google.com, pub-9329603265420537, DIRECT, f08c47fec0942fa0
India

यूनिफार्म सिविल कोड पर बानी ५ सदस्यीय कमेटी , सेवानिवृत सुप्रीम कोर्ट के जज होंगे इसके प्रमुख

चम्पावत से चुनाव लड़ रहे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने उत्तराखंड में यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने की ठान ली है ? ये मामला भविष्य में कितना आगे बढ़ता है और इस पर औपचारिक रूप से कब फैसला होता है , ये भविष्य के गर्भ में छिपा है .

गौर तालाब है की भाजपा की सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री सेवानिवृत मेजर जनरल भुबन चंद्र खंडूरी ने भी अपने कार्यकाल के दौरान उत्तराखंड में लोकपाल लागू करने के कई आश्वासन दिए . यहाँ तक की भ्रष्टाचार विरोध की अलख जगाने वाले सर्वप्रिय राष्ट्रीय आंदोलनकारी नेता और इंडिया अगेंस्ट करप्शन के प्रणेता आन्ना हज़ारे ने भी तादेन मुख्यमंत्री खंडूरी को बधाई दी थी और उन्हें देश का सबसे ईमानदार और काबिल मुख्यमंत्री घोषित किया था. लेकिन उनके जाने के बाद भाजपा की ये तीसरी सरकार है उत्तराखंड में , और आज तक लोकपाल का कोई पता नहीं , की ये वास्तव में कब लागू होगा ?

बात यहीं तक सीमित नहीं है , चुनाव से पहले – उत्तराखंड और देश भर के पैमाने पर जहाँ उत्तराखंड वासी रहते हैं , भू क़ानून का व्यापक स्थर पर जनजागरण अभियान चला और आज भी जारी है.

चुनाव के दौरान हार के भय से भाजपा सरकार ने एक समिती गठित कर जनता को शांत करने के लिए झुनझुना पकड़ा दिया लेकिन भाजपा की अब्सोलुट मेजोरिटी ( absolute majority) की सरकार उत्तराखंड में आने के बाद इस पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई जबकि सच्चाई ये है की पूर्व उत्तराखंड मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान १२.५ एकड़ की सीलिंग को भी हटा दिया और पूंजीपतियों , उद्योगपतियों के लिए के लिए मनमाफिक जमीन खरीदने के तमाम रास्ते खोल दिए गए.

जनता नाराज़ है की आखिर क्या वजह है की उत्तराखंड की सरकार हिमाचल की तर्ज़ पर यहाँ भू कानून नहीं बना रही ताकि बाहरी लोगों को एक सीमा तक ज्यादा से ज्यादा २५० से ५०० गज जमीन खरीदने का ही प्रावधान हो न की उद्योग के नाम पर १२.५ एकड़ से भी अधिक भूमि.

आज पहाड़ की जमीन बेधड़क बिक रही है बाहरी लोगों के हाथों और यहाँ का डेमोग्राफिक स्ट्रक्चर बिगड़ रहा है. यही नहीं बल्कि डीलिमिटेशन के आड़ में पहाड़ की असेंबली सीटें भी घट रही हैं और मैदान की सीटें बढ़ रही हैं .

नतीजतन , उत्तराखंड राज्य के लिए जो ४६ कुर्बानियां हुईं उनके मायने ही बदल गए हैं. क्या पृथक उत्तराखंड राज्य इसलिए बना था, जनता सवाल कर रही है?

उत्तराखंड में यूनिफार्म सिविल कोड पर अपनी पैनी टिपण्णी देते हुए कैबिनेट सेक्रेटरी में डिप्टी सेक्रेटरी रहे दिनेश बिजल्वाण पुछ्ते हैं की , क्या उत्तराखंड सरकार द्धारा बनाए गए यूनिफार्म सिविल कोड को भारत सरकार के गृह मंत्रालय की संस्तुति के बिना लागू किया जा सकता है। गृह मंत्रालय को भी विभिन्न संबद्ध विभागों से विचार विमर्श करना होगा जो कि खासा समय लेगा। इसलिए जब तक केंद्र सरकार यूनिफार्म सिविल कोड पर आगे नहीं बढ़ती तब तक राज्यों की पहल बेमानी है। हां शोर तो खूब रहेगा।

यूनिफार्म सिविल कोड के लिए बनी ड्राफ्टिंग समिति में सदस्य इस प्रकार हैं : सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज रंजना देसाई , जो इस कमिटी के चेयरमेन भी हैं. अन्य सदस्य हैं , दिल्ली ही कोर्ट के सेवा निवृत जज , पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखंड शत्रुघ्न सिंह , टैक्स पैयर एसोसिएशन के अध्यक्ष मनु गौर और दूँ विश्वविद्यालय के कुलपति सुरेख डंगवाल .

देखना होगा की क्या मौजूदा सरकार जिन्हे उत्तराखंड की जनता ने पुनः इतना व्यापक मेंडेट दिया है , वह भूल क़ानून के वायदे को तात्कालिक तौर पर निभाएगी ?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button