वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश चन्द्र जुगरान की पुस्तक ” पहाड़ के हाड ” का किया उत्तराखंड के राज्यपाल ने लोकार्पण

वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश चन्द्र जुगरान की एक पुस्तक आई है- पहाड़ के हाड़। इसे हमारे अलकनंदा प्रकाशन ने छापा है। पुस्तक की खूब चर्चा हो रही है क्यों कि यह उत्तराखंड आंदोलन, राज्य बनने के बाद के हालात, पर्यावरण, पर्यटन व सांस्कृतिक विमर्श का एक विश्वसनीय और महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

पुस्तक का लोकार्पण हाल में देहरादून में उत्तराखंड के महामहिम राज्यपाल ले.जनरल गुरमीत सिंह ने किया। इस मौके पर कैबिनेट मंत्री श्री सुबोध उनियाल, विधायक श्री खजान दास, पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री अनिल रतूड़ी, सुपरिचित हिंदी कथाकार सुभाष पंत और उत्तराखंड भाषा संस्थान की निदेशक श्रीमती स्वाति एस. भदौरिया भी उपस्थित थीं।

व्योमेश मूलत: पौड़ी शहर से हैं और दिल्‍ली में रहकर पत्रकारिता करते रहे हैं। वह राजनीति शास्‍त्र और जन-संचार में एमए हैं और विगत 35 वर्षों से मुख्यधारा की हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय हैं। उन्‍होंने नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली में मुख्‍य-उपसंपादक के रूप में बीस साल की लबी पारी खेली और फिर करीब आठ बरस दैनिक हिन्‍दुस्‍तान, नई दिल्‍ली में समाचार संपादक का महत्‍वपूर्ण दायित्‍व निभाया। संप्रति वह एक स्‍वतंत्र पत्रकार के रूप में सक्रिय हैं।

‘पहाड़ के हाड़’ की भूमिका नवभारत टाइम्स के संपादक रहे और सुपरिचित हिंदी कथाकार संजय खाती ने लिखी है। श्री खाती लिखते हैं-

“उत्तराखंड बनने के बाद इतना वक्त गुजर चुका है कि एक नई पीढ़ी आगे आ चुकी है। इसलिए बहुत मुमकिन है कि उस पूरे संघर्ष के इतिहास को जनमानस भूलने लगा हो। भूला न भी हो तो उसका तीखापन अब तक भोथरा हो चुका होगा। व्योमेश के इस संग्रह में जिसमें उन्होंने कई दशकों तक लिखे हुए आलेखों को एक साथ जोड़ा है, हम मकसदों और बलिदानों के उसी कमिटमेंट को याद दिलाने की भरपूर कोशिश देखते हैं। इसलिए कई लेख अपने जमाने के होते हुए भी अपनी प्रासंगिकता बनाए रखते हैं क्योंकि वे उस वक्त के दस्तावेज हैं। आज अगर कोई उत्तराखंड आंदोलन के इतिहास का गवाह बनना चाहता है तो उसे इस सामग्री से गुजरना ही होगा। तभी उसके मन में यह भाव घनीभूत हो सकेगा कि क्यों उत्तर प्रदेश से अलग होने की जरूरत समझी गई और तभी आज के उत्तराखंड का आकलन हो सकेगा कि क्या इसकी सामाजिक राजनीतिक दशा उस अलगाव को जस्टिफाई करने की हद तक पहुंची!

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