संस्कृति-
राम तेरी गंगा मैली हो गई (ललित लेख)
पार्थसारथि थपलियाल
जब से चारधाम यात्रा खुली तब से ऋषिकेश से चारधाम तक चर्चाएं ही चर्चाएं। चर्चा उनकी भी है जिनकी होनी ही चाहिए। उनकी भी है जिनकी नही होनी चाहिए। अब भला कुत्ते के किस पुरखे का पिंडदान करना था कि देवभूमि में उसे स्थान स्थान पर तीन पग ज़मीन बार बार देखनी पड़ी। बात तो यह भी है कि इधर चारधाम यात्रा उधर संस्कृति मंत्री दुबई यात्रा पर। यात्री ऋषिकेश में परेशान।
किस से कहें और कौन सुने, सुने तो समझे नाहि
कहना, सुनना समझना सब मन के मन ही माहि।।
मंत्री होते तो बात कुछ और होती।…हाँ, लेकिन सोचने की बात तो यह है मंत्री भी तो इंसान हैं, उनकी भी तो इच्छा होती है। भारत के बॉलीवुड के बुझे सितारे तो मुम्बई में कम और दुबई में ज्यादा दिखाई देते हैं। फिर मंत्री अगर जाएगा तो राज्य के हित में कुछ न कुछ तो लाएगा ही। यात्राओं से हमारे संबंध भी गहरे होते हैं। बात तो यह भी है कि मंत्री होने की बात कुछ अलग होती है।उनकी जुबान में रौब होता है। ऐसा रौब मैंने सपा सरकार में मंत्री रहे आज़म खान की रामपुर की एक रैली में 2019 में दिए भाषण में पाया था। वो भाषण शायद आपको याद होगा- “ये कलेक्टर फ्लेक्टर तनखैया है। इनसे डरना मत”। अभी वे उत्तर प्रदेश विधान सभा मे विधायक हैं। हाल ही में करीब 800 दिनों बाद सीतापुर से रामपुर पहुचे हैं। वक्त वक्त की बात है।
बात चर्चा की थी। अब ऋषिकेश की एक ऑफिसर की ही जानिए जो इस यात्रा सीजन में इन दिनों बड़ी चर्चा है। चारधाम यात्रा शुरू और ऑफिसर छुट्टी पर। भई, काम तो किसी के भी कभी भी आ सकता है अफसर भी तो प्राणी है। वह भी सामाजिक प्राणी। यात्राएं तो हर साल आती जाती हैं। लोग अक्सर बात करते हैं उत्तराखंड में कलेक्टर रहे मंगेश घिल्डियाल की। बात तो दीपक रावत और आशीष चौहान की भी होती है। पलक पाँवड़े पर बिठा देते हैं उनके लिए। जिन्हें नौकरी सेवा करने का अवसर लगती है वेखुद भी सुखी रहते हैं और दूसरों के सुखी हिने के कारक बनते हैं। ऐसे अधिकारियों के लिए लोक सेवा ही चारधाम यात्रा है। किसी शायर ने ठीक कहा-
खुदा हमको ऐसी खुदाई न दे,
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे।
इसे देव भूमि की यात्रा कहूँ, या गोवा का पर्यटन? समझ से बाहर है। इसे 1985 में राज कपूर द्वारा बनाई गई फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली हो गई से। आपको उस फिल्म की हिरोइन मंदाकिनी का झीने वस्त्र में स्नान करने का सीन याद होगा। इस फ़िल्म में एक गाना वीणा तिवारी का गाया कुमाउनी गीत की तर्ज पर भी है-
हुश्न पहाड़ों का.. क्या कहने बारों महीने यहाँ मौसम जाडों का…( छाना बिलोरी का झन पिया बोज्यु लगला बिलोरी का घाम…) सनातन संस्कृति की पतित पावनी माँ गंगा की हालत रिवर राफ्टिंग के धंधे ने हीरोइन मंदाकिनी जैसे कर दी है। इस धंधे में वे तत्व शामिल हो गए हैं जो गंगाजी के निकट नही होने चाहिए। ऋषिकेश के निकट इन्होंने सड़क का जो अतिक्रमण किया है उससे बड़े बड़े जाम लग रहे हैं। राफ्टिंग की आड़ में शराब, और शबाब के साथ कई अनैतिक धंधे भी बढ़े हैं।
चारधाम यात्रा को देवभूमि “तीर्थ यात्रा का थीम” देने की बजाय बॉलीवुड जैसा माहौल बढ़ गया है। तीर्थ यात्री की बजाय सेल्फी यात्री ज्यादा नज़र आते हैं। किसी ज़माने में हरि हर गंगे, मातु गंगे के उद्घोष यात्रियों के मुख से सुनाई देते थे। जय बदरी विशाल या जय बाबा केदार की ध्वनियां सुनाई देती थी। लोग अपने बूढ़े बुजुर्गों को कंधों पर बिठा कर ले जाते थे। ये अब चर्चा के विषय नही रहे। अब कुत्ते को चारधाम यात्रा कंधे में कराई जा रही है। जिन लोगों ने सनातन संस्कृति को नही जाना वे तीर्थों की पवित्रता को क्या जानेंगे। बदरीनाथ-केदारनाथ से संबंधित तीर्थ पुरोहितों को तीर्थों पर मनमानेपन को रोकने के लिए कुछ तो करना होगा। गढ़वाली कहावत है- दिवतों क ही भरोसू नि रैण थुड़ा गात भी हिलांण पड़द। अर्थात देवताओं के भरोसे नही रहना, (देवता का भाव आने पर) कुछ अपना शरीर भी हिलाना पड़ता है।
सतोपंत से निकली अलकनंदा और गंगोत्री से निकली भागीरथी देवप्रयाग के संगम पर गंगा हो जाती है।
यह कलकल छलछल बहती क्या कहती गंगा धारा
युग युग से बहता आता यह पुण्य प्रवाह हमारा।।
ये सनातन संस्कृति है, गंगा पापनाशिनी है, सुरसरी है इसे हम सम्मान देना सीखें, नही तो हम मंदाकिनी नाम रखकर केवल नौटंकी कर रहे होंगे –
राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते धोते।।