वसुंधरा के बगावती तेवरों से फूले भाजपा नेतृत्व के हाथ पैर
कुशाल जीना
भाजपा की राजस्थान इकाई में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। वसुंधरा राजे सिंधिया के बगावती तेवरों ने मोदी शाह सहित समूचे भाजपा नेतृत्व के हाथ पैर फूला दिए हैं क्योंकि पार्टी ने वसुंधरा को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश करने से इंकार कर दिया है।
राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के बीच का टकराव इस कदर बढ़ गया है कि शाह द्वारा 26 मौजूदा विधायकों के टिकट काटने के बाद इस्तीफों की बाढ़ सी आ गई है जिसके कारण पहली सूची जारी किए जाने में देरी हो रही है। जिन 26 विधायकों के टिकट काटे गए हैं वे सभी वसुंधरा समर्थक हैं।
इनमें से पांच ने अपने इस्तीफे दे दिए हैं और एलान किया है कि वे प्रदेश में भाजपा की रैलियों के समानांतर रैलियां आयोजित करेंगे। इनमें प्रमुख हैं सुरेंद्र गोयल, कुलदीप धनखड़, राजपाल सिंह शेखावत, जसवंत सिंह यादव और रोहितास्व शर्मा। अमित शाह ने इस बार किसी भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया क्योंकि जिन मुसलमानों को पिछली बार टिकट दिया था और जो जीते थे सब वसुंधरा समर्थक थे।
बहरहाल, वसुंधरा को निपटाने के चक्कर में राजस्थान में मोदी शाह की मुसीबतें बढ़ती जा रही है जिसका चुनावों पर विपरीत असर पड़ना लाजिमी है।
वसुंधरा समर्थकों द्वारा अपनी नेत्री के पक्ष में माहौल बनाने वाली कवायद से यह मसला और उलझ गया है। यहां तक कि गृह मंत्री अमित शाह के हाल ही में हुए राजस्थान दौरे के दौरान बंद कमरे में हुई बैठक से भी कोई हल नहीं निकल सका क्योंकि वसुंधरा समर्थक किसी समझौते पर तैयार नहीं हैं।
अगर तनातनी का यह सिलसिला प्रदेश में होने वाले आगामी विधान सभा चुनावों तक कायम रहा तो भाजपा को हार का मुंह देखना तय है क्योंकि भैरों सिंह शेखावत के बाद राजस्थान में भाजपा को बड़ा नेता है तो वह वसुंधरा राजे सिंधिया ही है।
विडंबना यह है कि मोदी और शाह ऐसे किसी भी व्यक्ति को बढ़ावा नहीं देना चाहते जो उनके काबू से बाहर हो। नितिन गडकरी के अलावा भाजपा में वसुंधरा ही अकेली नेत्री हैं जिस पर दोनों महानुभावों का बस नहीं चलता।
यह सच है कि पिछले विधान सभा चुनावों में मोदी और शाह नहीं चाहते थे कि वसुंधरा को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया जाए और ऐसा हुआ भी। नतीजतन, भाजपा चुनाव हार गई।
वही फांस इस बार भी फंसी है लेकिन इस बार दोनों ने ठान लिया है कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर ही लड़े जायेंगे।
ऐसे में अगर राजस्थान में वसुंधरा और मध्य प्रदेश में शिवराज को प्रोजेक्ट किया गया तो न केवल पार्टी के भीतर क्षेत्रीय क्षत्रप खड़े हो जाएंगे बल्कि मोदी की लोकप्रियता की भी हवा निकल सकने की संभावना है।
ऐसे में जब लोक सभा चुनाव होने में मात्र एक साल का समय बचा हो, तब पार्टी नेतृत्व किसी भी सूरत में मोदी के मुकाबले कोई दूसरा नाम आगे लाने का जोखिम कतई नहीं उठा सकता।
राजस्थान भाजपा में असंतोष को दबाने और बागियों को डराने, धमकाने की गरज से हाल ही में प्रदेश भाजपा नेतृत्व ने वसुंधरा समर्थक एक पूर्व मंत्री रोहितास्व शर्मा को कारण बताओ नोटिस जारी किया है क्योंकि उन्होंने अपने एक बयान में वसुंधरा को राजस्थान और राजस्थान को वसुंधरा करार दिया था। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया समर्थकों की ओर से इस तरह के कई और बयान भी आए हैं और भविष्य में भी आते रहेंगे।
मोदी शाह की जोड़ी वसुंधरा को इसलिए भी मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहती क्योंकी राजस्थान में यह आम चर्चा है कि वसुंधरा और अशोक गहलोत के पारस्परिक संबंध काफी अटूट हैं और दोनों ने समय समय पर एक दूसरे की भरपूर मदद की है।
अगर सचिन पायलट अभी तक भाजपा में शामिल नहीं हो पाए हैं तो इसके पीछे वसुंधरा का ही हाथ है। इसके अलावा भी दोनों ने एक एक बार एक दूसरे की सरकार गिरने से बचाई है। यह भारतीय राजनीति के कुछ ऐसे पेंच और गुण या अवगुण कह लीजिए हैं जो दुनिया भर के किसी और देश में नहीं दिखते भले ही वह कितना बड़ा लोकतंत्र क्यों न हो।
( ये लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार हैं)