भारत कनाडा टकराव ने हासिल किए नए आयाम
कुशाल जीना
एक सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से शुरू हुए भारत और कनाडा के बीच टकराव में अब नए आयाम जुड़ गए हैं क्योंकि अमेरिका सहित पांच आंखें गठबंधन सदस्य भी इस विवाद में न केवल शामिल हो गए हैं बल्कि कनाडा का पक्ष ले रहे हैं।
इस टकराव से जहां एक ओर कनाडा की अंतर्राष्ट्रीय छवि को गहरा नुकसान पहुंचा है वहीं दूसरी ओर इसने भारत और अमेरिकी संबंधों को भी प्रभावित किया है क्योंकि अमेरिका ने भारत को कनाडा सरकार द्वारा इस मामले में की जा रही जांच में सहयोग करने की सलाह दी है।
इस पारस्परिक विवाद में चार अन्य विकसित देशों के शामिल होने से मामला अंतर्राष्ट्रीय तूल पकड़ता जा रहा है क्योंकि कनाडा पांच आंखें गठबंधन का एक सदस्य है। इस प्राचीन गठबंधन का नियम है कि किसी भी एक सदस्य का मसला समूचे गठबंधन का हिस्सा माना जाएगा।
लिहाजा, इससे वैश्विक मंच पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र देश माने जाने वाली और अंतर्राष्ट्रीय नियमों का पालन करने वाली भारत की छवि को झटका लग सकता है। शायद इसीलिए भारत सरकार इस दिशा में फूंक फूंक कर कदम उठा रही है।
इस विवाद ने तब तूल पकड़ा जब कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूड्रो ने वहां की संसद में एक सिख अलगाववादी नेता की हत्या में भारत का हाथ होने का आरोप लगाया।
बाद में कनाडाई सरकार ने भारत के एक वरिष्ठ राजनयिक को वापस भेज दिया। इसके बाद भारत ने भी ऐसी ही एक कार्यवाई करके कनाडा को मुंह तोड़ जवाब दिया जिससे मामला और बड़ गया।
दोनों पक्षों ने आपसी व्यापार और राजनयिक संबंधों को भी घटा दिया है। दिल्ली में हाल ही में संपन्न हुई जी 20 देशों की बैठक में दोनों पक्षों ने इस मामले एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते हुए बयान दिए।
कनाडा ने कहा कि वह अपने नागरिक की हत्या की जांच के लिए प्रतिबद्ध है और इसके लिए भारत सरकार को उसका सहयोग करना चाहिए। भारत का कहना था कि एक लोकतांत्रिक देश है और इस तरह के अपराधों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय पद्धति पर न विश्वास करता है और न ही पालन।
इसके बाद अमेरिका के कनाडा के पक्ष बयान देते ही ब्रिटेन ने भी वही कहना शुरू कर दिया। इसी साल जून में एक सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर जो अलगाववादी संगठन खालिस्तान टाइगर फोर्स का प्रमुख था, की मास्क पहने दो बंदूकधारियों ने कनाडा के सरे में स्थित एक गुरुद्वारे के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी थी।
भारत अतीत में कई बार कनाडा में चल रही भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों पर वहां की सरकार से रोक लगाने का आग्रह कर चुका है लेकिन कनाडा सरकार ने इस मामले में कोई भी कार्यवाही नहीं की, उल्टे भारत पर अलगाववादी की मौत में शामिल होने का आरोप लगा दिया।
अगर जानकर राजनयिकों और विदेशी मामलों के विशेषज्ञों की माने तो इस पूरे प्रकरण से दोनों देशों के न केवल व्यापार पर गहरा असर पड़ेगा बल्कि पारस्परिक संबंधों के सुधारने में भी काफी समय लगेगा। इसका सबसे बड़ा नुकसान उन भारतीय नागरिकों का होगा जो कनाडा में पड़ने या बसने जाना चाहते हैं।
भारत के बाद सिखों की सबसे ज्यादा आबादी 770,000 कनाडा में ही है जो वहां की कुल आबादी का 2.1 प्रतिशत है। दोनों देशों के बीच संबंधों में तल्खी 2015 में उस समय आनी शुरू हुई जब जस्टिन ट्रूडेयू ने प्रधान मंत्री बनते ही अपनी सरकार में 4 सिखों को मंत्री बनाया था। इसके अलावा ट्रूडेयू सरकार ने कनाडा के उन छह सिख नागरिकों के खिलाफ खालिस्तान का समर्थन करने पर कोई कार्यवाही नहीं की जिन पर भारत ने ऐतराज जताया था।
मौजूदा हालात में कनाडा का हौंसला इसलिए भी बुलंद है क्योंकि पांच आंखें गठबंधन का उसको समर्थन प्राप्त है जो खासा मायने रखता है।
पांच आंखें गठबंधन में कनाडा के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। इस गठबंधन की अनौपचारिक उत्पत्ति फरवरी 1941 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान तब हुई थी जब ब्रिटेन और अमेरिका के गुप्तचर शत्रु देशों के गुप्त कोड को तोड़ने के लिए ब्रिटेन के ब्लेचले में मिले थे।
तब तक अमेरिका विश्व युद्ध में शामिल नहीं हुआ था। वह युद्ध में 17 मई 1943 में उतरा और तब इस गठबंधन की विधिवत स्थापना हुई। इसके बाद दोनों देशों की गुप्तचर एजेंसियों ने पहले हिटलर की जर्मन सेना का गुप्त कोड को तोड़ लिया जिससे हिटलर को बहुत नुकसान पहुंचा। इस समूह ने बाद में जापान के सैन्य गुप्त कोड को भी तोड़ा था।
1948 में इस गठबंधन में कनाडा शामिल हुआ। 1956 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड पांच आँखें संधि से जुड़े। उस समय इस समूह में तत्कालीन पश्चिम जर्मनी, नॉर्वे और डेनमार्क भी सदस्य थे। जो धीरे धीरे इससे अलग हो गए।
अब केवल पांच देश इसमें बाकी रह गए हैं। इसीलिए इसे पांच आंखे गठबंधन कहा जाता है। इसके पांचों सदस्य आपस में गुप्त सैन्य और गुप्तचर सूचनाएं बांटते हैं और आपसी सुरक्षा से संबंधित रणनीतियां बनाते हैं। इस गठजोड़ की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये एक सदस्य देश पर आई विपत्ति को पूरे सामूहिक मुसीबत मानते हैं और उसके अनुरूप कार्य करते हैं।
( ये लेखक के अपने निजी विचार हैं)