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वरिष्ठ एवं पत्रकार विलक्षण पत्रकार के दिलचस्प उदगार , कौन नहीं जानता राजीव नयन बहुगुणा को

नमः समस्त भूतानाम, आदि भूताय भू भृते

कल मेरे जन्म दिन पर जिस तरह अटक से कटक तक समस्त हिंदी जाति के लोगों ने मुझे अपने प्रेम से सिक्त किया, यही मेरा पाथेय है. यध्यपि मैं हठात ही एक विवादास्पद पुरुष भी हूं, जिसकी वजह मेरा कम घुलना मिलना भी है.
मुझे बहुत बाद में अपने बारे में एक बात पता चली. हमारे प्रदेश के एक राज्यपाल महोदय ने कुछ चुनिंदा पत्रकारों से मिलने की इच्छा जताई, जो गवर्नर प्रायः नहीं करते.
सूची तय होते वक़्त मेरा नाम आते ही एक सलाहकार ने किलक कर कहा, सर यह तो महा सनकी, अभद्र और उदण्ड मनुष्य है. हर वक़्त पिए रहता है, और माननीयों से झगड़ा करने का अवसर ढूंढता रहता है. गालियां इसकी ज़बान पर रहती हैं. लौटने के बाद स्वयं चर्चित होने वास्ते तमाम झूठी बातें लिखता है.
लेकिन महामहिम ने मुझे बुलवा भेजा. मिलते ही मैंने अवनत होकर उनकी अभ्यर्थना की, और सबसे पीछे बैठ गया. मेरा मुंह उन्होंने हाथ मिलाते वक़्त सूंघ ही लिया होगा, जिससे यह सिद्ध हुआ होगा कि मैं पिए नहीं हूं.
वह रह रह कर मुझे देखते रहे, कि कब मैं उपद्रव करूँ अथवा गाली बकूँ, ताकि वह अपने परिसहाय से मुझे पिटवाएँ.
लेकिन अपनी बारी आने पर मैंने उनकी उस पुस्तक का वर्णन किया, जो उन्होंने भेष बदल कर एक ट्रक में भारत भ्रमण के अपने अनुभवों पर लिखी थी.
मैंने उन्हें यह भी बताया कि उनकी यह पुस्तक मैंने उत्तरपूर्व की अपनी यात्रा के दौरान पढ़ी, जब मैं घोर इंसरजेंसी के बीच भेस बदल कर वहां मोटर साइकिल पर घूम रहा था.
बहुत बाद को जब मेरे पिता कभी उनसे मिलने गए, तो उन्होंने मेरे लिए राजभवन की छापी लगी दो रकाबियां भिजवाईं.
एक पत्रकार के रूप में मैंने सबसे लम्बी नौकरी राजस्थान में की. लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत का बंगला मैंने पहली बार तब देखा, जब मैं राजस्थान से विदा होने लगा, और उन्होंने मुझे कुछ पत्रकारों के साथ बुलवा भेजा.
अभी दो दिन पहले ही हमारे प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री रात्रि विश्राम वास्ते मेरे गाँव गए. मेरे परिजनों ने इंगित किया, कि मैं भी इस अवसर पर वहां जाकर उनसे मिलूं, तथा गाँव के प्रश्न रेखांकित करूँ.
यध्यपि वर्तमान माननीय मुख्यमंत्री मेरे प्रति सदाशयी हैं, और जब भी मुझसे मिले, विनम्र होकर मिले. लेकिन मैंने यह प्रस्ताव इस बिनाह पर खारिज कर दिया कि मैं आमंत्रित नहीं हूं. मुख्यमंत्री के साथ सेल्फी लेने वास्ते ऐसे अवसरों पर धक्का मुक्की होती है. धक्का तो मैं एक बार को सह भी लूंगा, पर इस उम्र में मुक्का बर्दाश्त करना मेरे बूते में नहीं.
एक बार मुझे प्रधानमंत्री चंद्र शेखर की सभा कवर करने भेज दिया गया. मैं प्रेस के लिए निर्धारित दीर्घा को छोड़ जनता में घूमने लगा, और जनता के मन की बात सुनने लगा.
लौट कर मैंने जनता की प्रतिक्रियाओं पर पूरी ख़बर लिखी, और आख़िरी पैरा में प्रधानमंत्री मंत्री के भाषण का उल्लेख किया – प्रधानमंत्री ने कहा कि वह आर्थिक और सामरिक दृष्टि से देश को मज़बूत बनाएंगे.
डेस्क पर मेरी रपट को लेकर बड़ी आँव कांव मची. लेकिन मैंने तर्क दिया कि वहां उपस्थित दस हज़ार लोगों की बात इग्नोर कर मैं पूरी ख़बर एक ही व्यक्ति पर केंद्रित कैसे कर सकता हूं? चाहे वह प्रधानमंत्री ही क्यों न हो. क्योंकि एक प्रधानमंत्री भी अपने मूल कैडर में एक भारतीय नागरिक है, जो वहां उपस्थित सभी लोग थे.
उस वक़्त पत्रकारिता में एक लोकतान्त्रिक आत्म बोध मौज़ूद था, अतः मेरी वह रपट छपी अवश्य, लेकिन फिर मेरी ड्यूटी कभी किसी vip के प्रोग्राम में नहीं लगी.
मुझे हमेशा किसान, पर्यावरण, संगीत और राजनीतिक पार्टियों में मरे गिरे वाम पंथियों की बीट मिलती रही, और मैं उसमें खुश रहा. किसानो और खेतों और नदियों की ख़बर लिख कर बड़े राजनितिक दलों की आंख में ऊँगली डालता रहा.
… अनेक रूप रूपायः, विष्णुवे, प्रभ विष्णुवे. 🙏

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