नहीं रहे उत्तराखंड थिएटर और कला के एक बड़े हस्ताक्षर गंगादत्त भट्ट , विनम्र श्रद्धांजलि
मनोज चंदोला
बहुत दुःख के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि सुपरिचित रंगकर्मी और उत्तराखंड की सांस्कृतिक चेतना के महत्वपूर्ण स्तंभ गंगादत्त भट्ट जी हमारे बीच में नहीं रहे। भट्ट जी का निधन उत्तराखंड की सांस्कृतिक और रंगमंचीय सरोकारों की उस पीढ़ी का अवसान है, जो बहुत संघर्षो और संसाधनों के बिना अपनी थाती को बचाने और उसके विस्तार में लगे थे। भट्ट जी पिछले पांच दशक से उत्तराखंड और हिन्दी रंगमंच से जुड़े रहे। उन्होंने ‘पर्वतीय कला केन्द्र’ और ‘पर्वतीय लोककला मंच’ के माध्यम से रंगमंच की कई विधाओं में काम किया। रामलीलाओं में विभिन्न पात्रों का जीवन्त अभिनय करने से अपने रंगकर्म की शुरूआत करने वाले भट्ट जी ने विभिन्न सांस्कृतिक मंचों से अलग-अलग रूपों में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने दर्जनों नाटकों में अपने अभिनय से न केवल एक मुकाम बनाया, बल्कि हमारे रंगमंच को भी समृद्ध किया।
गंगादत्त भट्ट जी का रंगमंच कौशल यह था कि वे किसी भी चरित्र को अपनी भाव-भंगिमा के साथ जीवंत कर देते थे। उन्होंने उत्तराखंड की लोकगाथाओं पर आधारित कई नाटकों में काम कर उन्हें यादगार बना दिया। उत्तराखंड के कई ऐतिहासिक और लोक आख्यानों में वर्णित चरित्रों पर बनी नृत्य नाटिकाओं में उनका नृत्य देखने वाला होता था। एक तरह से उन्होंने पहाड़ी विशेषकर कुमाउनी पुरुषों के नृत्य को नया आयाम दिया। लोकनृत्यों में जो स्टेप और भाव होते हैं उन्हें गंगा दत्त के अलावा कोई कर भी नहीं सकता। उन्होंने हुड़की बोल, झोड़े, चांचरी, बारात में जाने वाले बारातियों और गांव के मेले-ठेलों में होने वाले नृत्यों को बहुत संजीदगी से मंचों पर उतार दिया। बाला गोरिया, भाना गंगनाथ, बारामासा, राजुला मालुशाही, अजुआ बफोल, कगार की आग, आँचरी -माछरी, राज्य एक स्वप्न आदि जैसे कई नाटकों में उन्होंने अपनी अभिनय व कुशल निर्देशन क़ी अमिट छाप छोड़ी। गंगादत्त भट्ट जी ने उत्तराखंड की कई फिल्मों में भी काम किया
गंगादत्त भट्ट जी का निधन उत्तराखंड के रंगमंच और सांस्कृतिक चेतना को बड़ा आघात है। ‘अभिव्यक्ति कार्यशाला’ ,‘हिमाद्री प्रोडक्शन्स’ और उत्तराखंड पत्रकार फोरम की ओर से उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।