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नैनीताल समाचार’ का कर्मठ कलमकार भ्राता राजीव लोचन साह

जय बद्री-जय केदार, जय कुमाऊं-जय गढ़वाल! इनमें से एक का भी नाम लें तो दूसरे का नाम स्वतः ही जुबान पर आ जाता। एक कटु सत्य ये भी है -कि इनके नामोल्लेख के साथ मन में कभी ये विचार नहीं आता कि इनमें से किसका आसमान बड़ा है और किसका छोटा। हमारे बीच भी ऐसे ही दो प्रतिमान हैं। इनमें से एक हैं- आदरेय राजीव लोचन साह’ और दूसरा पाक्षिक अखबार ‘नैनीताल समाचार’! इन दोनों को लेकर भी -हमारे मन में कभी ये प्रश्न नहीं उठा कि किसका रकबा बड़ा है और किसका रुतबा छोटा।

राजीव लोचन साह’ और ‘नैनीताल समाचार’ दोनों अपने-अपने क्षेत्र में बड़े हैं। एक ओर जहां ‘नैनीताल समाचार‘ शिखर पर है – वहीं ‘राजीव लोचन साह’ इसके ख्यातिनाम संपादक हैं। आप वर्षों से ‘नैनीताल समाचार‘ से जुड़े हुए हैं। और आज भी इसके अभिन्न अंग हैं।

15 अगस्त 1977 को दो संस्थापक संपादकों श्रीयुत् हरीश पंत और पवन राकेश के साथ मुख्य संपादक के तौर पर आप मात्र 26 वर्ष की वय में अपनी संपादकीय पारी शुरू करते हैं। और प्रवेशांक में बतौर संपादक सधे हुए शब्दों में अपनी बात रखते हैं- ‘स्वाधीनता दिवस पर ‘नैनीताल समाचार’ का प्रवेशांक प्रस्तुत करते हुए हम पाठकों का अभिनन्दन करते हैं। जिन शुभेच्छुओं के अनथक प्रयासों से यह पत्रिका जन्म ले सकी उनके हम आभारी हैं। हालांकि आभार प्रदर्शन के लिए पर्याप्त शब्द हमारे पास होंगे, इसमें सन्देह है।.पाठकों से अनुरोध है कि वे पत्रिका को अपना स्नेह तथा मार्ग दर्शन दें, जिससे पत्रिका के उच्चतम आदर्शों का अनुसरण करते हुए हम अपने पथ पर आगे बढ़ सकें।’ 12 पेज के ‘नैनीताल समाचार’ के इस प्रवेशांक की कीमत थी मात्र 50 पैसे और सालाना दस रुपये।

प्रबुद्ध पाठकों में से एक आदरेय सुन्दर लाल बहुगुणा (पर्वतीय नवजीवन मण्डल टिहरी गढ़वाल) 01 सितम्बर 1977 के अंक में प्रवेशांक पर प्रतिक्रिया देते हैं- ‘नैनीताल समाचार का पहला अंक मिला। इतने सुन्दर प्रकाशन के लिए बधाई, मुझे आशा है कि यह नवोदित पत्रिका अपने मौजूदा स्तर को केवल बनाये ही नहीं रखेगी, उसको निरन्तर ऊंचा उठाकर पहाड़ों में पत्रकारिता को नई दिशा देने वाली बनेगी।’

01 अक्टूबर 1977 के अंक में जनांदोलनों की धूल मिट्टी में सनी दो और विभूतियों के पत्र छपे हैं। जैसा कि – ‘उत्तराखण्ड में अभी तक ऐसा अखबार नहीं निकला था, जिसका स्वस्थ ओर स्वतंत्र चिंतन हो।’ ये कलम थी- कुंवर प्रसून, जाजल टिहरी। वहीं प्रताप शिखर के शब्द हैं- ‘जाजल जैसे दूरस्थ क्षेत्र में आपका पत्र एक हद तक ‘दिनमान’ की कमी पूरी कर देता है। जब आपने जोखिम उठा ही लिया है तो सहर्ष चुनौतियों का सामना करें।’

इसी अंक में श्रद्धेय धर्मानन्द उनियाल पथिक की पंक्तियां कुछ अलग हैं। आप लिखते हैं ‘एक बात आपको चुभने वाली लिख देता हूं। हम पर्वतीय जन जिस उत्साह से पत्र पत्रिकाओं को आरंभ करते हैं,उस उत्साह से उसमें अन्त तक जुटे नहीं रहते। ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि लोगों ने पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ किया और कुछ ही दिनों बाद बन्द कर दिया। इसका सबसे बड़ा कारण तो आर्थिक कमजोरी ही हो सकता है, क्योंकि हमारे पीछे कोई पूंजीपतियों की ताकत नहीं होती। अखबार निकालना कोई आसान काम नहीं है ऐसा मेरा विचार है।’ पथिक जी ने भी ठीक ही कहा है! क्योंकि ऐसा ही अधिकांश छोटे पत्रों का इतिहास रहा है।

सरसरी तौर पर एक प्रश्न यह भी उठा कि क्या ‘नैनीताल समाचार’ क्षेत्रीय है? किन्तु ‘नैनीताल समाचार’ के पहले अंक के अवलोकन के बाद ही यह दुविधा भी खत्म हो जाती है। 01 नवम्बर 1977 के अंक में पाठक पीयूष पांडेय ने वर्सी मुम्बई सेे लिखा भी है -‘ …एक स्थानीय मित्र से नैनीताल समाचार के कुछ अंक पढ़ने को मिले। पढ़े और बार बार पढ़े। पहले पत्र के नाम से सीमित स्थानीयता का भ्रम हुआ था। लेकिन विषयवस्तु की व्यापकता इसे पर्वतीय क्षेत्र का प्रतिनिधि पत्र बना देती है।’ इसमें कोई दो राय नहीं है। ‘नैनीताल समाचार’ में विषयवस्तु की जो व्यापकता तब थी वही आज भी है। पत्र की गरिमा के साथ समझौता कतई नहीं है।

शुरू के कुछेक अंकों में तो आप बहुत ही गहराई तक चले गए। उन अंकों में आप मात्र ‘लिखने के लिए-लिखने वालों’ की जमकर खबर लेते हैं। आप सीधे अज्ञेय के शब्दों का एक वेरिकेड रखते हैं। अज्ञेय के वे शब्द हैं- ‘जब हजारों पेड़ कटते हैं, तब जाकर एक दिन का अखबार तैयार होता है। अतः लिखने से पूर्व लेखक रचना को इस दृष्टिकोण से परखे कि वह इस योग्य है भी या नहीं, जिसके लिए हजारों पेड़ों को काटना पड़े।’ आशय ये कि भई लिखना है तो कुछ ऐसा लिखें जिससे समाज में सकारात्मक संदेश पहुंचे। ये संपादक महोदय की प्रकृति हित में सकारात्मक सोच है। अन्यथा वे रचनाओं को छांटते समय भी सखेद लिख सकते थे कि -‘खेद है हम आपकी रचना नहीं छाप सकते!’ या रद्दी में डालकर इति श्री कर देते।

इस बात से भी राजीव भाई अवगत थेे कि ईमानदारी से लिखना है तो खतरे भी उठाने ही होंगे। उमेश डोभाल स्मृति स्मारिका 2007 में आप लिखते हैं- ‘मैं लिखता किसी और भाव से हूँ और भाई लोग नीयत में खोट ढूंढने लग जाते हैं। जब-जब पत्रकारिता के बारे में लिखा, हमेशा यही सुनने को मिला कि फलां- आपके लिखे हुए से अत्यन्त नाराज थे। अतः लिखने में डर भी लगता है। फिर भी लिखना तो चाहिए ही। इसीलिये नाराजगी के पुराने किस्सों को भुला कर नये सिरे से लिखने की हिम्मत करता हूँ।’ राजीव भाई की पत्रकारिता का यह निर्भीक पक्ष है।

01 फरवरी 1978 अंक के संपादकीय में एक जगह आप यह भी लिखते हैं कि -‘सामाजिक जीवन में पक्षधरता एक अनिवार्य स्थिति है। जब आप चुप्पी साध लेते हैं, तब यह खतरा और भी बढ़ जाता है कि आप शोषण की प्रक्रिया का मूक समर्थन कर देते हैं। और जब आप अपने अधिकारों को जान कर भी उन्हें प्राप्त करने का उद्यम नहीं करते हैं, उनके लिए आवाज नहीं उठाते हैं; हमें क्या? की मुद्रा अपनाये रहते हैं- तो आप सामाजिक भावना की हत्या में सहयोग करते हैं।’ इन पंक्तियों को पढ़कर ही लग जाता है कि संपादक महोदय निष्पक्ष सामग्री छापने के लिए भी सदैव कटिबद्ध रहे।

किन्तु, वास्तव में जैसा सोचा था -आपका रास्ता उतना सहज और सरल नहीं था। जो संकट उमड़ा – आपने उसी भाव से 01 मई 1982 के अंक में बिना लाग लपेट के कुछ यूं लिखा- ‘पाँच साल के बाद ‘नैनीताल समाचार’ के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा है। पिछले कुछ समय से आप हमारी अनियमितता को लक्ष्य कर रहे होंगे। इसका कारण आर्थिक नहीं है, हालांकि यह सही है कि आर्थिक दृष्टि से नैनीताल समाचार का प्रकाशन जोखिम भरा और नितान्त असफल रहा है।.. .‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू होने के बाद भारत में आठ हजार से अधिक पत्र-पत्रिकाएं शुरू हुई हैं, इसी अनुपात में उत्तराखण्ड में भी अखबारों की संख्या बढ़ी है, हमारा यह मानना है कि न्यून प्रसार वाली अनगिनत छोटी पत्रिकाओं की तुलना में अधिक प्रसार वाली थोड़ी सी पत्रिकाओं का प्रकाशन ज्यादा कारगर होता है, बशर्ते वे सही उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ रही हों। पर उत्तराखण्ड में तथा उत्तराखण्ड से बाहर भी इस बीच कुछ ऐसी पत्रिकाएं शुरू हुई हैं, जिनसे यह आस की जा सकती कि वह धीरे-धीरे अपनी पहचान बना लेंगी। ‘नैनीताल समाचार’ की परम्परा टूटेगी नहीं, इस बात के प्रति हम आशावान हैं। 01 अगस्त 1982 को अपने पाँच साल पूरे करने के बाद हम आपसे विदा लेंगे। लेकिन तुुरन्त नहीं। हमारे पास कुछ महत्वपूर्ण विशेषांकों की सामग्री पड़ी है। जिसे हम बर्बाद नहीं होने देना चाहते। अतः 01 अगस्त के बाद ‘नैनीताल समाचार’ अनियमितकालिक रूप से अपना कार्य करेगा और धीरे-धीरे इस का प्रकाशन बंद कर दिया जायगा। …लेकिन यह निर्णय हमारे हाथ में नही है। जिस दिन ‘नैनीताल समाचार’ पहली बार जनता के सामने आया, हमारा प्रयास यही रहा कि इस पर किसी का एकाधिकार न हो अपने इस फैसले के लिए भी हम पाठकों पर निर्भर हैं कि वे हमें सलाह देते रहें। …यह प्रश्न हमारा नहीं, ‘नैनीताल समाचार’ का हैै, जिससे आप सब जुड़े हुए हैं। इस निर्णयात्मक घड़ी में आपकी चुप्पी हमें कष्ट देगी।’
वाकई संकट की घड़ी कष्टप्रद थी।

लेकिन- आपके लिखने से ही प्रतीत होता है कि ‘नैनीताल समाचार’ को बन्द करने की नीयत – आपकी तब भी नहीं थी। और न ही इन भावनाओं को व्यक्त करने के बाद आपने मुंह बांये खड़ी कठिनाइयों की ओर पीठ फेरी। ऐसी ही, एक नहीं कई संकट की घड़ियां ‘नैनीताल समाचार’ ने देखी। लेकिन राजीव भाई ने हर बार एक नई ऊर्जा के साथ ‘नैनीताल समाचार’ ही नहीं अपितु समाज को भी नई जागृति दी। और- निरन्तरता के साथ यूं पच्चीस साल की अवधि भी पार कर गए।

यह भी आपकी कर्मठता से ही उपजा प्रतिफल है कि ‘नैनीताल समाचार -पच्चीस साल का सफर’ नाम का वृहद संकलन मेरे सामने है। इसमें ‘लीजिये पच्चीस साल पूरे हुए’ नामक आलेख में आप बेबाक लिखते हैं- ‘नैनीताल समाचार’ की रजत जयन्ती!….रोते-झींकते, लड़खड़ाते, अब गिरे-तब गिरे की हालत में भी चमत्कार हो ही गया, ‘नैनीताल समाचार’ ने अपने प्रकाशन के 25 साल पूरे कर ही लिये।…‘पच्चीस वर्ष में ‘नैनीताल समाचार’ ने 502 अंक छापे हैं, कुल 4160 पेज, पुस्तकाकार में, यदि विज्ञापनों को हटा दिया जाये,तो ये पन्द्रह हजार से भी अधिक पेज होते हैं, पन्द्रह हजार पेजों की सामग्री से 400 पृष्ठ की सामग्री का चुनाव? पाँच हजार पृष्ठों की सामग्री चुननी होती तो कोई मुश्किल नहीं थी, शायद दो हजार पृष्ठों में चुनिन्दा सामग्री समेटना भी सम्भव हो जाता लेकिन चार-पाँच सौ पेज? असम्भव! पुुरानी फाइलें आप लेकर बैठें, तो सब कुछ पठनीय, छोड़ने जैसा कुछ लगे ही नहीं। महीनों मगज मारने और हर बार दरवाजा उसी तरह भिड़ा हुआ देख कर यही चोर रास्ता निकला कि इस अंक में तो नैनीताल समाचार की एक दमदार झलक ही दे दो। इतने सीमित स्थान में सर्वश्रेष्ठ को समेटने का दावा करना निरी मूर्खता होगी। सर्वश्रेष्ठ की भी दृष्टि सबकी अलग-अलग हो सकती है। भविष्य में कोई ‘नैनीताल समाचार’ पर शोध करेगा तो हो सकता है उसे हमारा चयन बेकार लगे, कुछ और ही श्रेष्ठ लगे।’ बिना हिचक के -निस्संदेह कह सकते हैं यह संचयन हर किसी के लिए श्रेष्ठ है। इसके लिए आपकी संपादकीय टीम भी बधाई की पात्र है।

आपकी संपादकीय पारी के साथ एक बार पुनः गौरवान्वित होने के क्षण मिले। उन गौरवान्वित क्षणों को आपने ‘नैनीताल समाचार’ के 15 अगस्त 2023 के अंक में कुछ यूं लिखा है- ‘ इस अंक के साथ ‘नैनीताल समाचार’ अपने 46 वर्ष पूर्ण कर 47 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है।…निरन्तर छपना और उसमें भी अपना चरित्र और तेवर बनाये रखना बहुत बड़ी चुनौती है, खास तौर से तब,जब विज्ञापनों की सुविधा आपके पास न हो।…हमने अपने शुरू के सालों से ही ऐसे दर्जनों लेखकों की टीम बनाई, जो कालान्तर में ‘नैनीताल समाचार’ में लिखते हुए भी अनेक अखबारों अथवा टी.वी. चैनलों के उच्च पदों पर पहुंचे। इस तरह से ‘नैनीताल समाचार’ उदीयमान पत्रकारों के लिए एक नर्सरी भी बना। …अनेक विद्वान और विषय विशेषज्ञ भी ‘नैनीताल समाचार’ से जुड़े।…दैनिक अखबारों के जिलावार संस्करणों की तरह उन्होंने खबरों को भी बहुत सीमित कर दिया है।…इस ढांचे में हम कहां फिट होते हैं? हम प्रिंट मीडिया में हैं और ब्रेकिंग न्यूज के इस दौर में हमारी बासी खबरों का कोेई महत्व नहीं रह जाता। …जो विषय विशेषज्ञ थे, वे भी धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं। पाठकों में भी वे ही बचे रहे हैं, जो नैनीताल समाचार के स्वर्णिम दिनों, से इसके साथ जुड़े रहे हैं। नयी पीढ़ी को अपने लायक ‘नैनीताल समाचार’ में कुछ मिलता नहीं। इन हालातों में हम अपना रास्ता टटोल रहे हैं। बहरहाल, यात्रा जारी है, रूकी नहीं है।’

ये हमारा परम सौभाग्य है कि आप 15 अगस्त 1977 से लेकर आज तक न केवल कर्मरत हैं बल्कि वय के आठवें दशक में भी कर्मठ एवं बौद्धिक रूप से ‘नैनीताल समाचार’ के लिए पूर्ण रूप से समर्पित हैं। जन, वन, खन और उत्तराखण्ड आंदोलन ही नहीं अपितु सुई से लेकर रूईं एवं जीव जगत को ‘नैनीताल समाचार’ से जो अद्भुत शक्ति मिली है, उसके पीछे आपकी संपादकीय दूरदृष्टि ही है। हमें गर्व है कि आपकी देखरेख में साहित्य, कला संस्कृति के सरंक्षण में ‘नैनीताल समाचार’ आज भी अग्रणी पंक्ति में है। लोकपर्व हरेला(श्रावण संक्रान्ति) के अवसर पर पाठकों को पत्र के साथ हरेले का तिनड़ा भेजना भी संस्कृति के प्रति आपकी अगाद्ध श्रद्धा का ही प्रतीक है। वास्तव में हमारे रिति रिवाज और संस्कार आपने ‘नैनीताल समाचार’ की परम्परा में भी बहुत गहराई तक बो दिये हैं। निसन्देह ‘नैनीताल समाचार’ का हर एक अंक अनमोल ही नहीं अपितु धरोहरणीय भी है।

राजीव भाई! नई पीढ़ी के कलमकारों के लिए आपकी बौद्धिक क्षमता प्रेरणादायी है! आपके उपरोक्त वाक्यांश की अंतिम पंक्ति है- ‘बहरहाल, यात्रा जारी है, रूकी नहीं है।’ हमारी भी हार्दिक इच्छा यही है कि आपकी सृजनात्मक यात्रा जारी रहे़े! साथ ही ‘नैनीताल समाचार’ को भी आपके ही समानान्तर फलक मिले! आप शतायु जियें!

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