेब में रखे नोट समझते हैं कि जैसा मर्जी इस्तेमाल कर दो।
मजेदार बात यह है कि भाजपा अध्यक्ष महेंद्र भट्ट इस बार रोए नहीं। जिस तरह से आंसू बहाकर भट्ट ने अनिल बलूनी के लिए वोट मांगे, भंडारी के लिए नहीं मांगे। साफ है कि भाजपाई स्वीकर ही नहीं कर सके कि वर्षों भाजपा को गाली देने वाला भंडारी भाजपा में शामिल है और उनके लिए वोट मांग रहा है। जनता ने भी साथ नहीं दिया और भंडारी के साथ भितरघात भी हुआ। भाजपा के कार्यकर्ता भंडारी के लिए बाहर निकले ही नहीं।
राजेंद्र भंडारी को समझना होगा कि जिस अनिल बलूनी के लिए उन्होंने दल बदल दिया, उस अनिल बलूनी ने दिल्ली से एक वीडियो बनाया और उनके समर्थन में वोट मांगे। सब जानते हैं कि अनिल बलूनी को मोदी गुणगान के कारण लोकसभा का टिकट मिला और जीत भी मोदी के नाम से ही मिली। जनता से मांगे गये समर्थन में अनिल बलूनी ने जो बातें बदरीनाथ के बारे में कही, जो चिन्ता जतायी, उसमें से एक भी मुद्दा उन्होंने मानसून सत्र में संसद में नहीं उठाया। उस वीडियो से यह संदेश गया कि अनिल बलूनी उनके लिए महज खानापूर्ति कर रहे हैं। भाजपा की एक लॉबी राजेंद्र भंडारी के विधायक बनने के समर्थन में थी ही नहीं।
उधर, मंगलौर से भाजपा ने पत्थर खनन व्यापारी करतार भड़ाना को चुनाव में उतारा तो कांग्रेस ने जनता के बीच सीएम धामी के खनन प्रेमी होने की बात को मुद्दा बनाया। काजी वहां से पहले से ही मजबूत था। धामी कह सकते हैं कि भाजपा की सीट नहीं थी, लेकिन सच तो यही है कि आयातित पत्थर कारोबारी को टिकट किस आधार पर दिया। क्या भाजपा में नेताओं का अकाल पड़ गया कि बदरीनाथ पर कल शामिल हुए भंडारी और मंगलौर से आयातित भड़ाना को टिकट देना पड़ा।
बदरीनाथ की हार का ठीकरा केवल प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के ही नहीं बल्कि सीएम धामी के सिर भी फूटेगा। दोनों सीटों में हार से सीएम धामी की फजीहत हो गयी है। महेंद्र भट्ट को प्रदेश अध्यक्ष से हटना तय ही है। अब तक तो रमेश पोखरियाल निशंक अपना राजनीतिक करियर बचाने के लिए प्रदेश अध्यक्ष की होड़ में थे, लेकिन अब वह सीएम धामी के लिए भी मुसीबत बन सकते हैं। सीएम धामी को लेकर पहले ही यह पार्टी में गुटबाजी है। मंगलौर और बदरीनाथ चुनाव में हार से उनकी मुश्किलें और बढ़ जाएंगी।
बहरहाल, जो भी हो, उपचुनाव में कांग्रेस नहीं, जनता जीती है। जनता ने सीएम धामी और भाजपा हाईकमान को मजबूत संदेश दिया है कि उत्तराखंड किसी की जागीर नहीं है। थैंक्यू जनता।