पत्नी या पत्नियों की लिखित इजाजत के बगैर द्वी या बहुविवाह गैर कानूनी , संविधान विरुद्ध और शरीयत कानून के खिलाफ , केंद्र को दिया नोटिस : सुप्रीम कोर्ट
उच्चतम न्यायालय के विद्वान न्यायधीशों ने मुस्लिम व्यक्ति द्वारा अपनी पहली पत्नी या पत्नियों की इजाजत और उनके रहने ,अन्य खर्चों के बंदोबस्त के बगैर किया गया द्वी विवाह या बहु विवाह को गैर कानूनी, शरीअत कानून के खिलाफ, गैर संवैधानिक और विवेकाधीन विरुद् करार दिया है.
सोमवार को अपने निर्णय में माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन संघी व् जस्टिस नविन चावला ने महिला और बाल विकास मंत्रालय व अल्पसंख्यक मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारीयों को नोटिस भेजकर इस अहम् विवादास्पद मुद्दे पर ६ हफ़्तों के भीतर जवाब देने को कहा है और साथ ही इस बात पर भी जोर दिया है की मुस्लिम पीड़ित शादीशुदा महिलाओं को न्याय दिलाने हेतु केंद्र सर्कार को इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सख्त क़ानून बनाना चाहिए ताकि अल्पसंख्यक समुदाय की पीड़ित और कुंठित महिलाओं को न्याय मिल सके.
गौर तलब है की रेशमा पिटीशनर को उसके पति ने बगैर उसकी इजाजत लिए दूसरी शादी करने का निर्णय लिया और उसे व छोटे बच्चे को तलाक देकर अधर में छोड़ दिया जबकि शरीअत क़ानून के मुताबिक कोई भी पति, पत्नी या पत्नियों की इजाजत और उनके रख रखाव व रहने की सुविधा आदि के लिखित आश्वासनों के बगैर द्वी विवाह या बहुविवाह नहीं कर सकता.
अगर वह ऐसा करता है तो शरीयत क़ानून के मुताबिक ये गैर कानूनी है.
रेशमा ने उच्चतम न्यायलय में दाखिल अपने पेटिशन में कहा की चूँकि भारत सरकार ने अभी तक द्वी या बहु विवाह पर कोई क़ानून नहीं बनाया है , आज भी कई पति शरीयत कानून की धज्जियाँ उड़ाकर दूसरी या तीसरी शादी कर लेते हैं और पहली या दूसरी पत्नी और उनके असहाय बच्चों को आधार में छोड़ देते हैं.
उच्चतम न्यायलय ने रेशमा की अपील को गंभीरता से लेते हुए जहाँ इस शादी को शरीयत क़ानून, संविधान के विरुद्ध करार दिया है वही केंद्र सरकार के महिला और शिशु विकास मंत्रालय और अल्पसंख्यक मंत्रालय से ६ हफ़्तों के भीतर कोर्ट में उपस्थित होकर जवाब देने को कहा है ताकि भविष्य में इसपर ठोस क़ानून न सके.
गौर तलाब है की केंद्र सरकार ने इससे पूर्व तीन तलाक पर एक ठोस कानून इजात किया है .