लद्दाख में टिहरी की बेटी अभिलाषा बहुगुणा की धूम
ग्रामीण महिलाओं को जोड रही फार्म टू फैशन से,
टिहरी के साबली गांव की अभिलाषा बहुगुणा लद्दाख की पहचान बन चुकी हैं। अभिलाषा ने लद्दाख में पश्मीना को नई विश्वस्तरीय पहचान दी है। अभिलाषा ने लूम आफ लद्दाख की स्थापना की। उन्होंने सीमांत लद्दाख के ग्रामीण महिलाओं के हुनर को तराशा और उन्हें सीधे फैशन से जोड़ दिया। जिस पश्मीना ऊन के उन ग्रामीणों को कुछ सौ रुपये ही मिलते थे, उसके बदले में अभिलाषा के प्रयासों से इन ग्रामीणों का एक शॉल ही दस हजार में बिकता है।
अभिलाषा गत दिनों देहरादून आई थी। इस दौरान मैंने और मेरे साथी पत्रकार अवधेश नौटियाल ने उनका साक्षात्कार किया। देहरादून के ब्राइटलैंड स्कूल की छात्रा अभिलाषा ने चंडीगढ़ से इकोनॉमिक्स आनर्स किया और इसके बाद नीदरलैंड से इकोनॉमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। 2011 में देश प्रेम उन्हें भारत खींच लाया। इसके बाद उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस से पीएचडी की। वह बताती हैं कि उन्हें पहाड़ बचपन से लुभाते थे। तो निम से माउंटनेयरिंग में बेसिक कोर्स किया। लेकिन पर्वतारोही नहीं बन सकी। वह पहाड़ों के लिए कुछ करना चाहती थी। यह मौका उन्हें लद्दाख में मिला। उनके पति जी. प्रसन्ना वहां के डिप्टी कलेक्टर हैं। एक दिन वह सीमांत गांव में चुमुर गांव के भ्रमण थे तो वहां की महिलाओं ने हाथों से निर्मित ऊनी उत्पाद दिखाए। इनको बाजार की दिक्कत थी।
बस, यहीं से अभिलाषा के मन में ग्रामीण महिलाओं के उत्थान की योजना ने जोर पकड़ा। 2017 में उन्होंने लूम्स आफ लद्दाख की स्थापना की और ग्रामीण महिलाओं को स्किल्ड बनाना शुरू कर दिया। कमीशनखोर अफसरों और व्यापारियों को उनका प्रयास अपने लिए खतरा लगा तो इन महिलाओं के सामने खूब अड़चनें आईं। लेकिन महिलाओं ने तो ठान लिया था। अभिलाषा ने इन महिलाओं को बल दिया। 2019 में न्यूयार्क में टाइम्स स्क्वायर में पश्मीना से बने उत्पादों का फैशन शो आयोजित कर लद्दाख की महिलाओं और वहां के उत्पादों को विश्वस्तरीय ख्याति दिला दी।
अभिलाषा के अनुसार वह चाहती हैं कि ग्रामीण महिलाएं सशक्त हों। इसके लिए उन्हें स्किल डेवलमेंट और बुनाई तकनीक का प्रशिक्षण दिया। आज उनके काआपरेटिव के साथ 20 गांवों की 400 महिलाएं जुड़ गयी हैं। वह परेक ब्रांड भी लांच कर रही हैं जो कि वूलन के साथ ही काटन में भी कपड़े उपलब्ध कराएगा। वह कहती हैं कि अमूल की तर्ज पर यहां के उत्पादों की ब्रांडिंग करना चाहती हैं। उनके प्रयास रंग ला रहे हैं और पश्मीना को बाजार और नई पहचान मिल रही है। वह चाहती हैं कि उत्तराखंड के नीती-माणा और पिथौरागढ़ के सीमांत गांवों में महिलाओं को इसी तरह से स्वरोजगार से जोड़ा जाना चाहिए। वह इस प्रोजेक्ट में उत्तराखंड की महिलाओं की मदद के लिए तैयार हैं। अभिलाषा के पास लद्दाख की महिलाओं को लेकर एक बड़ा विजन है। काश, अभिलाषा की तर्ज पर कोई एक कर्मठ महिला उत्तराखंड को मिल जाती तो ग्रामीण महिलाओं की तस्वीर और तकदीर संवर जाती।