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बोलते बंगले: 81 लोधी एस्टेट की कहानी, 1992 में सांसद बनने के बाद राजेश खन्ना जहां रहे थे

VIVEK SHUKLA, SENIOR JOURNO AND COLUMNIST

( Author Vivek Shukla in goggles)

Bolebharat.com se sabhar

राजेश खन्ना लोकसभा की नई दिल्ली सीट के लिए 1992 में हुए उपचुनाव में जीत गए थे। उन्होंने अपन बॉलीवुड के साथी शत्रुघ्न सिन्हा को शिकस्त दी थी। इसके बाद राजेश खन्ना को 81 लोधी एस्टेट में सरकारी बंगला अलॉट हुआ। इधर आप इंडिया इंटरनेशनल सेंटर से 5-7 मिनट में और खान मार्केट से 10 मिनट में पहुंच सकते हैं।

राजेश खन्ना ने 1992 से लेकर 1996 तक नई दिल्ली सीट की नुमाइंदगी की। वे बेहद लोकप्रिय और मिलनसार नेता के रूप में अपनी इमेज बनाने में कामयाब हुए। उनके बंगले में उनके चाहने वालों से लेकर संसदीय क्षेत्र के तमाम लोगों का आना लगा रहता।

81 लोधी एस्टेट के पीछे क्या
राजेश खन्ना वैसे तो 81 लोधी एस्टेट में चार साल ही रहे पर उस बंगले की पहचान अब भी उनके साथ जोड़कर ही होती है। उन्होंने बंगले के पिछले हिस्से में गणेश जी की एक सुंदर प्रतिमा स्थापित करवाई हुई थी। वे घर से आते-जाते वक्त उसे प्रमाण करके ही निकलते थे। राजेश खन्ना शायद ही कभी 81 लोधी एस्टेट के अगले भाग से निकले हों।

राजेश खन्ना के दो लोकसभा चुनावों में मीडिया सलाहकार रहे वरिष्ठ लेखक सुनील नेगी बताते हैं कि काका (राजेश खन्ना) बहुत जिंदादिल इंसान थे। उनके घर में हर इंसान का स्वागत होता था। हर आने वाले को चाय-नाश्ता मिलता। राजेश खन्ना ने अपने सरकारी आवास को नए सिरे से टाइल्स और मार्बल के पत्थरों से रेनोवेट करवाया था। उन्होंने काफी पैसा खर्च किया था।

राजेश खन्ना का रहन-सहन राजसी था। वे लोकसभा के लिए चुने गए थे पर उनका लाइफ स्टाइल शानदार था। उनके गैराज में कई लक्जरी कारें भी खड़ी मिलती थीं। उन्होंने बड़े ही बेमन से अपने लोधी एस्टेट के बंगले को खाली किया था। उनके बंगले को फाइव स्टार बंगला माना जाता था। उसे लेने के लिए तमाम सांसद से लेकर मंत्री जुगाड़ कर रहे थे। इधर कभी उनके परिवार के सदस्य नहीं आकर रहे। यहां पर बॉलीवुड से सुनील दत्त, रूपेश कुमार और सावन कुमार टाक आते-जाते थे।

आपको याद होगा कि सावन कुमार टाक ने साजन बिना सुहागन, सौतन, सौतन की बेटी, सनम बेवफ़ा वगैरह फिल्में बनाई थीं। इनके अलावा उनके पास टीवी सीरियल्स में काम करने वाले बहुत से कलाकार आते थे। राजेश खन्ना लोधी एस्टेट में सरकारी बंगला मिलने से पहले सोम विहार और वसंत कुंज में भी रहे।

हाथी मेरे साथी से 81 लोधी एस्टेट
साउथ दिल्ली के सरिता विहार में रहने वाले तमिल और हिन्दी के कवि भास्कर राममूर्ति कहते हैं कि वह साल था 1971। राजेश खन्ना का स्टारडम देश में छाया हुआ था। उसी साल उनकी ‘हाथी मेरे साथी’ फिल्म जब रीलिज हुई तो सफदरजंग एंक्लेव पर स्थित कमल थिएटर में राजेश ख्नन्ना के फैंस उमड़ पड़े थे। ‘हाथी मेरे साथी’ का निर्देशन एम॰ ए॰ तिरुमुगम ने किया, पटकथा सलीम-जावेद ने लिखी और संवाद इंदर राज आनंद ने लिखे थे।

( SUNIL NEGI)

यह फिल्म 1971 की सबसे ज्यादा व्यावसायिक सफलता अर्जित करने वाली फिल्म थी। इसमें राजेश खन्ना और तनुजा मुख्य भूमिकाओं में थे। भास्कर राममबर्ति को याद है, जब वे हाथी मेरे साथी को देखने लक्ष्मीबाई नगर के अपने घर से कमल में गए थे। कमल में मुख्य रूप से सफदरजंग एंक्लेव, ग्रीन पार्क, आर.के.पुरम, मोहम्मदपुर, मुनिरका, मोती बाग वगैरह के लोग फिल्में देखने के लिए आते थे।

वे बताते हैं, ‘मेरा ख्वाब था राजेश खन्ना को देखने या उनके साथ हाथ मिलाने का। संयोग देखिए कि जब वे 1991 और फिर 1992 में नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़े तो वे हमारे एरिया में आए, मैंने उनके साथ हाथ मिलाया, उन्हें वोट दिया और फिर एक बार अपने एरिया के काम के सिलसिले में उनके 81 लोधी एस्टेट वाले घर में भी गया।’

कितने खुश थे राजेश खन्ना लोधी एस्टेट में
राजेश खन्ना लोधी एस्टेट में बंगला पाकर सच में बहुत खुश थे। वे कहते थे कि लुटियन जोन में रहना फख्र की बात है। इसे लुटियन जोन का एक्सटेंशन ही कहा जा सकता है। ये देश की आजादी के बाद बना था। इधर सभी बंगलों के पिछले वाले भाग में सेवकों के लिए घर भी हैं। लोधी एस्टेट में बने बंगलों में लुटियन जोन के बंगलों के इस नियम का पालन हुआ कि प्लाट के चारों तरफ बगीचा होगा और बीच में बंगला।

एनडीएमसी के सूचना निदेशक मदन थपलियाल कहते थे कि लुटियन जोन के सब बंगले 1920 के आसपास बन गए थे। हालांकि इनकी वक्त गुजरने के साथ मरम्मत होती रही।

( Kaka with Uttarakhand artists in a function at Prem Nagar, New Delhi, Sunil Negi on the mike)

लाजपत नगर वाले राजेश खन्ना के घर में
बेशक, राजेश खन्ना ने हाथी मेरे साथी या जब उनके जलवे थे तो कभी नहीं सोचा होगा कि वे आगे चलकर नई दिल्ली सीट से सांसद बनेंगे और इसी शहर में उनके नाम पर एक स्थायी प्रतीक बनेगा। सोचने का सवाल भी नहीं था, क्योंकि राजेश खन्ना की एक के बाद एक फिल्में सुपर हिट हो रही थीं। वे फिल्मो में दिन-रात बिजी थे। राजेश खन्ना को लाल कृष्ण आडवाणी और शत्रुध्न सिन्हा के साथ हुए चुनाव में लाजपत नगर के मतदाताओं ने दिल खोलकर वोट दिए थे। उन्हें लाजपत नगर कभी भूला नहीं।

लाजपत नगर में लंबे समय तक रहे प्रख्यात वास्तु विशेषज्ञ डॉ. जे.पी. शर्मा ‘त्रिखा’ बताते हैं, “लाजपत नगर वालों ने उनके संसार से विदा होने के बाद उनके नाम पर एक पार्क भी स्थापित किया। यह 2018 की बात है। उसके उदघाटन के मौके पर राजेश खन्ना की पत्नी डिंपल कपाड़िया भी आईं थीं। राजेश खन्ना की मृत्यु के करीब छह सालों के बाद पार्क तामीर हुआ था। डिंपल कपाड़िया को जब राजेश खन्ना पार्क के उदघाटन के मौके पर बुलाया गया तो वो खुशी-खुशी आईं। हालांकि दोनों में तलाक तो बहुत पहले हो चुका था।’

डॉ. जे.पी. शर्मा के राजेश खन्ना के उनके सांसद बनने से पहले से ही करीबी संबंध थे। कहते हैं कि जब तक राजेश खन्ना लाजपत नगर में रहे, लाजपत नगर के लोग उनके घर में आते-जाते थे।

सियासत ने दूर किया दो सितारों को
दरअसल नई दिल्ली लोकसभा सीट के लिए 1992 में हुआ उप चुनाव सच में बहुत दिलचस्प रहा था। जहां राजेश खन्ना कांग्रेस के उम्मीदवार थे, वहीं शत्रुघ्न सिन्हा को भाजपा ने टिकट दिया था। दो फिल्मी सितारे चुनाव में आमने –सामने थे। आडवाणी जी के नई दिल्ली सीट को छोड़ने के बाद भाजपा आला कमान ने शत्रुघ्न सिन्हा को नई दिल्ली सीट से लड़ने के निर्देश दिए।

हालांकि उस उप चुनाव के नतीजों का केन्द्र सरकार की सेहत पर कोई असर पड़ने वाला नहीं था, पर कैंपेन के शुरू होते ही माहौल गरमा गया। सारा मीडिया इन दोनों की कैंपेन पर फोकस करने लगा। तब तक खबरिया चैनल नहीं आए थे। पर कैंपेन के शुरू से ही समझ आ गया था कि राजेश खन्ना ने शत्रु से बढ़त बनानी चालू कर दी है। उन्हें नई दिल्ली सीट के मतदाता विजयी बनवाने के मूड में आ गए थे।

मतदाताओं को राजेश खन्ना के साथ सहानुभूति भी थी क्योंकि वो आडवाणी से बहुत ही कम अंतर से हारे थे। वरिष्ठ पत्रकार और दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार में मंत्री रहे रमाकांत गोस्वामी बताते हैं, “भले ही आडवाणी जी उस मुकाबले को जीतने में कामयाब रहे, लेकिन लोगों का दिल जीतने वाले राजेश खन्ना ही थे। उन्होंने चुनाव में अपने पहले प्रयास में वास्तव में बहुत मेहनत की थी। उन्होंने मिंटो रोड और गोल मार्केट जैसी कुछ विधानसभा सीटों से आडवाणी जी को भी पीछे छोड़ दिया था।”

डिंपल कपाडिया भी राजेश खन्ना के लिए कैंपेन कर रहीं थीं। राजेश खन्ना मजे से चुनाव जीत गए थे। उसके बाद बॉलीवुड के दोस्तों की दोस्ती टूट गई। शत्रुध्न सिन्हा ने खुद माना कि राजेश खन्ना से चुनाव में हारने से बड़ा नुकसान ये हुआ कि राजेश खन्ना उनसे खफा हो गए। फिर वो संबंध कभी सामान्य नहीं हुए। वे कई बार कह चुके हैं कि उन्हें राजेश खन्ना के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ना चाहिए था। सुनील नेगी कहते हैं कि 81 लोधी एस्टेट में होने वाली महफिलों में राजेश खन्ना 1992 के उप चुनाव या शत्रुध्न सिन्हा की बात भी नहीं करते थे।

राजेश खन्ना के घर में लगी वो फोटो
अब बुजुर्ग हो रहे दिल्ली वाले 20 मई, 1991 को निर्माण भवन के मतदान केंद्र पर राजीव और सोनिया गांधी को वोट डालने में मदद करते हुए राजेश खन्ना की फोटो को याद करते हैं। यह राजीव गांधी की दिल्ली में आखिरी तस्वीर बन गई, क्योंकि अगले ही दिन उनकी एक धमाके में हत्या कर दी गई थी।

सुनील नेगी बताते हैं कि राजेश खन्ना उस फोटो का नेगेटिव चाहते थे। उसे हासिल करने के लिए अखबारों के दफ्तरों की खाक भी छानी गई थी। एक बार नेगेटिव मिला तो उससे एक बड़ी तस्वीर बनवाई गई जो उनके 81 लोधी एस्टेट के ड्राइंग रूम में लगी। जानने वाले जानते हैं कि राजीव गांधी की मृत्यु का समाचार सुनकर राजेश खन्ना फूट-फूटकर रोए थे। उनके मन में राजीव गांधी के लिए गहरी निष्ठा का भाव था।

81 लोधी एस्टेट में पहले और बाद में कौन
जिस 81 लोधी एस्टेट में राजेश खन्ना रहे, वही बंगला गढ़वाल लोकसभा का 1981 में चुनाव जीतने के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा को अलॉट हुआ। कहते हैं, जब बहुगुणा जी 1984 में इलाहाबद से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे तब वे राजेश खन्ना को बार-बार फोन करके गुजारिश कर रहे थे कि वे ( राजेश खन्ना) उनके प्रचार में आएँ। वे अपने पीए रहमान की मार्फत राजेश खन्ना से ट्रंक कॉल पर बात करते।

हालांकि राजेश खन्ना तब इलाहाबाद में बहुगुणा जी के पक्ष या कहें कि अमिताभ बच्चन के खिलाफ कैंपेन करने के लिए नहीं गए थे। यह भी सच है कि वे तब तक सियासत से दूर थे। बहरहाल, राजेश खन्ना जब नई दिल्ली से लोक सभा का चुनाव लड़ रहे थे, वे तब एक दिन लोधी रोड के 21 ब्लॉक के फ्लैट नंबर 93 में पहुंचे। वे जब वहां पहुंचे तो उस घर के आगे कुछ बच्चे खेल रहे थे और महिलाएं गप कर रही हैं।

यकीन मानिए कि यह कोई सामान्य फ्लैट नहीं था। इधर कभी दिन-रात गहमा-गहमी रहती थी। सफेद-कुर्ता पायजामा या धोती पहने लोगों की आवाजाही लगी रहती थी। यह फ्लैट 1984 के लगभग अंत में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा को स्वाधीनता सेनानी कोटे में आवंटित हुआ था। वह उनके राजनीतिक जीवन का संध्याकाल था। वह इलाहाबाद में 1984 का लोकसभा चुनाव अमिताभ बच्चन से बुरी तरह से हारने के बाद निराश थे।

वह 81 लोधी एस्टेट के बंगले को खाली करके 21/93 लोधी रोड में आए थे। राजेश खन्ना जब बहुगुणा जी से मिलने आए तो उनके पूरे परिवार न स्वागत किया। राजेश खन्ना का बहुगुणा जी से मिलने का मकसद था ताकि नई दिल्ली में रहने वाले हजारों देवभूमि के वोटरों को मैसेज जाए कि वह ( बहुगुणा जी) राजेश खन्ना का साथ हैं। राजेश खन्ना जब बहुगुणा जी से मिलने के लिए आए तो यह लेखक और एक-दो और पत्रकार वहीं पर थे।

जाहिर है, राजेश खन्ना को यह बात बाद में पता चली होगी कि जो बंगला उन्हें मिला है, वहां पर पहले बहुगुणा जी रहा करते थे। उसमें बहुगुणा जी के साथ रहते थे उनके जीवनभर निजी सचिव रहे रहमान और भोजन पकाने वाले सज्जन दिलीप सिंह। राजेश खन्ना ने 81 लोधी एस्टेट को 1996 में खाली कर दिया था। उनके बाद 81 लोधी एस्टेट मिला भाजपा नेता प्रमोद महाजन को।

राजधानी दिल्ली 1996 के बाद बहुत बदल गई है। इस दौरान दो पीढ़ियां जवान हो गईं। राजेश खन्ना संसार से चले गए और शत्रुघ्न सिन्हा की राजनीतिक यात्रा ने उन्हें भाजपा से कांग्रेस और अब तृणमूल कांग्रेस में भेज दिया। पर वह जब नई दिल्ली की सड़कों से गुजरते होंगे तो उन्हें अपने दोस्त और प्रतिद्वंद्वी, राजेश खन्ना की याद आती होगी, जिनकी विरासत राजधानी के दिल में आज भी जीवित है।

(Below Rajesh Pandey, formerly Dayal Singh College president and youth leader with Vipin Oberoi of The Treat paying tributes to Kakaji on his birth anniversary on 29 th December at Chanakyapuri. Both of them alongwith Sunil Negi, then Media advisor to Kaka were highly instrumental in the superstar’s victory from New Delhi parliamentary constituency. )

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