नहीं रहे वेटेरन जर्नलिस्ट हरीश चंदोला
अतुल सती
हरीश चंदोला जी नहीं रहे.. यह खबर आज मिली और बहुत व्यस्त दिन के बीच देर से भी .।
आज चिपको की 49वीं वार्षिकी के अवसर पर हमारा तपोवन से जोशीमठ तक 15 किलोमीटर का लम्बा पैदल मार्च था । सुबह से उसमें रहे । फिर रैणी में चिपको की वर्षी का कार्यक्रम था । वहां भी शामिल हुए।
दोपहर बाद फोन पर खबर हुई । चंदोला जी ने आज प्रातः ही 2 बजे अपने घर दिल्ली में अंतिम सांस ली ।
पूरी दुनिया में पत्रकारिता करने के बाद 90 के दशक में हरीश चंदोला जी ने हिंदुस्तान टाइम्स से सेवानिवृत्त होने पर जोशीमठ में अपना ठिकाना बनाया। जोशीमठ से उनका यह विशेष लगाव ही था । पौड़ी जो कि उनकी जन्मभूमि थी उसके बजाय उन्होंने जोशीमठ को चुना । आज जब जोशीमठ पर संकट है तब उन्हे भी इसकी चिंता थी । जब तक वे बात करने की स्थिति में थे लगातार पूछते रहे । 30 वर्ष पूर्व उनसे जो परिचय हुआ वह पिछले 30 _ 32 वर्ष में कब मित्रता का सा संबंध बन गया कि, उन्होंने कभी बीच के उम्र और अनुभव के अंतर को महसूस ही नहीं होने दिया।
अक्सर वे अपने हम उम्र मित्रों से परिचय करवाते हुए कहते ये हमारे दोस्त हैं अतुल साहब। साहब तो सबके ही नाम के साथ लगता । विनम्रता की हद तक जाकर उन्होंने उसे निभाया। अक्सर उनकी विनम्रता आपको अजीब सी उलझने में डाल देती । जो थोड़ी बहुत अपने में आई वह उनसे मिली।
उनका जाना पत्रकारिता का उत्तराखंड और देश का जो नुकसान हो व्यक्तिगत भी बहुत बड़ी क्षति है। उनके पास देश दुनिया की पत्रकारिता राजनीति समाज की पिछले 80 से ज्यादा वर्षों की स्मृति थी इतिहास था धरोहर थी । कुछ वे लिख गए बहुत कुछ बाकी रह गया।
भारतीय राजनीति की चार पीढ़ियों के वरिष्ट नेताओं को उन्होंने करीब से देखा समझा था। नेहरू जी के कुछ किस्से उनकी पुस्तक में आए हैं । इंदिरा गांधी राजीव गांधी हेमवती नंदन बहुगुणा से लेकर उस दौर के तमाम से उनका निजी संबंध परिचय रहा ।
दुनिया भर के युद्धों की रिपोर्टिंग उन्होंने एन युद्ध के मैदानों से की । वियतनाम युद्ध हो अथवा कांगों का युद्ध या फिर ईरान ईराक के सभी संघर्ष। युद्ध की पत्रकारिता पर पूछने पर वे कोई विशेष महत्व इसे नहीं देते कि पत्रकारिता तो पत्रकारिता है । खतरों को वे सहज जीवन का हिस्सा मानते ।
उत्तराखंड आंदोलन के दौर में हम एक पत्रिका प्रकाशित करते थे। वे उसमें नियमित लिखते। उत्तराखंड के देश के तमाम छोटे पत्रों पत्रिकाओं को नियमित वे भेजते । किसी को ना कहना उनकी आदत में न था। आंदोलन में सक्रीय भागीदारी भी उनकी रही । हर आंदोलन बैठक में , यदि उन्हें सूचना हो तो वे वहां होंगे। समय और दूरी की परवाह किए बगैर ।
50 के दशक में तिब्बत की पैदल दो दो यात्राएं उनकी पत्रकारिता की विशिष्ठ पहचान हैं उपलब्धि हैं । तभी जोशीमठ के नीति व माणा दोनो दर्रों से अलग अलग वे तिब्बत गए। उसके अनुभव हमारी धरोहर हैं ।
उनकी नागालैंड के अनुभवों पर लिखी पुस्तक नागालिम की कथाएं नागा इतिहास समाज और नागा आंदोलन को भीतर से समझने के लिए जरूरी दस्तावेज है । एक पुस्तक अभी प्रकाशित होनी है जिस पर वे काम कर रहे थे । तभी लंबी बीमारी ने उन्हें काम से रोक लिया। तब भी जरा सा स्वस्थ होने पर वे काम पर लग जाते।
पिछले 30 सालों में जाने क्या क्या न उनके साथ से जाना समझा वही अब हिस्सा है ..
विनम्र श्रद्धांजली। उनके परिवार के साथ संवेदना।
पुनश्च : हरीश चंदोला जी का अंतिम संस्कार कल sham ग्रीन पार्क दिल्ली में होगा।