वरिष्ठ पत्रकार व संपादक दिनेश जुयाल का देहरादून में अकस्मात निधन
Sunil Negi
वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा : वरिष्ठ पत्रकार व संपादक दिनेश जुयाल का देहरादून में अकस्मात निधन हो गया। उनके साथ काम कर चुके मेरे जैसे दर्जनों साथियों के लिए यह अपूर्णीय क्षति है। मेरे लिए वह विश्वसनीय मित्र, एक सीनियर साथी, रूम मेट व खास मित्रों में थे। एक बेहद नेक दिल इंसान का असमय निधन सबके लिए स्तब्ध करने वाला है। उनके परिवार ने उनके दुखद निधन की पुष्टि की है। शुक्रवार 1 नवंबर रात करीब पौने नौ बजे उन्होने इंद्रेश अस्पताल में अंतिम सांस ली। अचानक रक्तचाप असंतुलन के कारण तकलीफ बढ़ी और हार्ट अटैक नहीं झेल सके। मात्र डेढ़ माह पहले उन्हें ब्लड कैंसर डायग्नोज हुआ। हाल में पीजीआई चंडीगढ़ से उपचार शुरू ही हुआ था। दिनेश जुयाल ने कई वर्षों तक अमर उजाला की कानपुर , लखनऊ व बरेली यूनिटों में संपादक के तौर पर सफलतापूर्वक दायित्व संभाला। कुछ साल वे हिंदुस्तान देहरादून के भी संपादक रहे। उनको एक कुशल टीम लीडर, बेहतरीन कॉपी एडिटर और पत्रकारों की नई पीढी के लिए मार्गदर्शक माना जाता था। देश भर के हिंदी पत्रकारों और करीब चार दशक तक उनके साथ काम कर चुके लोगों की नजर में वे एक बेहतरीन इंसान, निष्ठावान संवेदनशील पत्रकार व उसूलों से समझौता न करने वाले संपादक के तौर पर जाने जाते थे।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उनके निधन पर गहरा दुःख और संवेदना व्यक्त की है। उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति और उनके शोक संतप्त परिजनों को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।
पत्रकार सती के मुताबिक कल सुबह साथी Manmeet ने फोन कर कहा कि इंद्रेश हॉस्पिटल चलना है, जल्दी तैयार हो जाओ। कारण पूछने पर बताया कि जुयाल सर एडमिट हैं।
करीब पौने 11 बजे हम हॉस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड पहुंचे तो बिस्तर पर लेटे जुयाल जी ने मुस्कराते हुए हमें इस तरह दुलारा, जैसे वे अस्पताल में नहीं, बल्कि घर पर हों। कुछ देर पहले उनके परिजन उन्हें बेहोशी की हालत में अस्पताल लेकर पहुंचे थे, जहां फर्स्ट एड मिलने के बाद वे पहले से बेहतर महसूस कर रहे थे। हालांकि कीमो का दर्द तो उन्हें पीड़ा पहुंचा ही रहा था, लेकिन उनके चेहरे पर इस जंग को जीतने का पूरा यकीन झलक रहा था। इस दौरान उन्होंने जितनी भी बातचीत की उसका लब्बोलुआब यही था कि जल्द मैदान में पुराने चिरपरिचित तेवरों के साथ मुलाकात होगी। कुछ समय साथ बिताने के बाद हम दोनों ने, फिर से मिलने की बात कहते हुए उनसे विदा ली। लेकिन रात को मनमीत ने ही इस विदा के अंतिम विदा होने की दुःखद सूचना दी।
साल 2008-09 में देहरादून में पहली बार ‘दो टूक’ के जरिये उन्हें पढ़ने का मौका मिला था। वे उन चंद लोगों में थे, जिनसे मुलाकात होने से पहले ही उनकी लेखनी उनका कायल बना चुकी थी। किसी मुद्दे पर बहुत कम शब्दों में सटीक लिखने का उनका दुर्लभ गुण, गागर में सागर भरने की कहावत का प्रत्यक्ष प्रमाण था।
बाद में उनके साथ ‘गैरसैंण राजधानी आंदोलन’ के दौरान अच्छा समय गुजरा, जिसके बाद से लगातार उनका स्नेह बना रहा। उत्तराखंड में एक नए राजनीतिक विकल्प की जरूरत के वे प्रबल हिमायती थे। इसके लिए उन्हें जिन भी युवाओं में उम्मीद दिखती, वे उनका दिल से समर्थन करते और हौसला बढ़ाते। उनसे जब भी मिलना होता, उनका ‘प्रदीप प्यारे’ कहकर पुकारना, एक नई ऊर्जा से भर देता था।
एक सच्चे जनरोकारी पत्रकार का इस तरह कैंसर से लड़ते हुए विदा लेना, कचोट गया।
विनम्र श्रद्धांजलि दिनेश जुयाल सर !
वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द कुमार के अपनी संवेदना में कहा: साथी दिनेश जुयाल के निधन की खबर ने मन को बहुत दुखी कर दिया। वे गहरी समझ वाले प्रतिबद्ध पत्रकार थे,जिनकी मानवीय संवेदना के साथ मूल्यों में आस्था थी। पहाड़ को लेकर उनकी दृष्टि भले एजेंडा धारियों को पसंद न आए, खरी खरी कहने में वे किसी की परवाह नहीं करते थे। अन्य सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर वे बेबाकी से बात रखते थे। हमारा लंबा साथ रहा,हालांकि हम एक संस्थान में रहकर अलग हिस्सों में रहे। वे बाद में जहां, जिस भूमिका में रहे, हमेशा गाहे बगाहे याद करते रहे। सादर नमन.
वरिष्ठ पत्रकार महेश शर्मा ने अपनी लम्बी फेसबुक पोस्ट में लिखा :
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल के निधन
की खबर मुझे हल्द्वानी से वरिष्ठ पत्रकार मेरे अनुज अभिषेक ने दी। उन्हें ब्लड कैंसर था। जुयाल जी अमर उजाला और हिंदुस्तान में संपादक पद पर रह चुके थे। उन्हें मैं 1992 से जनता हूँ। वो मुझे बुढ़ऊ कहकर संबोधित करते थे। यह चुहलबाजी वाला संबोधन मुझे भी अच्छा लगता था। फोन पर जब-तब बातें होती थी। रिटायरमेंट के बाद वह देहरादून में रहते थे। बीते साल किसी काम के सिलसिले में वह कानपुर आये थे। मेरे दिल्ली में होने के कारण उनसे भेंट न हो सकी। मुझे शुक्रिया कहना चाहते थे। बातचीत के दौरान देहरादून आने का न्योता देना नहीं भूलते थे। जुयाल जी सरल इंसान और बेहतरीन संपादक थे। बाँदा में क्राइम की किसी बड़ी घटना को कवर करने को अतुल भाई साहब (स्व.अतुल महेश्वरी) ने कानपुर भेजा था। तभी पहली मुलाकात हुई थी। यह वाकया कोई 1992-93 का था। फिर हम दोस्त बन गए। कानपुर से उन्हें बाँदा रवाना होना था। अमर उजाला कार्यालय के निकट सनी होटल में वह ठहरे थे। कालपी रोड के ट्रैफिक के शोर से आजिज जुयाल जी सो नहीं पाए थे। सुबह बांदा भी जाना था। जब मैं मिलने पहुंचा तो वह होटल के तौलिया को कान में लपेटे अंग्रेजी के 9 की मुद्रा में लेटे थे। हमको आया देखकर उठ बैठे और बोले प्यारे सो नहीं पाया। उनकी रिपोर्ट्स का मैं फैन था। काफी कुछ सीखा उनसे। हिंदुस्तान की प्रधान संपादक मृणाल पांडे ने उन्हें अमर उजाला से बुलाकर हिंदुस्तान देहरादून संस्करण का संपादक बना दिया था। मृणाल जी के जाने के बाद शशिशेखर जी हिंदुस्तान गए। उन्होंने जुयाल जी को कंटीन्यू रखा। बाद में अतुल जी ने उन्हें बुलाकर कानपुर संस्करण सौंपा। मैं उनकी टीम का तीन बार हिस्सा रहा। बरेली में भी डॉ. वीरेन डंगवाल जी (दिवंगत) के यहां दो-तीन मुलाकातें हुईं। जुयाल जी बेहद जिंदा दिल इंसान थे। गजब के लिक्खाड़। कविताएं भी वह लिखते थे। उनके भीतर के कवि को लोग कम जानते होंगे। उनकी पत्रकारीय समझ, स्टोरी एंगल सबकुछ टॉप का था। उनका निधन मेरी निजी क्षति है। महाप्रभु जगन्नाथ से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति दें। उनके जैसे इंसान कम ही धरती पर आते हैं।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपनी अम्बरनाथ व्यक्त करते हुए कहा :
श्री दिनेश जुयाल, एक बहुत नामचीन, जनोन्मुखी पत्रकार जिनकी लेखनी का जादू हम सब लोग अनुभव कर चुके हैं, उनका आकस्मिक निधन एक निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए बहुत बड़ी क्षति है। मैं, दिवंगत आत्मा को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं और उनके शोक संतप्त परिवार व उनके प्रशंसकों तक अपनी संवेदनाएं प्रेषित करता हूं। भगवान दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें।
।। ऊं शांति।।