google.com, pub-9329603265420537, DIRECT, f08c47fec0942fa0
India

राष्ट्रप्रथम – तिरंगे में छुपा स्वतंत्रता का असली मंत्र

पार्थसार्थी थपलियाल

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नागरिकों का आह्वान किया है कि भारतीय स्वाधीनता के अमृतमहोत्सव (स्वाधीनता का 75वां वर्ष ) को हम स्मरणीय बनाएं। इसके लिए उन्होंने कहा कि 2 अगस्त से 15 अगस्त तक हम हमारे स्वाभिमान और स्वतंत्रता के प्रतीक हमारा राष्ट्र ध्वज अपने घरों में सम्मान पूर्वक फहराएं। किसी भी राष्ट्र का ध्वज उस राष्ट्र की संप्रभुता के प्रतीक होता है। “2 अगस्त से”….के पीछे भी एक उद्देश्य है। महात्मा गांधी जी को ध्वज का विचार देने वाले और तिरंगा ध्वज बनाने वाले पिंगली वेंकैया के योगदान को स्मरण करना भी है। पिंगली वैंकैया का जन्म 2 अगस्त 1876, को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के निकट भटलापेनुमारु नामक गाँव में हुआ था। अपनी युवावस्था में पिंगली वेंकैया सरकारी, गैर सरकारी नौकरी भी किये। बाद में गांधी जी से जुड़ गए। 1921 में उन्होंने जो ध्वज बनाया था वह लाल और हरा था। इस बीच कई सुझाव मिले। 1931 में कोंग्रेस के कराची अधिवेशन में जो तिरंगा फहराया गया वह केसरिया, सफेद और हरे रंग का था। शुरू में तिरंगे के बीच मे चरखा बनाया गया। संविधान सभा ने सम्राट अशोक के सारनाथ स्तूप पर बने धम्म चक्र को राष्ट्रध्वज के मध्य में स्थापित करवाया। इस ध्वज को भारत की संविधान सभा नें राष्ट्रीय संप्रभुता के प्रतीक के रूप में 22 जुलाई 1947 को स्वीकार किया। 15 अगस्त 1947 को जब सत्ता हस्तांतरण हुई तब तिरंगे को पहलीबार फहराया गया। सही तथ्य यह भी है तिरंगे में चार रंग है।
यह तिरंगा हमारे स्वाभिमान और स्वाधीनता (Independence) की पहचान है। इसकी रक्षा और सम्मान करना हम सब का कर्तव्य है। हम केवल यह न कहें कि हम राष्ट्रीय प्रतीकों का मन से सम्मान करते हैं। भाव से भावना का प्रकट होना, दिखाई देना एक प्रमाणिकता भी है। इस देश में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो राष्ट्रध्वज का सम्मान नही करते। पिछले दिनों एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें कुछ राष्ट्रद्रोही लोग तिरंगे के ऊपर जूतों सहित चल रहे थे। कुछ लोग हैं जो राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत को सम्मान नही देना चाहते हैं। न ध्वजारोहण के समय सावधान मुद्रा में होते न राष्ट्रगान गाते हैं। इसके लिए वे इस हद्द तक कुतर्क कर बैठते हैं कि ऐसा कहाँ लिखा है?
भारत की मूल भावना है- मातृभूमि पुत्रोहम पृथिव्या:। यह भूमि मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूँ। हम इस भूमि को उसी तरह प्यार और सम्मान दें जैसे हम जन्मदायिनी माता को देते हैं। एक देश के नागरिक होने के नाते इसके प्रति हमारा विचार, विश्वास और सम्मान एक जैसा हो। हमें स्वाधीनता मिली लेकिन हम इसे स्वतंत्रता (freedom) में स्थापित नही कर सके। कुछ लोगों ने सत्ता को डकैती का संवैधानिक मार्ग बना दिया। एक एक चेहरे पर विचार करें। कुछ न समझ आये तो कोलकत्ता के एक कमरे में गोबर की ढेर जैसे नोटों को आपने मीडिया में देख लिया हो, यह सत्य निष्ठा की शपथ का एक उदाहरण है। शपथ ग्रहण समारोह के बाद राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लग जाते हैं। 1947 से अब तक के जितने भी घोटाले हुए वे सब उन धूर्त राजनेताओं के कारण हुए जिन्होंने कभी ईश्वर के नाम पर तो कभी संविधान के नाम पर सत्य निष्ठा की कसमें खाई। जिस देश के राजनेता, राजनयिक, उपराष्ट्रपति, नौकरशाह भ्रष्ट, घूसखोर, बदमाश, अनैतिक और धूर्त हों उस देश को भगवान भी पतन होने से नही बचा सकता।
स्वाधीनता प्राप्ति के बाद से भारत में अनेक लोगों ने इसे बर्बाद करने के लिए NGO स्थापित किये। उन NGO के मार्फत अनेक मिशनरीज की ओर से अपार धन इस देश मे आया। लोगों ने इस धन का उपयोग अपने निजी धंधों में भी लगाया और राष्ट्रद्रोही कामों में भी। उदाहरण के तौर पर ऑक्सफेम, मिशनरीज ऑफ चैरिटी, फोर्ड फाउंडेशन, एमिनिटी इंटरनेशनल आदि। इन संस्थाओं ने सेकुलरिज्म के नाम पर वामपंथ को पनपाया। इन वामपंथी लोगों ने नक्सलवाद को बढ़ाया। धार्मिक विद्वेष को बढ़ावा देने के लिए लोगों को उकसाया। बॉलीवुड के धूर्त जोकरों ने सनातन संस्कृति का उपहास उड़ाकर भारतीयों में हीं भावना विकसित की। जिन लोगों को भारत मे डर लगता है उनमें भारत का पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी है। ऐसे लोगों में सत्यमेव जयते (टी वी कार्यक्रम) में आंसू बहानेवाला आमिर खान भी है। दिल्ली का खान मार्केट का दलाल पत्रकार गैंग और रोटी पर बात करने वाले बोटी शोषक इन सभी ने सत्ता के माध्यम से अगिनित लाभ उठाएं और जै जैकार करते हुए सत्य को उद्घाटित नही होने दिया। आज ऐसे अनेक लोग प्रवर्तन निदेशालय की वक्रदृष्टि के भाजन बने हुए हैं।
विगत 75 वर्षों में भारत अपने नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरी नही कर सका। क्योंकि हम स्वाधीन तो हो गए। 60 देशों के संविधान पढ़कर एक महान संविधान बनाया जिसमें भारत के राष्ट्रीय चिंतन, राष्ट्रीय भावना, राष्ट्रीय संस्कृति और भारतीय जीवन परंपरा नदारद है। वर्तमान में जब हम स्वाधीनता के अमृतमहोत्सव मना रहे हैं घर घर तिरंगा अभियान के माध्यम से कुछ लोग तो जागेंगे। हम विचार करें कि भारत का जीवन दर्शन क्या है? तिरंगे के रंगों को ठीक ढंग से देखेंगे तो भारतीय स्वतंत्रता का असली मंत्र नजर आएगा टैब य्या भी समझ आ जाना चाहिए कि बिना डंडे का झंडा हवा में स्वाभिमान रूप में फहराता नही है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button