मानसिक स्वास्थ्य को लेकर आचार्य प्रशांत ने किया छात्रों के साथ संवाद
नई दिल्ली। प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक एवम पूर्व सिविल सेवा अधिकारी आचार्य प्रशांत ने आईआईटी के छात्रों के साथ मानसिक स्वास्थ्य को लेकर संवाद किया। तथा कहा कि मन व अध्यात्म का बहुत गहरा संबंध है , अध्यात्म से मन को साधा जा सकता है ,यह आंतरिक शांति को मजबूत करता है और खुद से बड़ी ताकत से जुड़ाव की भावना प्रदान करता है।
रविवार को आईआईटी के डोगरा हाल में अलुमनाई एसोसिएशन के तत्वावधान में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर आयोजित कार्यशाला का प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक आचार्य प्रशांत ने दीप प्रज्वलित कर शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि मन का पूरा माहौल तेजी से बदलता है, हम क्या नहीं बदल देते और सब कुछ बदल के भी हमें चैन कहाँ मिलता है । लोग घर बदलते हैं, नौकरी बदलते हैं और यह सब बदल के भी मन को शांति नहीं मिलती । उन्होंने कहा कि मन को कुछ चाहिए, उसके बिना वो रुकेगा नहीं । उसके बिना वो इधर उधर, भागता ही रहेगा , अंततः तुम जिधर को भी भागते हो यही सोच के भागते हो ना की ये मिल गया तो इसके बाद और कुछ नहीं चाहिए; अगर तुम्हे पता हो की जिस तरफ तुम भाग रहे हो, उसके मिलने के बाद भी तुम्हें और चाहिए होगा, तो उसकी ओर भागोगे ?
आचार्य प्रशांत ने कहा कि आगे निकलने की होड़ व भागदौड़ भरी जिंदगी में इंसान अकेला हो गया है हम क्या हैं क्यों जी रहे हैं, हमारा उद्देश्य क्या है हमे पता ही नही होता ,इन्ही वजहों से युवाओं में मानसिक अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो रही है।उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमें खुद को जानना होगा उसके लिए अध्यात्म ही हमारी मदद कर सकता है, अध्यात्म हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में आने वाले तनाव को दूर कर सकता । उन्होंने कहा कि शोध से यह सिद्ध हो गया है कि आध्यात्मिकता मन और शरीर दोनों को लाभ पहुंचा सकती है। आध्यात्मिक अभ्यास उन्हें नकारात्मक भावनाओं को कम करने, अर्थ खोजने और दूसरों के साथ अपने संबंधों को गहरा करने में मदद करते हैं।आध्यात्मिकता आत्मसम्मान, आत्मविश्वास, आत्म-नियंत्रण की कमी और दैनिक कार्यों और चुनौतियों से डर जैसे मुद्दों को दूर करने में मदद कर करती है। यह सीधे तौर पर मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत रखने का एक तरीका भी हो सकता है।
उन्होंने कहा कि यहां तक कि जो लोग किसी धर्म का पालन नहीं करते हैं वे भी आध्यात्मिकता से लाभ प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि यह धर्मनिरपेक्ष समुदायों के बीच एक प्रचलित अवधारणा है कि अध्यात्म केवल कुछ लोगों के लिए है जो एक धर्म विशेष से जुड़े हैं लेकिन ऐसा नही है अध्यात्म हर इंसान के लिए जरूरी है।उन्होंने कहा कि लोगों ने कभी भी आध्यात्मिक संसाधनों का उपयोग करना सीखा ही नही।, जबकि वे ऐसा बहुत आसानी से कर सकते हैं।आचार्य प्रशांत ने कहा युवाओं को सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है लेकिन वह उन्हें मिल नही पाता, सही जिंदगी कैसे जीनी है इसका भी हमे पता नहीं होता, कैरियर बनाने के लिए कोई भी काम नही चुना जा सकता सही काम का चुनाव करना होता है, सही काम का चुनाव होता है आत्मज्ञान से ।
उन्होंने कहा कि पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, ये एक चिंता का विषय है लेकिन हम भोग में इतने लिप्त हैं कि हमे समझ ही नही आ रहा अब हमारे पास बहुत ज्यादा समय नही है केवल दो साल बचे हैं यदि हम अभी भी नही जागे तो फिर बहुत देर हो जाएगी और फिर महाविनाश तय है। पर अपनी फ़िक्र हम नहीं करते, जानते हो उसमें धारणा क्या बैठी हुई है? ‘हम तो सही हैं, हमें थोड़े ही ज़रूरत है अपनी फ़िक्र करने की!’ अगर अपनी फ़िक्र करनी है, तो उसके लिए सबसे पहले स्वीकार करना पड़ेगा न, कि हमारे ऊपर ख़तरा है, और हमें ठीक होने की ज़रूरत है क्योंकि हम ग़लत हैं? तो हम अपनी फ़िक्र नहीं करना चाहते।
उन्होंने कहा कि इंसानियत जिस तरीक़े से जी रही है, और जो हमने अभी पूरे तरीक़े से अहंकार पर आधारित जीने का ढाँचा बना रखा है, वो या तो हमें बाहर से मार देगा। और अगर बाहर से नहीं मारता संयोगवश, तो भीतर से तो हमारा विनाश सुनिश्चित ही है, उन्होंने कहा कि आज इस दुनिया में जो अनुपात है, मनोरोगियों का, उतना कभी भी नहीं था। आज जो औसत तनाव के स्तर हैं, इतने द्वितीय विश्व-युद्ध के समय भी नहीं थे, सैनिकों में भी नहीं पाये जाते थे जितने आज आम आदमी में होते हैं। शोध पत्र को देखो। आज जितने मामले डिप्रेशन मानसिक विकार के होते हैं, उतने कब होते थे? हम बहुत तेज़ी से एक ऐसी दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं जिसमें हर आदमी पागल होगा; बाहर से स्वस्थ होगा और भीतर-ही-भीतर साइको (पागल) । अब क्या करोगे।
सत्र से पूर्व एलुमनाई एसोसिएशन के सचिव पंकज कपाडिया ने आचार्य प्रशांत को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।इस दौरान आईआईटी दिल्ली के छात्र, फेकल्टी व देशभर के साधको ने प्रतिभाग किया। सत्र के बाद आचार्य प्रशांत ने आईआईटी दिल्ली के छात्रों को स्वयं उनके द्वारा बनाया गया एक होलिस्टिक इंडिविजुअल डेवलपमेंट प्रोग्राम (HIDP) तोहफ़े में दिया जिससे वे अपना आंतरिक विकास आध्यात्मिक तरीक़े से कर सकें।