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यूपी को लेकर परेशान भाजपा


भाजपा इधर उत्तर प्रदेश को लेकर परेशान है क्योंकि पार्टी के सामने दो बड़ी चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं जिनका हल निकलता दिख नहीं रहा है।
इनमें सबसे प्रमुख है आगामी लोक सभा चुनावों के लिए यूपी में राजग सहयोगियों के बीच सीट बटवारा और एकजुट विपक्ष। विपक्षी एकता के मद्देनजर भाजपा ने यूपी में भी भंडारा लगाकर सभी छोटे दलों को राजग में शामिल होने के लिए। आमंत्रित किया है।

नतीजतन, राजभर, दारा सिंह चौहान और केशव मौर्य सरीखे नेताओं ने दाना चुग तो लिया पर भाजपा नेतृत्व के लिए एक गंभीर समस्या खड़ी कर दी की जिसका उपचार सूझ नहीं रहा है। यह समस्या है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिनको राजभर सहित छोटे दलों के नेताओं का राजग में शामिल होना मंजूर नहीं है क्योंकि ये सभी उनके कट्टर विरोधी रहे हैं।

इसके अलावा इस मसले पर फैसला लेने से पहले मुख्यमंत्री योगी से कोई भी सलाह लेना प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने मुनासिब नहीं समझा। इसने योगी और केंद्रीय नेतृत्व के बीच की खाई को और गहरा कर दिया जिसका प्रभाव निश्चित तौर पर लोक सभा चुनावों पर पड़ेगा और भाजपा को अपना यूपी में 75 सीटें जीतने का लक्ष्य खतरे में पड़ सकता है।
पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा ने यूपी से 64 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। पार्टी ने इस बार प्रदेश में अपने विजय लक्ष्य का विस्तार किया है क्योंकि उसको
उत्तर भारत के अन्य राज्यों में हार की आशंका है तभी तो उत्तर प्रदेश भाजपा ने हाल ही में इस आशंका को सही साबित करते हुए कहा कि पार्टी अन्य राज्यों में होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई यूपी से कर लेगी।
लेकिन क्या यह संभव है? ऐसा इसलिए नहीं लगता क्योंकि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व हर संभव प्रयास करेगा की पार्टी और राजग के बीच सीट बंटवारा उसके मुताबिक हो जो योगी को कतई बर्दाश्त नहीं होगा क्योंकि उस स्थिति में उनका राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा होगा।
उत्तर प्रदेश का रण भाजपा और मोदी शाह के राजनीतिक बर्चस्व का मापदंड होगा क्योंकि यही सबसे बड़ा प्रदेश है जहां गुजरात बनाम शेष भारत की लड़ाई अपने चरम पर है और अभी तक के संघर्ष में योगी गुजरात लॉबी पर भारी पड़ रहे हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर मज़बूत हो रही विपक्षी एकता की लहर से उत्तर प्रदेश अछूता रह जाए ऐसा संभव नहीं है क्योंकि प्रदेश के दो बड़े विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल विपक्षी गठबंधन में शामिल हैं। रही बात बीएसपी की , मायावती ने एलान किया है कि उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। इससे दलित वोटों पर इसलिए भी असर नहीं। पड़ने वाला क्योंकि एक तो प्रदेश में दलितों के उभरते नेता चंद्रशेखर आज़ाद urf रावण ने भी प्रदेश के चुनावी दंगल में उतरने का काम ठोक दिया है जो निश्चित कुछ करें या नहीं करें पर नुकसान तो मायावती का ही करेंगे।
भाजपा की दूसरी परेशानी है मुस्लिम मतदाता जो इस बार विपक्षी एकता के परपेक्ष्य में विभाजित नहीं दिख रहा है। इसका दो कारण हैं। एक राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस की लोकप्रियता में आया जबरदस्त उछाल और दूसरा कांग्रेस द्वारा बड़े भाई जैसे व्यवहार का त्याग।
वैसे भी यूपी में जब जब विपक्षी एकता के तहत चुनाव हुए हैं तब तब भाजपा हारी है चाहे वह बाबरी विध्वंस के उपरांत कल्याण सिंह की सरकार की रवानगी हो या मुलायम सिंह और मायावती की मिलिजुली सरकार या फिर मुलायम सिंह यादव और लोकदल की सरकार।
चूंकि अभी तक यूपी में लोकसभा चुनाव हिंदू बनाम मुस्लिम होता फिलहाल दिख नहीं रहा है इसलिए यहां लोक सभा चुनाव जातीय समीकरण के आधार पर होना तय दिखता है जो भाजपा के पक्ष में जाता प्रतीत होता नहीं दिख रहा है क्योंकि भाजपा के साथ पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाली बड़ी पार्टियां नहीं हैं। तभी तो भाजपा न्यूनतम जनाधार वाली पार्टियों को लुभाने में लग गई है।
इन छोटी पार्टियों के नेता भली भांति जानते हैं कि यही मौका है जब भाजपा से ज्यादा सीटें ली जा सकती हैं और वे ऐसा कर भी रहे हैं। यूं कहिए कि उत्तर प्रदेश में भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व दो मोर्चे पर लड़ाई लड़ रहा है। एक आंतरिक जो ज्यादा खतरनाक है और दूसरा छोटे दलों की बढ़ती मांगे।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि राजभर, चौहान जैसे छोटे दलों के राजग में फिर से शामिल होने से भाजपा को पूर्वी उत्तर प्रदेश में फायदा हो सकता है, पर उसको जो नुकसान पश्चिमी, केंद्रीय और अन्य क्षेत्रों में होगा उसकी भरपाई कैसे होगी।
कुल मिलाकर बड़े और प्रभावशाली सहयोगी दलों के राजग में अनुपस्थिति ने भाजपा के रणनीतिकारों के दिमाग घुमा दिए हैं क्योंकि वे भली भांति परिचित हैं कि प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी के जादू का मिथक चकनाचूर हो गया है और वह आगामी आम चुनावों में पार्टी की नैया पार नहीं लगा सकता। इसलिए राजग के पुनर्गठन की कवायद को अंजाम देने पर उतारू है भाजपा के चाणक्य।

( ये लेखक के निजी विचार हैं )

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