वरिष्ठ पत्रकार डाॅ. वेदप्रताप वैदिक अब इस दुनिया में नहीं रहे।
राजेश बादल –
वरिष्ठ पत्रकार डाॅ. वेदप्रताप वैदिक अब इस दुनिया में नहीं रहे। वह करीब 78 साल के थे। बताया जा रहा है कि वह मंगलवार सुबह नहाने के समय बाथरूम में गिर गए और बेसुध हो गए थे। काफी देर तक बाहर न आने के बाद परिजनों ने दरवाजा तोड़ा और उन्हें बाहर निकाला। इसके बाद तत्काल उन्हें नजदीक में ही प्रतीक्षा अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। डॉ. वैदिक के आकस्मिक निधन पर वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
वैदिक जी के निधन के साथ ही हमने हिंदी पत्रकारिता के उस अंतिम हस्ताक्षर को खो दिया जो आजादी के बाद उभरी थी। पत्रकारिता के इंदौर घराने ने ही उनको पत्रकारिता के संस्कार दिए। भारतीय हिंदी पत्रकारिता के इतिहास पर उनका शोध अद्भुत और चमत्कृत करने वाला है। खास तौर पर उस जमाने में, जबकि इंटरनेट या सूचना प्राप्ति के आधुनिक संचार साधन नही थे। यह ग्रंथ अपने आप में एक संपूर्ण ज्ञान कोष है। अफगानिस्तान पर उनकी पीएचडी उनकी एक और नायाब प्रस्तुति है। बुनियादी तौर पर अफगानिस्तान के अतीत और चरित्र को समझने वालों के लिए यह शोध प्रबंध इन साईक्लोपीडिया से कम नही है।
हिंदी पत्रकारिता में उनका एक और योगदान प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की हिंदी एजेंसी भाषा की शुरुआत है। हिंदी पत्रकारिता में भाषा का आना एक क्रांति से कम नही था। हिंदी समाचारपत्रों को अनुवाद करने की झंझट से बचना पड़ा। इसके अलावा भाषा ने इस मिथक को तोड़ा कि हिंदी एजेंसी के लिए टेलीप्रिंटर पर इस भाषा को लाना आसान नही है। इसके बाद यूएनआई की वार्ता भी आई थी। वैसे तो आपातकाल के समय समाचार भारती और हिन्दुस्तान समाचार नाम से संवाद समितियां काम कर रही थीं ,मगर उनकी हालत दुबली पतली ही रही। जो काम भाषा ने किया,वह कोई अन्य संवाद समिति नही कर पाई।
नवभारत टाइम्स में सहायक संपादक के नाते उनके वैचारिक लेखन को खूब सराहा गया। प्रधान संपादक राजेंद्र माथुर के मार्गदर्शन में उनकी पत्रकारिता फली फूली। समसामयिक विषयों पर प्रतिदिन लिखना आसान नही था, लेकिन उन्होंने बखूबी यह काम किया। उनके अंतरराष्ट्रीय संपर्क विराट थे। इधर हाल के वर्षों में उनकी पत्नी के निधन के बाद से वे अनमने थे और सेहत भी साथ छोड़ने लगी थी। हिंदी के इस शिखर हस्ताक्षर को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।