
BY INDRA YADAV, JOURNALIST
उत्तर प्रदेश। भदोही के ग्राम धसकरी में जो हुआ, वह केवल एक ‘सड़क दुर्घटना’ नहीं है; यह हमारे भ्रष्टाचार-ग्रस्त तंत्र की क्रूर और भयावह हकीकत का नग्न प्रदर्शन है। यह घटना दर्शाती है कि इस देश में ‘सच’ बोलने, ‘गलत’ के खिलाफ आवाज उठाने और ‘जांच’ की मांग करने की क्या कीमत चुकानी पड़ती है। श्री कमलाकांत दुबे, जिनकी मेडिकल क्लिनिक थी, उनका ‘अपराध’ बस इतना था कि उन्होंने अपने गांव के प्रधान के भ्रष्टाचार के खिलाफ जिलाधिकारी महोदय के समक्ष शिकायत दर्ज कराई और जांच के आदेश दिलवाए, जिसके परिणामस्वरूप प्रधान की वित्तीय शक्तियों पर रोक लगी।
न्याय की यह कैसी विडम्बना!
भ्रष्टाचार की जांच शुरू क्या हुई, शिकायतकर्ता की जीवन-लीला ही समाप्त हो गई। 10 दिसंबर की रात, लगभग 22:00 बजे, जब कमलाकांत अपनी दुकान बंद कर रहे थे, पीछे से आई एक अर्टिगा गाड़ी ने उन्हें इतनी जोरदार टक्कर मारी कि उनकी मृत्यु हो गई। स्थानीय पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर तुरंत ‘हत्या के नियत से टक्कर’ का मामला दर्ज किया, जो स्वयं में इस बात का प्रमाण है कि यह कोई सामान्य दुर्घटना नहीं थी।
यहां सबसे बड़ा और दर्दनाक कटाक्ष छिपा है। एक आम नागरिक को भ्रष्टाचार की शिकायत दर्ज कराने के लिए सबूत जुटाने पड़ते हैं, अधिकारियों के चक्कर काटने पड़ते हैं। लेकिन जब यही नागरिक व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाता है, तो भ्रष्टाचार के पोषक तत्व उसका जीवन छीन लेते हैं, और अब उसकी शिकायत को ‘पूरा’ करने के लिए शायद उसी के मृत्यु प्रमाण पत्र की कॉपी अटैच करने की जरूरत पड़ेगी।
आज की व्यवस्था में, लगता है, ‘जिंदा शिकायतकर्ता’ से अधिक ‘मृत शिकायतकर्ता’ की फाइल सुरक्षित है।
कानून व्यवस्था पर गहरा प्रश्नचिह्न!
यह घटना सीधे-सीधे हमारी कानून व्यवस्था की प्रभावशीलता पर सवाल उठाती है।
क्या सत्ता और धनबल से प्रेरित आपराधिक तत्त्व इतने निरंकुश हो चुके हैं कि वे एक जांच के आदेश को सीधे हत्या की साजिश से बदल सकते हैं!
जब ग्राम प्रधान की वित्तीय शक्तियों पर रोक लग चुकी थी, तब भी उनके परिजन (मेहीलाल यादव, गिरफ्तार) और नामित अभियुक्त (मनीष यादव) इतने बेखौफ कैसे थे कि वे दिन-दहाड़े (या रात-दहाड़े) शिकायतकर्ता को रास्ते से हटाने की हिम्मत करते हैं! यह दर्शाता है कि सरकारी आदेशों, जांचों और रोक के बावजूद, स्थानीय स्तर पर ‘बाहुबल’ का दबदबा कानून के डंडे से कहीं ज्यादा मजबूत है।
पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए दो अभियुक्तों को हिरासत में लिया है और गाड़ी स्वामी आदरणीय श्री सुजीत यादव महोदय फरार है। यह त्वरित कार्रवाई सराहनीय है, किंतु इस मामले की तह तक जाकर यह सुनिश्चित करना होगा कि केवल ‘टक्कर मारने वाले’ नहीं, बल्कि ‘टक्कर मारने का आदेश देने वाले’ को भी कठोरतम सजा मिले।
भ्रष्टाचार आज एक दीमक नहीं, एक रक्त पिपासु दानव बन चुका है, जो विरोध करने वालों का खून पीकर अपनी सत्ता स्थापित करता है। श्री कमलाकांत दुबे जी की मृत्यु एक साधारण दुर्घटना नहीं है! यह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ (नागरिक और उसकी आवाज़) पर किया गया हमला है।
भदोही की इस घटना से पूरे देश को यह सबक लेना चाहिए कि अगर हमने अपने श्री ‘कमलाकांत दुबे’ को नहीं बचाया, तो कल कोई भी नागरिक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने से पहले सौ बार सोचेगा। और जिस समाज में सच बोलने की कीमत ज़िंदगी हो, वहां न कानून व्यवस्था बचती है, न ही नैतिकता।
सरकार और प्रशासन का अब यह दायित्व है कि वे श्री कमलाकांत दुबे के बलिदान को व्यर्थ न जाने दें, और इस केस को एक मिसाल बनाकर यह स्थापित करें कि भ्रष्टाचारी और हत्यारे, किसी भी कीमत पर, बच नहीं पाएंगे।

– Mr. Indra Yadav/indrayadaveditor@gmail.com/Corresponde




