पत्रकारिता का यह भोखाल क्यों ?
वेद विलास उनियाल
दिल्ली में टीवी में काम कर रहे या दिख रहे कुछ लोगों को लगभग दो दशक से ऐसे महिमामंडित किया जा रहा है मानों इस देश में पत्रकारिता इनसे शुरू हुई हो। मानों पत्रकारिता क्या है इनके उदय होने के बाद लोग जान रहे हो। मानों ईमानदारी और नैतिक मूल्यों के यही असली खजाने
हों। मानो पत्रकारिता में चिंगारी इनसे निकली हो। क्रांति इनसे ही होती हो। देश की असली चिंता इन्हें हो। जबकि इनमें कुछ को लगता है सब कुछ नष्ट होरहा । अंधेरा ही अंधेरा । कुछ के लिए सबेरा ही सबेरा।
1- जबकि प्रिंट मीडिया में दशकों से नहीं , बल्कि एक सदी से लोगो ने शानदार मिसाल कायम की है। बेहतर खबरें , बेहतर लेख, बेहतर विश्लेषण लिखकर तरह तरह की चीजों को संजोकर भारतीय पत्रकारिता का सम्मान बढाया है। आज लोकतंत्र भी इसलिए जिंदा है कि प्रिंट मीडिया में बहुत शानदार पत्रकारों ने देश के कौने कौने की खबर लाकर चौकन्ना रखा।
2- टीवी पत्रकारिता तो कल का बच्चा है। और बहुत अधकच्चा है। प्रिट मीडिया अखबार पत्र पत्रिकाओं के पत्रकारों ने बेहद कठिन स्थितियों मेंबहुत शानदार काम किया। दंगों के बीच जाकर रिपोर्टिग, बाढ , तूफान देशों के युद्ध, तमाम परिस्थितियों में रिपोटिंग की। गांव गांव घूमे कस्बो में घूमें। नक्सली क्षेत्रों में जाकर अपनी जान जोखिम में डाल कर पत्रकारिता की।
3- दिखाया ऐसे जाता है कि मानो टीवी के दिल्ली के कुछ पत्रकारों ने
बताया हो कि बाजारों में गलियों में नुक्कडों में कमजोर बस्तियों में जाकर पत्रकारिता कैसे की जाती है। मानों वह पत्रकारिता को कोई नई चीज सिखा रहे हो। अंदाज यही मानों पहली बार पत्रकारिता आम लोगों के बीच जा रही हो।
बेहद अपमान है यह उन पुराने दौर के पत्रकारों का जो दिनमान, जनसत्ता नवभारत टाइम्स, धर्मयुग साप्ताहिक हिंदुस्तान, बिलिट्स नई दुनिया आज आदि में लिखा करते थे। इतने संजीदा लेख लिखे गए हैं कवर स्टोरियां लिखी गई है कि टीवी के आज के तथाकथित अवतारों और उनके शिष्यों को उन्हें पढना चाहिए। पढें हो तो वह समय याद करना चाहिए। खुद मीडिया के भगवान न बने। देश में सत्ता बदलने , या सत्ता को कायम रखने क्रांति करने का दंभी मीडिया अंदाज न पालें।
4- आज की सनसनीखेज ब्रेकिंग वाली टीवी पत्रकारिता आभास नहीं कर पाएगी कि क्षेत्रीय पत्र पत्रिकाओं को निकालने के लिए कितना संघर्ष किया गया गया। दो पेज के अखबार में क्षेत्रीय सरोकारों से जुडे समाचार किस तरह दिए जाते। किस तरह साप्ताहिक पाक्षिक मासिक इलाकाई पत्रिकाएं निकलती रही। उस दौर में जमीन बेचकर छोटी छोटी प्रिटिंग प्रेस मशीनें भी ली गई। खुद अखबार निकालना और घर घरों में बांटना। आज के सब्जवाग उस दौर की जीवटता का आंकलन नहीं कर सकते।
4- ऐसे लगता है कि जैसे टीवी के कुछ पत्रकार देश की क्रांति के वाहक हो। जबकि पुराने दौर में अखबारी पत्रकारों ने जेब में चना और चाय पीकर समाज को झकझोरने वाली खबरे लिखी है। आज के टीवी के ये ऊंचे पत्रकार पांच पांच लाख रुपए तक का वेतन लेते हैं। धरती पर बहुत कम उतर पाते हैं। अक्सर या ता कार में होते हैं या जहाज में । वातानुकूलित जिंदगी में। और ठीक भी है पत्रकार सुदामा बनकर क्यों रहे । लेकिन जद्दोजहद और संघर्ष तो उन पत्रकारों का ही था। टीवी की पत्रकारिता को समय लगेगा उस मुकाम को पाने में। अभी इस टीवी मीडिया में नाटकियता, फिल्मी अंदाज रातों का रात का ग्लैमर । जैसे कई तत्वों का समावेश है। यह पत्रकारिता बहुत संजीदा नहीं है। चाहे किसी से भी प्रभावित हो। पक्ष या विपक्ष किसी की भी चरण वंदना करती हो।
4- यह प्रिंट मीडिया है जिसने शास्त्रीय संगीत लोक संगीत लोक जीवन कला साहित्य थियेटर का भी ख्याल रखा। यह प्रिट मीडिया ही है जिसने नंदन पराग चंपक मधुमुस्कान जैसी बाल पत्रिकाएं निकाली यह प्रिट मीडिया है जिसने माधुरी जैसी फिल्म की पत्रिका पढने को दी। धर्मयुग जैसा महायुग सामने रखा। दिनमान धर्मयुग साप्ताहिक हिंदुस्तान माया भूभारती रविवार कादंबनी सारिका जैसी पत्रिकाएं पढने को दी। कहीं भी टीवी की पत्रकारिता में दूर दूर तक इस स्तर की मीडिया के दर्शन नहीं है। केवल मजमा ज्यादा है। अंदाज स्टाइल ज्यादा है। अपने अपने राजनैतिक कुनबों का भरपूर ख्याल है।। 5-आज का टीवी मीडिया अतीक का सफर दिखाता है प्रिंट मीडिया भारत के अतीत से आज तक का सफर दिखाता है। प्रिंट मीडिया के नायक असली रहे टीवी के नायक या तो मोदी के आदमी हैं या राहुल के । जो दोनों के नही वो तेजस्वी और अखिलेश अरविंद केजरीवाल के।