BY VIVEK SHUKLA, SR JOURNALIST, COLUMNIST
आज मन कर रहा है कि किसी कोने में खड़े होकर रो लूं। नरेश मोहन जी के निधन की सुबह खबर मिलते ही लगा कि अब अपने कंधे पर हाथ रखकर सुख-दुख पूछने वाला एक और अपना रहनुमा कम हो गया। अजीब इत्तेफाक है कि 17 मार्च, 1986 को जब नरेश मोहन जी ने हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप में नौकरी दी थी, उसके बाद मैं विशाल एचटी हाउस की सेकेंड फ्लोर के एक बड़े से हॉल में रास्ता भटक कर चला गया था। वहां एक सज्जन की टेबल पर फोन देखा तो उनसे गुजारिश कि सर, क्या एक फोन कर लूं ? उन्होंने तुरंत इशारे से फोन करने को कहा। मां को फोन करके बताना था कि नौकरी मिल गई है। फोन करने के बाद उस सज्जन को शुक्रिया किया। बाद में उनसे परिचय हुआ। उनका नाम राकेश शर्मा है। आज राकेश शर्मा जी का ही एक मैसेज मिला कि नरेश मोहन जी नहीं रहे। उनके बाद सुषमा मिश्रा, शुकदेव अवस्थी, जावेद फरीदी वगैरह के एक के बाद कई संदेश मिलते रहे।
नरेश मोहन करीब दसेक सालों तक एचटी के एक्जीक्यूटिव प्रेसिडेंट रहे। पर यह खास बात नहीं है। यह भी कोई बड़ी बात नहीं है कि उन्होंने न्यूज प्रिंट डिपार्टमेंट में एक छोटी सी पोस्ट से नौकरी का आगाज किया था। असली बात यह है कि उन्होंने एचटी में सैकड़ों लोगों को नौकरी दी। वे मुलाजिमों के पक्ष में खड़े रहे। कभी किसी को नौकरी से निकाला नहीं।
उनके समय जो हिन्दुस्तान टाइम्स में आया वे उसके संरक्षक बन गए। उसके कठिन वक्त के साथी बन गए। नरेश मोहन जी ने 1966 में एचटी को उस समय ज्वाइन किया था जब यह कनॉट प्लेस की बॉम्बे लाइफ बिल्डिंग से प्रकाशित होता था। वह जी.एन. साही साहब और आर.एन. सिन्हा जी का दौर था। ये दोनों एचटी के मालिकों के बाद सर्वेसर्वा थे। पर, अपनी मेहनत और नेतृत्व के गुणों के चलते नरेश मोहन जी हिन्दुस्तान टाइम्स में महत्वपूर्ण बनते गए। उन्होंने हिन्दुस्तान टाइम्स की शानदार बिल्डिंग को खड़े होकर बनवाया था। वे एचटी के सौ सालों के इतिहास के सबसे खासमखास मैनेजर के रूप में याद रखे जाएंगे। एचटी ग्रुप 1924 में बिड़ला परिवार के पास आया था। उन पर एचटी के मुलाजिम जान निसार करते थे। आपको आज के दौर में इस तरह का कोई मानवीय मैनेजर मिले तो बताइये जरूर।
नरेश मोहन हर सुबह 11 बजे दफ्तर आ जाते थे। उसके बाद रात को पेपर का पहला एडिशन छूटने के बाद निकलते। हर संडे को वे पटना जाते। वहां के काम काज को देखते। उनकी रहनुमाई में एचटी का विस्तार और मुनाफा बढ़ता रहा। अपने काम को लेकर उनके जैसा जुनून देखने को नहीं मिलता।
मुझे अच्छी तरह से याद है 1997 की एक बेहद उदास शाम। पहले ही पता चल गया था कि वह उनका एचटी में आखिरी दिन है। उस शाम को जब वे सीढ़ियों से घर जाने के लिए उतरे तो हिन्दुस्तान टाइम्स के तमाम मुलाजिम उन्हें विदा करने के लिए आ गए। वे जब दफ्तर से जा रहे थे तब भी कई मुलाजिमों की आंखें नम थीं। कुछ साल पहले नरेश मोहन जी ने मुझे अखौरी सुरेश प्रसाद सिन्हा के बेटे की आईएचसी में आयोजित शादी की रिस्पेशन के मौके पर बताया था कि एचटी छोड़ने के बाद वे कभी कस्तूरबा गांधी मार्ग से निकले नहीं। नरेश मोहन एचटी के बाद ट्रिब्यून ट्रस्ट, यूएनआई और आईएनएस बोर्ड में रहे।
एक बात और। हिन्दी और अंग्रेजी का रिटर्न टेस्ट पास करने के बाद वे मेरा इंटरव्यू ले रहे थे। वहां एचटी के फाइनेंस डायरेक्टर अग्रवाल जी भी बैठे थे। उन्होंने मेरे से कहा, मैं तुम्हें एच.टी पटना में भेज रहा हूं, क्योंकि तुम बिहार से हो। मैंने लगभग गिड़गिडाते हुए कहा, सर, दिल्ली में ही रख लीजिए। मैं दिल्ली से हूं। फिर पूछने लगे, कहां के रहने वाले हो? मैंने कहा, सर, मेरा परिवार रावलपिंडी से दिल्ली आया था। फिर वे और अग्रवाल जी एक-दूसरे की तरफ देखते हुए कहने लगे, रावलपिंडी में शुक्ला। फिर वे कहने लगे, दिल्ली में हिन्दी हिन्दुस्तान में काम करना होगा। मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं थी। एचटी ग्रुप में काम करने का ख्वाब पूरा हो रहा था। अखौरी जी के आयोजन में उन्होंने मुझे बताया था कि उनका जन्म स्थान रावलपिंडी था। दरअसल सब मोहायल ब्राहमणों का मूल स्थान रावलपिंडी ही है। मोहन, बख्शी, दत्ता, छिब्बर वगैरह सब रावलपिंडी से ही है।
बहुत याद आते रहोगे, सर।
(SR JOURNALIST Vivek Shukla has worked in Hindustan Times for several years)