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Uttrakhand

यह विडंबना है कि बजट में नौकरियों में घोटाले पर नकेल कसने की बात वो सज्जन उठा रहे हैं, जिन्होंने विधानसभा अध्यक्ष रहते विधानसभा में बैकडोर से नियुक्तियां की – इंद्रेश मैखुरी

उत्तराखंड सरकार के बजट पर त्वरित टिप्पणी
वित्त मंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल द्वारा पेश किया गया बजट केन्द्रीय योजनाओं का प्रचार और शब्दजाल के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है.
यह विडंबना है कि नकल विरोधी अध्यादेश का ढिंढोरा बजट में भी पीटा गया है, जिसका बजट से कोई संबंध नहीं है. नकल विरोधी अध्यादेश नकल पर नकेल कसने से ज्यादा नकल के खिलाफ आवाज उठाने वालों पर नकेल कसता है, लेकिन बजट से कोई संबंध नहीं होने के बावजूद बजट में उसका गुणगान है.
यह भी विडंबना है कि बजट में नौकरियों में घोटाले पर नकेल कसने की बात वो सज्जन बजट में उठा रहे हैं, जिन्होंने विधानसभा अध्यक्ष रहते विधानसभा में बैकडोर से नियुक्तियां की. इससे अधिक शर्मनाक क्या हो सकता है कि ऐसे व्यक्ति पर कार्यवाही के बजाय उन्हें वित्त मंत्री के पद से नवाजा गया है और वे राज्य का बजट पेश कर रहे हैं.
बरसों-बरस से की जाती शाब्दिक लफ्फाजी- युवा नौकरी मांगने वाला नहीं देने वाला बने- पुनः बजट में दोहराई गयी है. हकीकत यह है कि युवाओं की नौकरियों की लूट राज्य सरकार की नाक के नीचे की जा रही है, जिसमें सत्ताधारी पार्टी के लोग शामिल हैं.
युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के नाम पर केवल ऋण देने की योजनाएँ ही तजवीज की जा रही हैं.
शिक्षा के नाम पर प्राइमरी विद्यालों को फर्नीचर उपलबद्ध कराने की योजना की घोषणा की गयी है, लेकिन अहम सवाल तो है कि प्राइमरी स्कूलों पर ताला लगना कैसे रुकेगा, इसका क्या इंतजाम क्या होगा, इसका कोई जवाब नहीं है.
पॉलीटेक्निक संस्थानों का रैंकिंग फ्रेमवर्क तैयार करने की बात बजट कहता है. लेकिन पॉलीटेक्निक संस्थानों बिना शिक्षकों और प्रधानाचार्यों के चल रहे हैं, जर्जर हो रहे हैं, इनकी रैंकिंग नहीं दशा सुधारने की आवश्यकता है. तकनीकी शिक्षा के दूसरे संस्थान- आईटीआई की भी प्रदेश में यही हालत है, वे भी धीरे-धीरे उजाड़ हो रहे हैं. ऐसे में तकनीकी शिक्षा की सुदृढ़ता की बात कोरी लफ्फाजी है.
बजट में अनुपूरक पोषाहार कार्यक्रम का जिक्र किया गया है. जमीनी हकीकत यह है कि बीते 01 दिसंबर से आंगनबाड़ी केन्द्रों पर राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत धात्री महिलाओं और आंगनबाड़ी जाने वाले बच्चों को मिलने वाला टेक टु होम राशन बंद हो गया है. अब केवल मंडुवा मिल रहा है, जो आंगनबाड़ी की पर्ची पर सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों से मिल रहा है.
नंदा गौरा योजना का जिक्र बजट में है, लेकिन जमीनी यथार्थ यह है कि यह छात्रवृत्ति हासिल करने की प्रक्रिया बेहद जटिल बना दी गयी है.
सबके लिए स्वास्थ्य- का नारा टु बजट में लगाया गया है, लेकिन प्रदेश में खास तौर पर पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत खस्ता है और पहाड़ में मेडिकल कॉलेज समेत अधिकांश सरकारी अस्पताल सिर्फ रेफर सेंटर ही हैं.
कृषि को विकास यात्रा का प्राथमिक बिंदु बजट कहता है. लेकिन पर्वतीय कृषि पूरी तरह से तबाह होने के कगार पर पहुंच गयी है. उसके उन्नयन, संवर्द्धन की कोई योजना सरकार के पास नहीं है. मैदानी क्षेत्रों में भी किसान बदहाल है.
औद्यानिकी के विकास की बात तो कही गयी है, लेकिन उद्यान विभाग की समस्त योजनाएँ तो उसके भ्रष्ट निदेशक के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही हैं, जिन पर सरकार की घोषणा के बावजूद कोई कार्यवाही नहीं की गयी है.
वित्त मंत्री के बजट भाषण का बिंदु संख्या 113 कहता है कि “देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, रूड़की, हल्द्वानी, भगवानपुर एवं अल्मोड़ा का मास्टर ड्रेनेज प्लान तैयार करने की कार्यवाही विभिन्न चरणों में गतिमान है.” स्मार्ट सिटी बनाने का ढ़ोल पीटते हुए लगभग एक दशक होने को है. लेकिन शहर कितने स्मार्ट बने यह वित्त मंत्री के बजट भाषण का उक्त बिंदु बता रहा है कि अभी भी राज्य के प्रमुख शहरों का ड्रेनेज प्लान ही बन रहा है.
बजट में उद्योगों को प्रोत्साहन और निजी क्षेत्र के औद्योगिक आस्थानों की स्थापना की बात कही गयी है. लेकिन उन उद्योगों के भीतर स्थानीय युवाओं एवं श्रमिकों के हितों का संरक्षण हो, इसकी कोई योजना सरकार के पास नहीं है. इसका जीता-जागता उदाहरण सितारगंज के सिडकुल की जायडस फैक्ट्री है, जिसके बंदी को राज्य सरकार ने अवैध घोषित किया है,लेकिन ढाई सौ दिन से अधिक बीतने के बावजूद 1200 से अधिक मजदूरों के हितों को संरक्षित करने में राज्य सरकार संरक्षित करने में नाकामयाब रही है.
जब सरकार बजट में निजी क्षेत्र के औद्योगिक आस्थानों की स्थापना की बात कह रही है तो श्रमिकों के अधिकारों पर यह हमला और तेज होगा.
कुल मिला कर राज्य पर कर्जे का बोझ निरंतर बढ़ रहा है, उससे उबरने की कोई ठोस नीति व दृष्टि सरकार के पास नहीं है और उत्तराखंड सरकार भी केंद्र सरकार की तर्ज पर केवल प्रचार करने और गाल बजाने को ही एकमात्र कार्यभार समझती है.
-इन्द्रेश मैखुरी
राज्य सचिव, भाकपा(माले)

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