साहित्यिक संगोष्ठी का दिल्ली स्थित गढ़वाल भवन के अलकनंदा सभागार में आयोजन

हींग लगे न फिटकरी, रंग भी चोखा होये, की कहावत को चरितार्थ करते हुए मासिक साहित्यिक संगोष्ठियों में साहित्यानुरागियों का लगातार विश्वास बढ़ता जा रहा है। वजह है कि इन आयोजनों में साहित्यकारों की नई प्रकाशित कृतियों के विमोचन के लिए एक नया प्लेटफॉर्म विकसित हुआ है। साहित्यिक संगोष्ठी के जिस माह में पुस्तक का विमोचन होता है, उसके अगले ही माह की साहित्यिक संगोष्ठी में गहन परिचर्चा होती है। इस तरह से संगोष्ठी लेखक और पाठक के बीच सीधे संवाद के जरिए एक सेतु का काम करती है।
इसी संदर्भ में इस बार दो साहित्यकारों, श्री संदीप गढ़वाली के गढ़वाली व्यंग्यात्मक काव्य संग्रह “घचाक” और डॉ रामेश्वरी नादान की दो हिंदी पुस्तकों- “अनचाहा मेहमान कैंसर” और “सिंदूर” का भव्य आयोजन हुआ।
साहित्यिक संगोष्ठी रक्षाबंधन के पावन पर्व पर स्थापित हुई ‘श्री लगुळि’ की छत्रछाया में साहित्यकार श्री वीरेन्द्र जुयाल ‘उपिरि’ के सांस्कृतिक मंत्रोच्चारण के साथ विधिवत शुरु हुई। साहित्यिक संगोष्ठी तीन चरणों में सम्पन्न हुई। पहले चरण में गुन्नू अर शैलांचली (सुशील बुड़ाकोटी ‘शैलांचली’) की गत माह में विमोचित काव्य कृति ‘कला अर कविता’ पर सार्थक परिचर्चा हुई, जिसमें युगराज सिंह रावत, दीवान सिंह नेगी, संदीप गढ़वाली, दीन दयाल बन्दूणी ‘दीन’, जगमोहन सिंह रावत ‘जगमोरा’, उदय ममगाईं राठी, जबर सिंह कैंतुरा, विमल सजवाण ने पुस्तक पर अपने सारगर्भित समीक्षात्मक विचार रखे।
दूसरे चरण में सांस्कृतिक पंच मेवा, नारियल रोट भेलिकेक के अठ्वाड़ महोत्सव के साथ पुस्तकों का सफल विमोचन हुआ। इस अवसर पर पजलकार ‘जगमोरा’ द्वारा एक साहित्यिक संकल्प की उद्घोषणा की गई कि उन्हें जब कभी कोई साहित्यिक मानदेय राशि प्राप्त होगी, वे उस राशि को साहित्य सेवाओं पर समर्पित करेंगे।
तीसरे चरण में उपस्थित कवियों का काव्य पाठ हुआ, जिसमें गिरीश चन्द्र बिष्ट हंसमुख, बबीता गौतम, उदय ममगाईं ‘राठी’, सुभाष गुसाईं, खजान दत्त शर्मा, सविता गुसाईं, सागर रावत पहाड़ी, रमेश कांडपाल, गोविंद राम पोखरियाल ‘साथी’, डॉ कुसुम भट्ट, डॉ सुशील सेमवाल, श्याम सुंदर सिंह कड़ाकोटी, कैलाश धस्माना, डॉ हरेंद्र असवाल, शशि बडोला, चंदन प्रेमी, राजेन्द्र सिंह रावत, सतीश रावत, विमल सजवाण, रोशन लाल ‘हिंद कवि’, दीन दयाल बन्दूणी ‘दीन’, दीवान सिंह नेगी, जबर सिंह कैंतुरा, डॉ रामेश्वरी नादान, संदीप गढ़वाली, वीरेंद्र जुयाल ‘उपिरि’, नीरज बवाड़ी, पृथ्वी सिंह केदारखंडी, सुशील बुड़ाकोटी ‘शैलांचली’, गिरधारी सिंह रावत, ओम प्रकाश पोखरियाल, सुल्तान सिंह तोमर आदि ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया।
डॉ बिहारी लाल जलंधरी, सुनील नेगी, पदम सिंह, यशपाल असवाल, विश्वेश्वर प्रसाद सिल्सवाल, रमेश हितैषी, पवन गुसाईं, शिवचरण सिंह रावत, इंद्रजीत सिंह रावत, अनिल कुमार पंत, कमला रावत अरूण नेगी, संतोषी, बबीता सुंद्रियाल, अंजली घनशाला, अनीता जुगरान, नितिन उनियाल, सुंदरमणी, विजय गुसाईं, हरीश पोखरियाल, नरेंद्र सिंह, सर्वेश्वर बिष्ट, सूरज राज नेगी, बृजमोहन सेमवाल, संतोष बिष्ट, त्रिलोक सिंह कड़ाकोटी, सुधांशु थपलियाल, किशन सिंह गुसाईं, निर्मल सिंह, वी एस नेगी, जगत सिंह असवाल, नीलू सती, धर्मेन्द्र पंचूरी, डॉ एस एन, बसलियाल, धीरेन्द्र सिंह बर्त्वाल, विकास नैथानी आदि साहित्य प्रेमियों की गरिमामय उपस्थिति रही।
कार्यक्रम के सफल आयोजन पर गढ़वाल हितैषणी सभा, दिल्ली के महासचिव पवन मैठाणी जी ने साहित्यिक संगोष्ठी की परिकल्पना की भूरी भूरी प्रशंसा की और भविष्य में हर प्रकार के सहयोग का आश्वासन दिया। आभार वक्तव्य संदीप गढ़वाली के सुपुत्र मास्टर रुद्र घनशाला ने गढ़वाली भाषा में बोलकर सब का मन मोह लिया। मंच का संचालन वीरेंद्र जुयाल ‘उपिरि’ ने किया।
आगामी साहित्यिक संगोष्ठी में डॉ पृथ्वी सिंह केदारखंडी की दो पुस्तकों “प्राकृतिक शिक्षा के आयाम” एवं हिंदी काव्य संग्रह “वेदना हुई प्रखर” का विमोचन होना निमित्त है।
संगोष्ठी के सफल आयोजन पर धन्यवाद प्रस्ताव सहित जगमोहन सिंह रावत ‘जगमोरा’ ने अपने उद्बोधन में कहा – मेरा मानना है कि हर व्यक्ति के अंदर साहित्यकार जीवंत होता है, उसे जागृत करने की आवश्यकता होती है। साहित्य लेखन के लिए कोई भी आयु बाधक नहीं होती। मैं भी स्वयं सेवानिवृत्ति के बाद साहित्य लेखन में सक्रिय हुआ हूं। संगोष्ठी भाषाई क्षेत्रियता इत्यादि से मुक्त हों।
जबर सिंह कैंतुरा








