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मुझे कुछ तजुबों से मेहरूम कर गए शरद दत्त जी : हबीब अख्तर

मुझे कुछ तजुबों से मेहरूम कर गए शरद दत्त जी

उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में विशेष दक्षता हासिल थी। दूरदर्शन में उन्होंने शानदार लंबी पारी खेली I वरिष्ठ पद से सेवानिवृत्त हुए I उन्हें टीवी क्षेत्र की विशेषज्ञता तो थी ही, साथ ही वह साहित्य के क्षेत्र में विशेष दखल रखते थे I उन्होंने दुनिया के बड़े-बड़े कहानीकारों को पढ़ा ,समझा , लेकिन मंटो की रचनाओं और उनके जीवन को लेकर जो जानकारियां उनके पास थी शायद देश में किसी दूसरे व्यक्ति के पास नहीं । वह सब उन्होंने अपनी किताबों में लिख दिया। जो निश्चित रूप से मंटो के प्रेमियों और आलोचकों के लिए बड़ी पूंजी है।

जब उन्हें पता चला कि मैं रेडियो, टीवी चैनल्स में बुलाया जाता रहा हूं और दूरदर्शन से प्रसारित बेस्ट पार्लियामेंटेरियन अवार्ड से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, पूर्व गृह मंत्री इंद्रजीत और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी सरीखे दिग्गज राजनेताओं की जीवनी का स्क्रिप्ट लिख चुका हूं। उन्हें यह काम याद न रहने के अफसोस के साथ खुशी हुई कि दूरदर्शन में उनके कार्यकाल के दौरान यह काम मैंने किया और अपने परिचितों से कहा – यार हबीब से काम करवाओ , इन्हें तो हर शैली में कलम चलाना आता है।

शरद जी मेरी बेबाक वॉक शैली और लेखन शैली से बहुत मुतास्सिर थे। मेरे और उनके बीच बनी निकटता का शायद यही एक बड़ा कारण था।

आदत हसन मंटो और फ्रेंज काफ्का पर हम अक्सर बातें करते रहते थे। उन्होंने फ्रेंज काफ्का और उनकी रचनाओं के बारे में बहुत कुछ ऐसा बताया जिनसे मुझ समेत बहुत लोग अनजान हैं।

मंटो के रचना इतिहास और उनके बारे में जानकारी का वे भंडार थे। उन्हें जब पता चला मैं आदत हसन मंटो का सौदई हूं और दुनिया में सबसे बेहतरीन और बड़ा कहानीकार मानता हूं। तब उन्होंने मंटो पर लिखी अपनी किताब पढ़ने को दी।

उसमें मुझे भूली बिसरी कहानियां, ऐसी कहानियां पढ़ने को मिली जो शायद किसी पुस्तक में संकलित नहीं हैं। मंटो के जीवन के विभिन्न आयाम का इतना विस्तृत विवरण शायद और कहीं नहीं है।

हबीब तुम मुझ पर एक लेख लिख दो… शरदजी ने साधिकार अनुरोध किया…

मैंने उनसे कहा बिलकुल लिखूंगा लेकिन मेरी एक शर्त है। उन्होंने मान ली और कहा ठीक है , बताओ कब चाय पीने और गपशप करने आओगे मेरे घर। मैंने कहा कि जिस रविवार आपके पास वक्त हो तब मैं आ जाऊंगा। इसके साथ मैंने उनसे कहा कि चूंकि मैं पहले कभी आपके घर नहीं आया, इसलिए मेरी आसानी के लिए अपना ड्राइवर भेज दीजिएगा। मैं आ जाऊंगा।

तय हुआ अगले रविवार को उनका ड्राइवर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया आ जायेगा वहां से उसके साथ मैं शरद दत्त जी के घर आ जाऊंगा।

मैने उस रविवार का इंतजार बेचैनी के साथ किया। उस रविवार को मैं जल्दी तैयार होकर अपने घर पर उनके फोन के इंतजार में बैठा था। दोपहर बाद उनका फोन आया कि उनके ड्राइवर की तबियत ठीक नहीं है, इसलिए आज मुलाकात संभव नहीं।

इसके बाद क्लब में एक दो मुलाकात चली फिर तय हुआ कि अगले रविवार मैं शरद जी के निवास उनसे मिलने जाऊंगा, लेकिन उस रविवार भी उनका ड्राइवर उपलब्ध नहीं रहा।

इसलिए घर जाकर उनके परिवेश, घर का माहौल , उनकी लाइब्रेरी खाने पीने की पसंद, अंदाज, नौकर चाकर से बरताव और घर आए मेहमानों से मुलाकात का तौर तरीका समझने मैं उनके घर जाना चाहता था।

इस मुलाकात के न हो पाने की वजह से उनकी किस्सागोई से महरूम रह गया और एक उत्कृष्ठ साहित्यकार को अपनी कलम और दृष्टि से दुनिया से दो चार करने से चूक गया।

यह भी बता दूं कि तय मुलाकात नहीं होने के बाद हम सालों साल मिलते जुलते रहे लेकिन उन्होंने मिलने की फिर कभी बात नहीं छेड़ी…पर एक साथ जलपान और सिगरेट लेने देने का सिलसिला हम दोनों के बीच जारी रहा I

एक खास बात यह भी कि क्लब में जब मैं उनसे मुलाकात के लिए उनकी टेबल पर हाजिर नहीं हो पाता था तब वे खुद चलकर मेरी ओर आते और कहते कि हबीब एक सिगरेट तो पिलाओ फिर एक दूसरे के हालचाल जानने का सिलसिला चलता।
वह शख्स चला गया एक शख्सियत शरद जी को विनम्र श्रद्धांजलि…

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2 Comments

  1. हबीब अख्तर जी,बहुत ही बेहतरीन अनुभव .ग़ज़ब की शख्सियत थे आदरणीय शरदजी , इतने बड़े इंसान पर सभके दोस्त थे , एक ज़िंदादिल वयक्तित्व के साथ व्यक्ति भी. सभी को अपनापन का एहसास दिलाते थे और बतौर एक लेखकः चिंतक , कहानीकार और दोस्त , उनका कोई मुकाबला नहीं था , उनका जाना निसंदेह दूरदर्शन , बुद्धिजीवी वर्ग, उनके मित्रों मेंउनका यकायक जाना, एक शुन्य का एहसास कराएगा और प्रेस क्लब तो मानो अजीब सा सूनापन महसूस करेगा. मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि जी
    Sunil Negi, Editor, UK nation news

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