google.com, pub-9329603265420537, DIRECT, f08c47fec0942fa0
Cases and lawsuits

भारतीय न्यायिक प्रणाली को आत्म चिंतन का उद्घोष

प्रो. नीलम महाजन सिंह

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, मई 2025 को सेवा निवृत्त हो रहे हैं उनसे निवेदन है कि वे एक जूडिशल ऑर्डर पास कर दें कि, न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के दोषी न्यायाधीशों के साथ समान्य नागरिक के सम्मान कानूनी कार्यवाही होगी। सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया का ध्येयवाक्य में न्याय की जीत का विवरण है। सुप्रीम कोर्ट के चिन्ह (logo) में अशोक चक्र बना हुआ है, जिसके नीचे संस्कृत का श्लोक लिखा हुआ है – ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ संस्कृत के इस श्लोक का अर्थ है “जहां धर्म है, वहां जय (जीत) है। सबसे पहले, मैं कह सकती हूँ कि आज यह लेख लिखते हुए मेरा मन बहुत व्यथित है। भ्रष्टाचार व भारतीय न्यायिक प्रणाली के बारे में, केवल वित्तीय भ्रष्टाचार ही नहीं है, परंतु नैतिक मूल्यों का तिरस्कार भी हुआ है। क्या हैं न्यायाधीशों द्वारा यौन उत्पीड़न के मामले? इस पर मुकदमा चलाने वाले, वादियों के साथ असंयमित भाषा में बात करना, न्यायधीशों के घमंड का प्रतीक है।

फिर जज लोग न्यायिक अवमानना ​​की शक्ति का उपयोग कर, जनमानस को त्रासद करते हैं। मौलिक अधिकारों के हनन ने वास्तव में भारतीय न्यायपालिका की पारंपरिक प्रणाली की शक्ति को नष्ट कर दिया है। मैंने हमेशा सोचा था कि राजनेता भ्रष्ट हो सकते हैं, नौकरशाह भ्रष्ट हो सकते हैं, लेकिन मैं न्यायपालिका में विश्वसत रही। मैं खुद एक लेखिका व वकील हूँ, जिसने मानवाधिकारों के संरक्षण का काम किया व कई लोगों की मदद की। जो सामाजिक व आर्थिक रूप से हाशिए पर पड़ा वर्ग है, उन्हें मुफ्त में आगे बढ़ाया। मेरा संघर्ष, एक सड़ी हुई व्यवस्था के खिलाफ़त में है, जो एक साधारण आदमी को न्याय नहीं देता। इसके बजाय पुलिस की शक्ति का दुरुपयोग होताव है मुकदमेबाज़ी से अनेक घर बर्बाद हो जाते हैं। न्यायमूर्ति तीर्थ सिंह ठाकुर, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने, राज्यों के उच्च न्यायालयों के सम्मेलन में अपने मन की संवेदना रखी, “हम, जनता को न्याय नहीं दे पाते हैं”। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी व न्याय मंत्री की मौजदूगी में जस्टिस ठाकुर रो पड़े। उन्होंने न्यायपालिका में अधूरे, रिक्त पदों पर भराई ना होने पर दुःख जताया। सरकार द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति अभी भी नहीं की जा रही है। सिस्टम में ही 60% कमी है, जिसमें राजनीतिक आकाओं की भूमिका है और वे वकील, जिनकी विचारधारा सत्ता के साथ हैं, उन्ही की नियुक्ति देखी जाती है। भारत के उच्च न्यायालयों व सर्वोच्च न्यायालय में भी ऐसे ही नियुक्तियां हो रही हैं। लोगों को
न्याय व्यवस्था से इतनी घृणा क्यों है? पत्रकार चंदन मित्रा ने दी हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा था, “न्याय व्यवस्था इतनी धुंधली है व आम आदमी को न्याय से वंचित रखना, न्यायाधीशों के लिए ‘मनोरोग उपचार’ की आवश्यकता है”। बेशक, मैं इस कथन से सहमत नहीं थी। न्यायाधीशों के लिए इस तरह की भाषा के साथ, अदालत की अवमानना ​​जारी की गई थी। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने शोभना भारतीया सहित सभी निदेशकों को सर्वोच्च न्यायालय में उपस्थित होने के आदेश दिए। वरिष्ठ अधिवक्ता फली नारीमन ने, बिना शर्त माफी मांगी व हिंदुस्तान टाइम्स में यह माफ़ीनामा प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ से माफ़ी मांगी गई। माफी स्वीकार करी गई, लेकिन एच. टी. मीडिया समूह व विशेष रूप से चंदन मित्रा के खिलाफ कड़े शब्दों में टिप्पणी दी गई। हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक के रूप में चंदन मित्रा को निष्कासित किया गया। फ़िर वे अरुण जैटली
की गोद में बैठे और उन्हें ‘दी पायनियर” का संपादक बना दिया गया। सेवानिवृत्त न्यायाधीश पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को रिश्वत देने की साज़िश रचने का आरोप आते रहते हैं। 10 अगस्त 2023 – ईडी ने हरियाणा के विशेष सीबीआई न्यायाधीश, सुधीर परमार को गिरफ़्तार किया, जिन्हें पहले अनुकूल फैसले के बदले में ₹5 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था। पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर आरोप लगे कि वे केवल अपनी पसंद के न्यायाधीशों पर ही ज़ोर देते हैं, जो सहकर्मियों को रिश्वत देने की साज़िश रचने के आरोपी, पूर्व न्यायाधीश के मामले की सुनवाई कर सकते हैं। दिल्ली में पत्रकार माइकल सफी की रिपोर्ट, 14 नवंबर 2017 को प्रकाशित हुई। हाल के दिनों में इस मामले में हुई घटनाओं के कारण भारत के वरिष्ठ न्यायाधीश के खिलाफ़ कदाचार के असाधारण आरोप लगे हैं व देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक माने जाने वाले सर्वोच्च न्यायालय की तीखी आलोचना हुई है। सेवानिवृत्त न्यायाधीश, आई.एम. कुद्दुसी पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को रिश्वत देने की साज़िश रचने का आरोप था, जिस मामले की सुनवाई खुद जस्टिस दीपक मिश्रा ने की थी। यह ज्ञात नहीं है कि किन न्यायाधीशों को, कथित तौर पर रिश्वत की पेशकश की गई थी। कुद्दुसी को सितंबर में कथित न्यायिक रिश्वतखोरी गिरोह में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। खैर! प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया कि मुख्य न्यायाधीश बहुत गंभीर कदाचार के दोषी हैं। उन्होंने कहा, “उन्होंने प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांत का उल्लंघन किया है, कि आप अपने मामले में खुद न्यायाधीश नहीं हो सकते।” दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पुलिस रिसर्च की फेलो, शैलाश्री शंकर, जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय per एक किताब लिखी है, ने कहा कि 29 सदस्यीय पीठ के न्यायाधीशों के बीच हमेशा व्यक्तिगत मतभेद रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता पी.वी. दिनेश ने कहा कि यह विवाद चिंताजनक है। दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश शमित मुखर्जी की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की गई गिरफ्तारी, जो कानूनी इतिहास में इस तरह की पहली गिरफ्तारी है, ने न्यायिक नैतिकता पर बहस छेड़ दी है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने एक प्रस्ताव पारित कर उन्हें हटाने की मांग की और अनुरोध किया कि मुख्य न्यायाधीश उन्हें कोई और कानूनी काम न सौंपें। भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी दलों ने उन्हें पद से हटाने की मांग करते हुए भारतीय संसद में एक प्रस्ताव पेश किया। उन्होंने कहा, “इसने भारतीय न्याय व्यवस्था में जनता के विश्वास को हिला दिया है, जिस पर भारतीय जनता ने बहुत भरोसा किया है और जिसे कई भारतीय अपना अंतिम सहारा मानते हैं।” जस्टिस रामास्वामी को 14 में से 11 आरोपों में दोषी पाया गया। 10 मई 1993 को बहस और मतदान के लिए निष्कासन प्रस्ताव लोकसभा में रखा गया। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल उनके बचाव पक्ष के वकील थे। उस दिन लोकसभा में मौजूद 401 सदस्यों में से, निष्कासन के पक्ष में 196 वोट पड़े, कोई भी वोट इसके खिलाफ नहीं पड़ा और सत्तारूढ़ कांग्रेस और उसके सहयोगियों द्वारा 205 लोगों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। इस प्रस्ताव के लिए मतदान के दौरान उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत और सदन की कुल सदस्यता के पूर्ण बहुमत की आवश्यकता होती है, इसलिए यह पारित नहीं हो सका। जस्टिस शमित मुखर्जी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सीबीआई ने एक सप्ताह के लिए हिरासत में ले लिया, जब उसने दिल्ली में उनके तीन आवासों पर छापा मारा और ‘अपराध सिद्ध करने वाले दस्तावेज’ तथा दो लॉकर की चाबियाँ बरामद कीं। सीबीआई ने उच्च न्यायालय के वकील अंशु अग्रवाल के आवास और कार्यालय की भी तलाशी ली। जज निर्मल यादव का ‘कैश एट होम कांड’ सभी को मालूम है
वकील सिप्पी सिद्धू हत्याकांड, 20 सितंबर, 2015 को सेक्टर 27 के एक पार्क में हुआ। उनके परिवार ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीशा सबीना की बेटी कल्याणी सिंह पर उनकी हत्या का आरोप लगाये हैं, क्योंकि उन्होंने उनके विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास से कथित नकदी बरामदगी ने उनके पिछले वित्तीय लेन-देन, विशेष रूप से 2018 सिंभावली चीनी मिल धोखाधड़ी मामले से उनके संबंधों की जांच को फिर से शुरू कर दिया है। मुनीश चंद्र पांडे की रिपोर्ट बहुत महत्वपूर्ण है। 21 मार्च 2025, संपादक नकुल आहूजा ने लिखा है कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर बड़ी मात्रा में मिली नकदी बरामदगी ने 2018 के सिंभावली शुगर मिल धोखाधड़ी मामले को फिर से चर्चा में ला दिया. वर्मा को 97 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में आरोपी बनाया गया था। इस घटना ने उनके पिछले वित्तीय लेन-देन, खासकर करोड़ों रुपये के बैंकिंग धोखाधड़ी में उलझी कंपनी सिंभावली शुगर्स लिमिटेड के साथ उनके संबंधों के बारे में नए सिरे से जांच शुरू कर दी है। यह मामला फरवरी 2018 का है, जब सीबीआई ने ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स की शिकायत के बाद सिंभावली शुगर्स की जांच शुरू की थी। ओ संविधान, कहां जाए भारत का आम नागरिक? समय आ गया है कि भारतीय न्यायिक प्रणाली को आत्म चिंतन का उद्घोष होना चाहिए।

(इस लेख में व्यक्त विचार पूरी तरह से लेखक प्रो. नीलम महाजन सिंह के निजी विचार हैं और Uknationnews किसी भी तरह से उनके लिए उत्तरदायी नहीं है )

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button