भाषा के विकास में सहित्यकारों की भूमिका महत्वपूर्ण न की शासन की – राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी / मुंबई में उत्तराखंड की भाषाओं का सम्मलेन सम्पन्न
शनिवार, 4 जून 2022 को महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के मुख्य आथित्य में मुंबई के राजभवन स्थित सभागृह में उत्तराखंडी भाषा सम्मेलन का भव्य आयोजन किया गया । समारोह के प्रारम्भ में स्वागत भाषण देते हुए हिंदी एवं उत्तराखंडी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. राजेश्वर उनियाल ने अपने उद्बोधन में उत्तराखंडी भाषा के औचित्य पर प्रकाश डालते हुए अपने छोटे से राज्य उत्तराखंड की भाषाई स्थिति का परिचय देते हुए एक वैचारिक तथ्य बताया कि 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड की कुल जनसंख्या 1 लाख 86 हजार है, जिसमें 24 लाख 82 हजार अर्थात 24.61 प्रतिशत गढ़वाली, 20 लाख 81 हजार अर्थात 20.63 प्रतिशत कुमाउनी, 1 लाख 37 हजार अर्थात 1.36 प्रतिशत जौनसारी सहित कुल मिलाकर 46.60 प्रतिशत ही पहाड़ी भाषाएँ हैं। शेष 53.40 प्रतिशत में से 42.55 प्रतिशत हिंदी, 04.22 प्रतिशत उर्दू, 02.61 प्रतिशत पंजाबी, 01.50 प्रतिशत बांग्ला व 01.05 नेपाली हैं । लेकिन यदि हम गढ़वाली, कुमाउनी व जौनसारी के स्थान पर इन्हें उत्तराखंडी भाषा कहें, तो हम 46.60 प्रतिशत अर्थात उत्तराखंड की सबसे बड़ी भाषा का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
अनुच्छेद 347 के अनुसार यदि किसी राज्य का जनसंख्या का अनुपात चाहे, तो वह भाषा उस राज्य के शासकीय कार्यों हेतु ठीक उसी तरह से प्रयुक्त हो सकती है, जैसे छतीसगढ़ के लिए छतीसगढ़ी, झारखंड के लिए झारखंडी आदि हैं । इसी प्रकार हम भी उत्तराखंड शासन के कामकाज हेतु उत्तराखंडी भाषा को प्रयुक्त कर सकते हैं ।
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने भी अपने आशीर्वचन में इस बात से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि जब हम पद्य अर्थात गीत कविताओं में उत्तराखंडी हो सकते हैं, तो गद्य में भी प्रयास किया जा सकता है । डॉ. उनियाल ने इस बात को भी स्पष्ट किया कि हम उत्तराखंडी भाषा के अलग निर्माण की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी आदि सभी 20-22 पहाड़ी बोली-भाषाओं में एकरूपता लाते हुए इसके ही परिष्कृत स्वरूप को उत्तराखंडी के रूप में प्रचलित करें, ताकि हमारी उत्तराखंड की भाषाई एकत अक्षुण्ण रह सके तथा हमारी सभी लोकबोली व भाषाएँ भी फलफूल सकें ।
इस सम्मेलन में देहरादून से डॉ. आशा रावत, दिल्ली से नीलांबर पांडे व डॉ. बिहारीलाल जलंधरी एवं हल्द्वानी से गणेश पाठक ने भी उत्तराखंडी भाषा का समर्थन करते हुए अपने-अपने विचार प्रगट किए ।
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने अपने आशीर्वचन में इस बात का विशेष उल्लेख किया कि किसी भी भाषा का विकास भाषाविद साहित्यकारों के प्रयासों तथा आमजन द्वारा इसको अपनाने से ही होती है । इसमें शासन की भूमिका का कोई विशेष महत्व नहीं होता है, इसलिए साहित्यकारों को शासन के सहयोग की अपेक्षा अपने कृतित्व के बल पर अधिक प्रयास करना चाहिए।
मंच का सफलतापूर्वक संचालन संजय बलोदी प्रखर ने किया । यह संगोष्ठी चामू सिंह राणा के संयोजन में सम्पन्न हुई । संगोष्ठी में एडवोकेट एवं लेखिका ममता भट्ट सहित मुंबई के कई प्रबुद्ध साहित्यकारों एवं धर्मानंद रतूड़ी महाराज, रमन मोहन कुकरेती, ललिनानंद बहुगुणा, राम सिंह घटाल, बुद्धि प्रसाद देवली, जमन बिष्ट, महिपाल नेगी, दिनेश बिष्ट, महेंद्र गुसाईं व हंसा कोश्यारी व शोभा ध्यानी सहित कई प्रबुद्ध प्रवासियों ने समारोह की शोभा बढ़ाई । ज्ञात हो कि डॉ. राजेश्वर उनियाल के संपादन में उत्तराखंडी भाषा नीति संबंधी एक पुस्तक का शीघ्र प्रकाशन किया जा रहा है, जिसमें उत्तराखंड के साहित्यकारों के लेख आदि आमंत्रित किए जा रहे हैं ।
भाई साहब आपका यह आलेख पढ़ रहा था। आपने लिखा कि कोश्यारी जी ने गढ़वाली कुमाऊनी भाषा के गद्य के पक्ष को कमजोर पाया।
दरअसल गढ़वाली कुमांऊनी भाषा में गद्य के खिचड़ी स्वरूप के लिए वे कलमकार जिम्मेदार हैं जिन्होंने कविताओं में तो भाषा की शुद्धता का ख्याल रखा लेकिन गद्य में साहित्य के नाम पर जानबूझकर हिंदी और अंग्रेजी शब्दों को ठूंसते रहे। जरूरी नहीं कविता रचने वाला गद्य लिखने में भी पारंगत हो। कई ऐसे स्वनाम धन्य साहित्यकार भी हैं जिनके लेखन में व्याकरणीय अशुद्धियों की भरमार है। और यही लोग स्थानीय भाषाओं के मठाधीश बने हैं। कई ऐसे भी महानुभाव हैं जो अपनी मातृभाषा का एक पैरा भी शुद्ध नहीं लिख सकते।
उत्तराखंडी भाषा के प्रारूप कार डा. जालन्धरी जी के एक गढ़वाली काव्य संग्रह की भूमिका मैंने लिखी है। डा.राजेश्वर उनियाल जी का भी गढ़वाली भाषा में एक काव्य संग्रह है । ये दोनों महानुभाव अपनी मातृ भाषा को नकार नहीं सकते। जहां तक नई भाषा के निर्माण का प्रश्न है तो भाषा के नाम पर प्रयोग तो पहले भी हुए हैं। एक बार एक कोई अग्रवाल सज्जन थे उन्होंने गढ़वाली भाषा की अलग लिपि बनाकर राज्यपाल को सौंप दी थी। अतः इस संदर्भ में ज्यादा नहीं लिखूंगा।
एक नारा और है- आठवीं अनुसूची। लेकिन आठवीं अनुसूची की बात करने वालों को भी जानकारी नहीं है कि वास्तव में कितना साहित्य छप चुका है। बिना पुख्ता जानकारी के ये कैसे पटल पर बात रखेंगे समझ से बाहर है। आठवीं अनुसूची से पहले स्थानीय भाषाओं के संरक्षण का प्रयास जरूरी है । सच्चाई यह है कि उत्तराखंड में स्थानीय भाषाओं को संवारने के प्रयास नगण्य हैं। जबकि मैं विगत कई सालों से स्थानीय भाषाओं के संरक्षण और शोध संस्थान की मांग कर रहा हूं। दो मुख्य मंत्रियों को में पत्र सौंप चुका है। लेकिन आज भी थका नहीं हूं प्रयासरत हूं.
आज उत्तराखंड राज्य के आधार पर ये लोग उत्तराखंड की दो प्रमुख भाषाओं गढ़वाली और कुमाऊनी को दरकिनार कर उत्तराखंडी भाषा के निर्माण की पैरवी कर रहे हैं। यदि चार पांच दशक बाद किन्हीं कारणों से गढ़वाल और कुमाऊं नाम से भी दो राज्य अस्तित्व में आ जाएं तो क्या फिर भाषा का स्वरूप अलग होगा? ऐसा मजाक भी विश्व भर में किसी भी भाषा में आज तक देखने सुनने को नहीं मिला।
लेकिन क्योंकि वर्तमान में खिचड़ी भाषा ही बहुसंख्यक रचनाकारों के सृजन में है इसलिए मूल से जुड़े रचनाकार नई भाषा गढ़ने वालों का खुलकर विरोध करें भी तो कैसे करें?
कहने का तात्पर्य यही है कि भाषाओं पर इस प्रयोग को निमंत्रण देने के लिए स्थानीय भाषाओं के मूल से जुड़े रचनाकार नहीं बल्कि नकली भाषा गढ़ने वाले ही जवाबदेह हैं।
आज उत्तराखंड राज्य के आधार पर ये लोग उत्तराखंड की दो प्रमुख भाषाओं गढ़वाली और कुमाऊनी को दरकिनार कर उत्तराखंडी भाषा के निर्माण की पैरवी कर रहे हैं। यदि चार पांच दशक बाद किन्हीं कारणों से गढ़वाल और कुमाऊं नाम से भी दो राज्य अस्तित्व में आ जाएं तो क्या फिर भाषा का स्वरूप अलग होगा? ऐसा मजाक भी विश्व भर में किसी भी भाषा में आज तक देखने सुनने को नहीं मिला।
लेकिन क्योंकि वर्तमान में खिचड़ी भाषा ही बहुसंख्यक रचनाकारों के सृजन में है इसलिए मूल से जुड़े रचनाकार नई भाषा गढ़ने वालों का खुलकर विरोध करें भी तो कैसे करें?
कहने का तात्पर्य यही है कि भाषाओं पर इस प्रयोग को निमंत्रण देने के लिए स्थानीय भाषाओं के मूल से जुड़े रचनाकार नहीं बल्कि नकली भाषा गढ़ने वाले ही जवाबदेह हैं।
Response of eminent Garhwali, Uttarakhandi literateur, poet, author of several books Narendra Kathaith sent to me on my whatsApp after going through the above news on a function held at Governor Bhawan, Mumbai Maharashtra.
Sunil Negi, author