राज्य स्थापना दिवस पर एक शहीद की आत्मा
पूरन चन्द्र कांडपाल
राज्य बनने की 24वीं वर्षगांठ पर मैं राज्य आंदोलन में मारा गया शहीद बोल रहा हूं जी, “अलग उत्तराखंड राज्य कि मांग वर्ष 1923 में पहली बार उठी और 1952, 1956, 1968, 1973 और 1979 में यह अधिक गुंजायमान हुई | 1994 के काल खंड में इस अहिंसक मांग पर गोली चला दी गयी और आजाद हिन्द में एक राज्य की मांग पर 42 आन्दोलनकारियों को गोली का शिकार होना पड़ा | रामपुर तिराहे पर बने शहीद स्मारक से ही में एक शहीद आपको इस लम्बी कहानी को एक छोटी सी गाथा के रूप में सुना रहा हूं ।” “एक सितम्बर 1994 को उत्तर प्रदेश की बर्बर पुलिस ने अंग्रेजी हकूमत की तरह खटीमा में निहत्थे आन्दोलनकारियों पर गोली चलाकर 8 लोगों को मौत के घाट उतार दिया | 2 सितम्बर को मसूरी में 8 प्रदर्शनकारी मारे गये | इसके बाद पूरे उत्तराखंड के गांव, कस्बों और नगरों में अहिंसक आन्दोलन चरम पर पहुंच गया | राज्य का सभी वर्ग लेखक, पत्रकार, गीतकार, कवि, किसान, भूतपूर्व सैनिक, विद्यार्थी, स्त्री- पुरुष- बच्चे अपना काम-धंधा और घरबार छोड़कर सडकों पर आ गए | इस आन्दोलन का कोई केन्द्रीय नेतृत्व नहीं था | दोनों ही राष्ट्रीय राजनैतिक दल इससे अलग रहे |” “2 अक्टूबर 1994 को आन्दोलनकारी शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए बसों में बैठ कर उत्तराखंड से दिल्ली आ रहे थे | तब उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे | एक सोची-समझी चाल से उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर आन्दोलनकारियों पर नादिरशाही दमन चक्र चलाया गया | पुलिस की वर्दी पर दाग लगाने वालों ने भोर होने से पहले अचानक निर्दोषों पर आक्रमण कर दिया | लाठी-डंडे –बन्दूक का जम कर इस्तेमाल हुआ |महिलाओं के साथ बदसलूकी की गई जिसने सभ्यता को शर्मसार किया | गन्ने के खेतों में घसीट कर लोगों को पीटा गया । रामपुर, सिसोना, मेदपुर और बागोवाली के लोगों ने महिलाओं की मदद की | ” “एक महिला कह रही थी “काश ! आज मेरी कमर में दराती होती, इन भेड़ियों के मैं भुतड़े (टुकड़े) कर देती |” उत्तराखंड की नारी ने वहां पर वीरांगना लक्ष्मीबाई की तरह संघर्ष किया | पुलिस फायरिंग में वहां पर कई शहीद हो गए और सैकड़ों घायल हुए | 3 अक्टूबर को राजधानी दिल्ली सहित पूरे उत्तराखंड में आन्दोलन और तेज हो गया जिससे देहरादून, नैनीताल और कोटद्वार में 5 लोग मारे गए | 3 नवम्बर को पूरे उत्तराखंड में काली दिवाली मनाई गयी | केवल शहीदों कि नाम पर एक दीपक जलाया गया | 15 अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा ने लालकिले से उत्तराखंड राज्य बनाने की घोषणा कर दी और 9 नवम्बर 2000 को राज्य बन गया | तब से राज्य में दस मुख्य मंत्री बन गए हैं । जिन पुलिस कमांडरों ने जघन्य अपराध कर 42 निर्दोषों को मारा उन्हें तरक्की मिल गई है परन्तु न आजतक शहीदों को न्याय नहीं मिला और न हमारे सपनों का उत्तराखंड बना |” “जब तक दोषियों को दण्डित नहीं किया जाएगा और राज्य की राजधानी देहरादून से गैरसैण नहीं जाएगी, हमारी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी और मैं प्रतिवर्ष इस दिन अपनी फरियाद सुनाते रहूंगा। | मुझे पता है उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष मोर्चा और उत्तराखंड की कई संस्थाएं पिछले 30 वर्षों से दिल्ली के जंतर-मंतर तथा देश में कई जगहों पर शहीदों को न्याय दिलाने के लिए प्रति वर्ष 2 अक्टूबर को अहिंसक प्रदर्शन करते आ रही हैं | हमारी चिताओं पर आप मेले लगाते हैं, हमारे लिए आखें नम करते हैं, इससे कुछ शान्ति जरूर मिलती है | जय भारत, जय उत्तराखंड |” ऋषिकेश रिजॉर्ट में अंकिता भंडारी हत्या काण्ड और छावला दिल्ली में उत्तराखंड की लड़की के हत्यारे तीन नरपिशाचों के बरी होने से हम स्तब्ध हैं। 4 नवंबर 2024 को मार्चूला जिला अल्मोडा, उत्तराखंड में जीएमओ की बस दुर्घटना में 36 लोगों की मौत से देश स्तब्ध है। 27 सीटर बस में 63 लोग बैठे, कोई देखने वाला नहीं। राज्य में बस सेवा चरमराई है। लोग ऐसी बस में बैठने पर मजबूर थे। इन निर्दोषों की मौत पर शासन तंत्र चुप है। 7 फरवरी 2021 को चमोली ऋषिगंगा में कई लोग मर गए। 2 जनवरी 2023 को जोशीमठ दरक गया। हजारों मकानों में दरार आई। कर्णप्रयाग तक कई मकान दरक गए। भूवैज्ञानिकों के अनुसार यह सब अंधाधुंध सुरंग निर्माण और खनन से हुआ है। सरकारें इस बात को अनसुना कर देती हैं। ऐसा विकास किस काम का जिससे लोगों के आशियाने दरक जाएं और कई लोगों की बलि चढ़ जाए ?
म्यर यूट्यूब चैनल लै देखिया । धन्यवाद।
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