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लैंडफिल स्थलों पर बढ़ती आग की घटनाओं की जिम्मेदारी निर्धारित हो तथा कार्यरत निगमकर्मी व कूड़े को कम करने में जुटे मजदूर व कर्मियों की सुरक्षा व आग से बचाव के लिए निगम प्रभावी व्यवस्था बनाए : ममगांई


एक बार फिर भलस्वा लैंडफिल स्थल आग की लपटों में घिर गया, कुछ दिन पहले गाजीपुर लैंडफिल स्थल में भी आग भड़की थी। वर्ष 2022 की पहली तिमाही में ही 3 बार भलस्वा और 3 बार गाजीपुर लैंडफिल स्थल में आग लग चुकी है, इससे दिल्लीवासी सकते में हैं। शहरी मामलों के विशेषज्ञ एवं एकीकृत दिल्ली नगर निगम की निर्माण समिति के अध्यक्ष रहे जगदीश ममगांई ने कहा कि दिल्ली सरकार व दिल्ली नगर निगम हर बार जांच बिठाते हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर ठन-ठन गोपाल! रिपोर्ट में जाने क्या लीपापोती की जाती है कि प्रदूषण, जान-माल व आर्थिक नुकसान झेल रहे दिल्लीवासियों को सुरक्षा देने के लिए प्रभावी कदम उठाने, समस्या के निदान व दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के निमित्त न तो कोई प्रभावी कदम उठाए जाते हैं और न ही जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाती है। लैंडफिल के अंदर बार-बार लगने वाली आग के लिए मीथेन गैस के अधिक उत्पादन को कारण बताया जाता है, मीथेन गैस के संपर्क और विषाक्तता के कारण, दिल्लीवासी सांस लेने में तकलीफ, आंखों की रोशनी कम होना, हृदय पर असर, मिर्गी, तंत्रिका संबंधी समस्याओं तथा स्मृति हानि और अवसाद के प्रभावों से पीड़ित हो सकते हैं।

ममगांई ने कहा कि आग की घटनाएं लगातार हो रही हैं परन्तु बड़ी संख्या में लैंडफिल स्थलों पर कार्यरत निगमकर्मी व कूड़े के पहाड़ों को कम करने में मशीनों पर जुटे मजदूर व कर्मियों की सुरक्षा, विशेषकर आग से निपटने के लिए निगम ने उचित व्यवस्था तक नहीं की है, इसके लिए दिल्ली फायर सर्विस पर निर्भर रहना पड़ता है और ज्यादा गंभीर स्थिति में बाहर से आने वाली राहत में देरी हो जाती है। 26 अप्रैल को शाम करीब 5:00 बजे भलस्वा लैंडफिल पर आग लगी, दिल्ली दमकल सेवा को शाम करीब 5.47 बजे कॉल हुई, दमकल की गाड़ी आने में समय लगा, शुरुआत में केवल धुआं ही था लेकिन हवा की वजह से बाद में भीषण आग फैल गई। दमकल की 13 गाड़ियां बुलाई गई जिनमें काफी समय लग गया, आग बुझाने के लिए कल से अग्निशमन अभियान चल रहा है जो अभी जारी है। दिल्ली सरकार भी निगमों पर जुर्माना लगा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है, क्या जुर्माना वसूलने से कूड़े के पहाड़ों व आग की घटनाओं से प्रभावित होने वाले दिल्लीवासियों को सुरक्षा व राहत मिल जाएगी!

जगदीश ममगांई ने कहा कि 16 जुलाई 2018 को, कहा गया था कि उपराज्यपाल नियमित रुप से विरासत के टीले के प्रबंधन और दैनिक कचरे के प्रसंस्करण के लिए तीनों नगर निगमों के कार्यों की निगरानी एवं कचरा निपटान योजनाओं की समीक्षा कर रहे हैं। अगस्त 2020 तक, यह उम्मीद की जाती है कि कोई भी अनुपचारित कचरा लैंडफिल स्थलों पर नहीं डाला जाएगा। लेकिन अप्रैल 2022 तक भी अनुपचारित कचरा तीनों लैंडफिल स्थलों पर डाला जा रहा है, इसके लिए वैकल्पिक स्थलों का प्रावधान नहीं हुआ है। कूड़े के पहाड़ों की ऊंचाई कम करने का लक्ष्य भलस्वा व ओखला लैंडफिल के निमित्त दिसंबर 2023 तथा गाजीपुर लैंडफिल के निमित्त दिसंबर 2024 निर्धारित किया गया है लेकिन जिस गति से निगम कार्य कर रहा है, यह लक्ष्य प्राप्त करने की कोई संभावना नहीं दिखती है।

उन्होंने कहा कि अब एकीकरण के साथ दिल्ली नगर निगम, केन्द्र सरकार के तहत आ गया है, लिहाजा तीनों नगर निगमों की वर्षों पुरानी इस समस्या से निजात मिलने की संभावना है। केन्द्र सरकार विशेषज्ञों से राय कर तेज गति के संयत्रों को स्थापित कर जानलेवा कूड़े के पहाड़ों से दिल्लीवासियों को छुटकारा दिलाने में प्रभावी भूमिका निभा सकती है।
ज्ञात हो कि वर्ष 1996 में स्थापित भलस्वा लैंडफिल स्थल में कूड़े का 62 मीटर ऊंचा पहाड़ बन गया लेकिन नगर निगम ने इस पर अंकुश लगाने व वैकल्पिक व्यवस्था तलाशने के प्रति कोई सजगता नहीं दिखाई।

इससे पूर्व वर्ष 1984 में शुरु हुई गाजीपुर लैंडफिल स्थल वर्ष 2002 तक, अपनी नियोजित क्षमता 20 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच गई थी, जो इसकी अनुमेय से अधिक थी। वर्ष 1996 में शुरु हुई ओखला लैंडफिल साइट की स्थिति भी भयावह है। 1 सितंबर 2017 को गाजीपुर लैंडफिल की ढलान का एक हिस्सा गिरने से दो लोगों की मौत हो गई और पांच घायल हो गए, इस घटना ने नींद में सोए नगर निगम को गाजीपुर लैंडफिल के संचालन और प्रबंधन में सुधार के लिए मजबूर किया।

दिल्ली नगर निगम ने गाजीपुर, भलस्वा व ओखला, की तीनों लैंडफिल स्थल में आसमान छूते कूड़े के पहाड़ों की ऊंचाई कम करने व वैकल्पिक अपशिष्ट प्रबंधन विकल्पों का पता लगाने एवं भविष्य के लैंडफिल स्थल की पहचान करने का कार्य आरंभ किया।

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