व्यंग-विनोद – द्वारपाल का सपना
पार्थसारथि थपलियाल
यमराज- द्वारपाल! कुबेर को शक हो गया है कि उनके राजस्व में कमी आ गई है। अश्वनी कुमारों ने कुबेर को जो खुफिया रिपोर्ट भेजी है उसमें शक की सुई हमारे डिपार्टमेंट की ओर है। कारण बताओ! नही तो तुम्हे अभी बर्खास्त करता हूँ।
द्वारपाल-महाराज! मेरे छोटे छोटे बच्चे हैं।
यमराज-अरे नालायक! बच्चे तो छोटे ही होते हैं। बड़े होने पर बच्चे नही रहते। छोटे बच्चों का मैं क्या करूँ?
द्वारपाल-महाराज, नौकरी से बर्खास्त कर दोगे तो मेरे बाल बच्चों का गुजर बसर कैसे होगा? महाराज! कोई त्रुटि रह गई हो तो क्षमा करें।
यमराज- द्वारपाल! बड़ी देर से ये सफेद लिवास में कौन द्वार पर खड़ा है? इसे क्यों रोका है?
द्वारपाल- महाराज ये नेता जी हैं। आपके दूत इसे श्रीलंका से लाये हैं। इसके रिकॉर्ड में जो खास बात है वह ये है कि इसने नेतागिरी की ट्रेनिंग भारत से ली है। उससे पहले ये नेता जी चंबल घाटी में अपना उद्योग चलाते थे। वक्त बदला तो चंबल के धंधा भी बदल गया। इन्होंने भारत में जनप्रतिनिधि का मार्ग अपने धंधे के लिए अपनाया। आधा स्विस बैंक इन्ही के कारनामों का प्रतिफल है। सुना है भारत मे सरकार और समय बदलते ही इन्होंने अपना क्षेत्र बदल दिया। ये राम सेतु से होकर श्रीलंका चले गए। इन्होंने श्रीलंका की जनता को खूब कर फ्री के वायदे किये। इनकी पार्टी जीत गई। इन्होंने अपने वायदे निभाने शुरू किए। पूरे देश को लुटेरों का देश बना दिया। देश कंगाल हो गया। जनता का गुस्सा फूटा तो ये आपके दूतों के हत्थे चढ़ गए।
यमराज- नालायक! मुझे किस्से कहानियों में न उलझा। दूतों पर मुझे कोई शक नही। मुझे ये बता ये बड़ी देर से द्वार पर क्यों खड़ा है?
द्वारपाल-महाराज! आपकी जय हो। आपका वर्चस्व सदा अटल रहे। मेरे प्राणों की रक्षा करो महाराज। मेरे छोटे बच्चे हैं।
यमराज- बताओ, मुझे सच सच बताओ। क्या भारत, रूस, चीन या अमेरिका से कोई सिफारिश आई है।
महाराज- भारत में तो मोटा भी सन्यासी राजा है। उसने कहा है न खाऊंगा न खाने दूंगा। महाराज, उससे भारी तो छोटा भाई है, जो लोगों के खाये को भी निकाल रहा है, और एक भगवाधारी का तो नाम सुनते ही अपराधी खुद थाना पहुंच रहे हैं। रही बात रूस की वह यूरोप को आइना दिखाने के लिए यूक्रेन की छाती पर दाल रौंद रहा है। अमेरिका चीन को और चीन पाकिस्तान को समझने में लगा है, और दोनों मिलकर भारत को समझने की चेष्टा कर रहे हैं।
यमराज- द्वारपाल! तुम्हे बात करनी बहुत आती हैं। ये भाजपा-कोंग्रेस के प्रवक्ताओं की तरह बात की जलेबी क्यों बना रहे हो। सीधे मुद्दे की बात करो नही तो तुम्हारे प्राण हर लूंगा।
द्वारपाल-महाराज! बताता हूँ। त्राहि माम त्राहि माम! ईश्वर मेरी रक्षा करो! महाराज, ये श्रीलंका के नेता, जनता को ठगता रहा, सरकारी खजाने पर सेंध मारता रहा। ये आदमी कामदेव का काम रूप था। जहां इसकी कुदृष्टि पड़ती वहाँ नारियों का जीवन असुरक्षित था। श्रीलंका की जब लंका लगी और जनता जागी तो ये प्राण रक्षा के लिए धरती पर लट्टू की तरह घूमा। कहीं शरण नही मिली। इसकी मुलाकात आपके चेलों से हुई और वे ले आये। अभी इसका समय कुछ साँसों का है। इधर चित्रगुप्त जी का आदेश आया है कि इसनें भारत में इन्कम टैक्स, नगर कर, धुंआंकर, चुल्हाकर, विवाहकर, जन्मकर, मृत्युकर, मनोरंजन कर, सड़क कर, हाइवे कर, मकान कर, पैदावार कर, उत्पादनकर, निष्पादन कर, सेवाकर, खाद्य पदार्थकर, चुंगी और जी एस टी नही चुकाई। चंबल की ना इंसाफ़ियाँ इसकी बहुत भारी हैं। भारत के टैक्स नही चुकाए इसलिए यह त्रिशंकु सजा का हकदार है। श्रीलंका की लूट इसे रसातल गामी बनाती हैं। ऐसा चित्रगुप्त की डायरी में है।
यमराज- तो भेज दो इसे रसातल में। इसमें सोचना क्या?
महाराज-ये बहुत अनुभवी है। ऐसा अनुभवी व्यक्ति आज तक इस द्वार पर नही आया। प्राणों की रक्षा और स्वर्ग नरक की सज़ा आपके हाथ में है। कब तक लाशों को ढोते रहोगे। नेता मालदार है। मनीलांड्रिंग का विशेषज्ञ है। किसी को पता भी न चलेगा और महाराज, आपके पुण्य प्रताप से मेरे छोटे बच्चे भी बड़े हो जाएंगे।
महिला स्वर- अजी सुनते हो? कब तक सोते रहोगे? ऑफिस नही जाना क्या?
पुरुष स्वर- ऊँ हां हा। भगवान! तुम भी तो न जाने किस मुहूर्त में मुझ से जुड़ी हो। दो पैसा जब हाथ आ रहे हों तभी बीच में आ टपकती हो।
महिला- क्या हुआ क्या? बिगाड़ा मैने?
पुरुष-भगवान! मैं यमराज को पटाने के करीब पहुंच चुका था, यमराज के मुंह मे भी लार टपकने लगी थी। तुम मुझे न जगाती तो नेता से जी एस टी के बहाने अपने बच्चे भी दूध पी लेते। अगली बार जब जगाओ पहले चेहरा देख लिया करो।
अरे बाप रे, देर हो गई…भगवान मैं दफ्तर चला।