संसदीय गतिरोध प्रजातांत्रिक पद्दति में अवरोधक ?
प्रो. नीलम महाजन सिंह
संसद के शीतकालीन अधिवेशन -2024, में नरेंद मोदी सरकार व विपक्षी दलों में अत्यधिक तकरार व गतिरोध के कारणवश, संसद अधिवेशन को बार-बार सथगित करना पड़ा। यह जनता के मुद्दों को संसद में पेश करने वाले सांसदों के अधिकारों का हनन है। जनता के करोड़ों रुपयों का नुकसान हो रहा है। फ़िर हम अपनी नव पीढ़ी को क्य़ा संदेश दे रहे हैं? संविधान के मुद्दे पर हंगामे के कुछ दिनों बाद, लोकसभा व राज्यसभा के सभी सांसदों ने ‘संविधान पर बहस’ करने पर सहमति जताई है। स्पीकर ओम बिरला के साथ सर्वदलीय बैठक के बाद यह फैसला लिया गया। केन्द्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि संविधान पर बहस 13 व 14 दिसंबर को और राज्यसभा में 16 व 17 दिसंबर को होगी। रिजिजू ने कहा, “संसदीय कार्यवाही को बाधित करना ठीक नहीं है। हम सभी विपक्षी नेताओं से अपील करते हैं कि वे इस समझौते पर अमल करें, कि हम सभी संसद का कामकाज सुचारू रूप सुनिश्श्चित करें।” संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन 25 नवंबर को शुरू हुआ, जिसमें व्यवधानों के कारण दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित कर दी गई। शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर तक चलेगा। हालांकि, 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस समारोह’ से जुड़े कार्यक्रमों की घोषणा करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में, किरण रिजिजू की हालिया टिप्पणियों ने विपक्ष का ध्यानाकर्षण किया है। किरण रिजिजू ने ‘एनडीटीवी इंडिया संवाद: संविधान 2024 शिखर सम्मेलन’ में कहा कि संविधान न केवल एक स्थिर दस्तावेज है, बल्कि एक यात्रा है और इसमें पहले भी संशोधन किए जा चुके हैं। वास्तव में संविधान मात्र एक किताब ही नहीं है। एक नागरिक के तौर पर हमें एक जीवन शैली का पालन करना चाहिए। संविधान में समय-समय पर अनेक संशोधन पारित किए गए हैं। कई लोगों ने संविधान पर रचनात्मक विचार दिये हैं। समयानुसार, तात्कालिक व्यवस्था को देखते हुए, लोगों ने अलग-अलग समय पर संविधान को भिन्न दृष्टिकोणों से देखा है व संशोधन भी किए हैं। मूल सिद्धांतों को छोड़कर, जिन्हें हम छू नहीं सकते व न ही छूना चाहिए, लोकतांत्रिक व्यवस्था में कुछ भी स्थायी नहीं होता। विपक्ष द्वारा संभल हिंसा व मणिपुर जैसे अन्य मुद्दे उठाए जाने पर, नरेंद्र मोदी सरकार ने कहा कि नियमों के अनुसार निर्णय लिये जाएगें। इन मुद्दों के कारण, सत्र शुरू होने के बाद से लोकसभा व राज्यसभा की कार्यवाहियां लगातार स्थगित हो रही हैं। विपक्षी दल, खासकर तृणमूल कांग्रेस, चाहती है कि संसद में बेरोज़गारी, महंगाई व केंद्र द्वारा धन आवंटन में विपक्षी शासित राज्यों के साथ कथित भेदभाव सहित कई मुद्दों पर चर्चा हो। तृणमूल कांग्रेस ने सत्र के दौरान ‘इं.डि.या. ब्लॉक’ की संयुक्त रणनीति तैयार करने के लिए विपक्षी बैठकों में भाग नहीं लिया। भाजपा ने कांग्रेस पर सत्ता में रहने के दौरान संवैधानिक मानदंडों और प्रजातंत्र की मूल भावना का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। क्या मोदी सरकार ने अपने 10 साल के कार्यकाल के दौरान संवैधानिक प्रथाओं व सिद्धांतों को मज़बूत किया है? विपक्षी दलों ने संविधान सभा द्वारा संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए दोनों सदनों में चर्चा की मांग की है। सत्तारूढ़ भाजपा, विपक्ष के इस हमले का जवाब दे रही है कि मोदी 3.0 संविधान के साथ छेड़छाड़ करेगी या नहीं? केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के इस दावे को खारिज किया है कि अगर भाजपा को लोकसभा में फिर से पूर्ण बहुमत मिलता तो वे संविधान में संशोधन करती। राज्यसभा में ‘नकद विवाद’ की उच्च स्तरीय जांच में सीसीटीवी फुटेज खंगाले जा रहे हैं। कांग्रेस राज्य सभा सांसद मनु अभिषेक सिंघवी की सीट पर नकद राशि के बंडल मिलने के बाद राज्यसभा में अफरा-तफरी मच गई। यह तो पहले भी हो चुका है। क्या यह क्षणयंत्र है या कोई सिक्युरिटी में चूक है? वो दृष्य कभी नहीं भूला जा सकता, जब 2008 में अशोक अर्गल, फगन सिंह कुलसते, महावीर भगोडा, ने नोटों को बोरियों से निकाल कर संसद में अपने बेंच पर रख कर, पूरे देश के सामने दर्शाने का कार्य किया। बंगारू लक्ष्मण, तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष को तो कैमरे पर नोट लेते हुए देखा गया था। उन्हें भाजपा अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा। जिस संसद परिसर को जय प्रकाश नारायण, जवाहर लाल नेहरू, ऐ.के. गोपाल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, सुचेता कृपलानी, जी. वी. मावलंकर, भीम राॅव अम्बेडकर आदि जैसे बुद्धिजीवियों ने अलंकृत किया
था, आज की संसद में छछोरेपन से जनता के विश्वास को तार-तार किया जा रहा है। ओम बिरला व जगदीप धनकड़ भी सांसदों के साथ समावेशित होने में असफल रहे हैं। संसद को सुचारू रूप से चलाना, सरकारों का कर्तव्य है। सभी राजनैतिक दलों को आत्मनिरीक्षण करना होगा कि क्या वे वास्तव में जनसेवक हैं तथा क्या संसद में समय बर्बाद करना, प्रजातांत्रिक पद्दति में अवरोधक नहीं है? जनता को भी सोचना चाहिए कि वे किस प्रकार से संविधानिक प्रजातंत्र का परचम ऊँचा रखेंगें। सारांशार्थ यह कहना महत्वपूर्ण है कि, संसद में वाद-संवाद, तर्कसंगत चर्चा से ही राष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाया जा सकता है। संवाद में समय की बर्बादी व हुड़दंग से विपक्ष की छवि धूमिल होती है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि राष्ट्रीय हित में संसद सुचारू रूप से चले तथा भारत की जनता के लिए अधिकतम निर्णय व कानून पारित हों। सरकार द्वारा विपक्ष को अपना दृष्टिकोण रखने का भी अवसर देना प्रजातंत्र का विशेष बिंदु है।
प्रो. नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, अंतर्राष्ट्रीय वैश्विक विशेषज्ञ, दूरदर्शन व्यक्तित्व व परोपकारक) Views are the author’s personal