ले!!! अब खा माछा!
पुरुषोत्तम शर्मा
उत्तराखण्ड निवासी मित्र और वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी को उत्तराखण्ड पुलिस ने जोशीमठ जाने से रोक दिया। वे वहां छटी अस्कोट – आराकोट यात्रा में शामिल होने जा रहे थे। इस यात्रा का आयोजन हिमालयी परिवेश के अध्ययन में जीवन खपा देने वाले पद्मश्री प्रो. शेखर पाठक के नेतृत्व में हर 10 वर्षों में होता है। इस यात्रा के जरिये अलग-अलग विषयों के जानकार लोगों द्वारा हर 10 वर्षों के अंतराल में पहाड़ के लोगों के जीवन, आर्थिकी, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय बदलावों का अध्ययन किया जाता है।
चारु तिवारी को जोशीमठ जाने से रोकने का कारण उनका उस कार्यक्रम में शामिल होना नहीं है। बल्कि इसका कारण उत्तराखण्ड सरकार द्वारा पर्यटन सीजन में पर्यटन रूट पर जाने के लिए किया गया अनिवार्य रजिस्ट्रेशन का नियम है। यह नियम पहाड़ में पागलों की भीड़ बन हिमालयी पर्यावरण और जैव विविधता को नष्ट कर रहे पर्यटकों के साथ ही स्थानीय लोगों के आवागमन पर भी लगा दिया गया है। इसके जरिये उस पगलायी भीड़ को नियंत्रित नहीं किया जा रहा है, बल्कि उसे बढ़ाते हुए स्थानीय लोगों की दिनचर्या में ही बाधा खड़ी की जा रही है।
यह एक ऐसी सरकार का बनाया नियम है जो ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों की आवक दिखाने के चक्कर में यह भी भूल गई है कि पहाड़ में वहां के निवासी भी रहते हैं और अपने पारिवारिक, धार्मिक, राजनीतिक कारणों से उन्हें भी इन रूटों से यात्रा पर जाना होता है।
क्या यात्रा सीजन में अब हम पहाड़ के निवासियों को अपने घर, अपनी रिस्तेदारी, अपने कुल के आराध्य देवताओं के मंदिर और अपने संगठन के रोजमर्रा के काम के लिए यात्रा का रजिट्रेशन कराना होगा? क्या पहाड़ के निवासी होकर हमें भी बाहरी पर्यटकों की तरह संबोधित किया जाता रहेगा?
यह एक स्थानीय नागरिक के आवागमन पर सरकारी प्रतिबंध की शुरुआत भर है। इससे पहले हमारे जंगलों, वन पंचायतों, हमारी संजायती जमीनों, हमारी नदियों, हमारे बुग्यालों (जिनके पहरेदार हजारों वर्षों से हम और हमारे पुरखे रहे हैं) से हमारे सारे हक हकूक छीन लिए गए। फिर पहाड़ की जमीनों की कारपोरेट लूट बढ़ाने के लिए भू कानूनों में संशोधन कर दिए गए। अब हमारे आवागमन पर भी बंदिशें लगाने की तरफ धामी सरकार ने कदम बढ़ा दिए हैं।
उत्तराखण्ड में कार्यरत सभी सामाजिक, राजनीतिक संगठनों और निर्वाचित पंचायतों/निकायों को सरकार के इस कदम का कड़ा विरोध करना चाहिए।