ब्रह्मलीन हुए शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती,99 साल की उम्र में ली अंतिम सांस
(हरेश उपाध्याय) दिल्ली/नरसिंहपुर:-
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी लंबी बीमारी के बाद रविवार को ब्रह्मलीन हो गएन।मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में उन्होंने अंतिम श्वांस ली।वह 99 साल की उम्र में मृत्युलोक छोड़कर गोलोकवासी हो गए ।सोमवार को लगभग शाम 4:00 बजे महाराज श्री जी को समाधि दी जाएगी। द्वारिका एवं ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का 99 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।उन्होंने नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थें।जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज जी को मणिदीप आश्रम से गंगा कुंड स्थल पालकी पे सवार कर भक्तों द्वारा ले जाया जा रहा है।जहां पर सभी भक्तजनों को दर्शन होंगे। यहां पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात है।वीआईपी लोगों का आना शुरू हो गया है। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम धनपति उपाध्याय और मां नाम गिरिजा देवी था। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें शुरू कर दी थीं।1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। 19 साल की उम्र में वह ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में 9 और मध्य प्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटी। वह करपात्री महाराज के राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी रहे। 1950 में वे दंडी संन्यासी बनाये गए।1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड संन्यास की दीक्षा ली। इसके बाद वह स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती नाम से जाने जाने लगे। 1981 में उन्हें शंकराचार्य की उपाधि मिली।मठों के शंकराचार्य थें, स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी। हिंदुओं को संगठित करने की भावना से आदिगुरु भगवान शंकराचार्य ने 1300 वर्ष पहले भारत की चारों दिशाओं में चार धार्मिक राजधानियां ( गोवर्धन मठ, श्रृंगेरी मठ, द्वारका मठ एवं ज्योतिर्मठ ) बनाईं।जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी दो मठों ( द्वारका एवं ज्योतिर्मठ ) के शंकराचार्य थें।शंकराचार्य का पद हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है। हिंदुओं का मार्गदर्शन एवं भगवत् प्राप्ति के साधन आदि विषयों में हिंदुओं को आदेश देने के विशेष अधिकार शंकराचार्यों को प्राप्त होते हैं।