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Delhi news

दिवान सिंह नयाल को क्यों भूला दिल्ली का उत्तराखंडी समाज

VED VILAS UNIYAL

दिल्ली में जिन लोगों ने उत्तराखंड के पहाड़ी समाज के उत्थान विकास और संस्कृति के लिए अथक काम किया है उनमें दिवान सिंह नयाल की अपनी बड़ी भूमिका है। देश की राजधानी में उत्तराखंड आंदोलन की लौ को जगाने के साथ
साथ उत्तराखंड समाज आज दिल्ली में उत्तरायणी मेले के भव्य स्वरूप को पाता है, और दिल्ली में गढवाल कुमाऊ जौनसारी अकादमी का गठन हुआ है। इनके पीछे दिवान सिह नयाल जैसे कर्मठ लोगों का बडा योगदान था। वे पूरी सक्रियता और तत्परता से इसके लिए जूझते रहे। यह अलग बात है कि जब अकादमी बनी तो दिवान सिंह नयाल जैसे लोगों के अथक योगदान को भुला दिया गया।

दिवान सिंह नयाल को इसलिए भी याद किया जाना चाहिए कि राजनीति को किस तरह सेवा भाव से जोड़ा जाना चाहिए इसकी वे प्रतीक थे। उनके जीवन में सादगी थी और लोगों के लिए कुछ करने की भावना । कांग्रेस पार्टी ने उनकी जनसेवा को देखते हुए दो बार विधानसभा का टिकट दिया था। दोनों ही बार वे केवल एक हजार मतों से अपना चुनाव हारे थे। शायद धनबल की कमी उनके आड़े आई थी। फिर सियासत के कुछ गुणा भाग भी होते हैं। लेकिन दिवान सिंह नयाल इससे न तो कुंठित हुए तो हतोत्साहित । वह निरंतर समाज के कामों में लगे रहे। उन्होंने किरण नेगी को न्याय दिलाने के लिए भी बड़ी लड़ाई लडी। कई सामाजिक सगठनों से प्रत्य़क्ष अप्रत्यक्ष जु़डर कर वह निरंतर काम करते रहे। दिल्ली में उनसे परिचय हुआ था। लेकिन एक छोटी अवधि का यह परिचय कई यादों के साथ है। बेहद सादगी वाले. निरंतर संघर्ष करने वाले लोगों से संवाद कायम रखने वाले नेता के तौर पर उनकी यादें मन में हैं।
जिस तरह हर पहाड़ से आने वाले व्यक्ति के साथ जीवन की वेदना और कसक होती है वही सब कुछ यादें अपने साथ दिवान सिंह नयाल भी लाए थे। चार साल की उम्र में मां की निधन हो गया था। जब बड़े भाई के साथ अल्मोड़ा से दिल्ली आने लगे तो पिता के स्वर थे कि बेटा यह आखरी मुलाकात है । अब शायद तुझे देख भी पाऊं या नहीं। हुआ भी यहीं उनके पिता भी चल बसे। उनकी बेटी बीना नयाल ने अपने पिता पर एक स्मारिका भी कुछ समय पूर्व निकाली थी। उनकी छोटी बेटी भी सामाजिक मुद्दों पर सक्रियता से आगे हैं।

हालांकि दिल्ली का एक पथ दिवान सिंह नयाल के नाम पर है। लेकिन जिस आप पार्टी में वो जीवन के आखरी दिनों में शामिल हुए थे उसका फर्ज है कि दिवान नयाल की स्मृतियों को संजोने के लिए कुछ बड़े स्तर पर किया जाना चाहिए। बुरांश साहित्य कला केंद्र के संयोजक पत्रकार प्रदीप वेदवाल ने दिवान नयाल के 66वें जन्मदिवस पर एक आयोजन किया । इसमें उनके साथ कई समाजसेवी साहित्यकार राजनेता पत्रकार शिक्षक शामिल हुए। इस आयोजन के बहाने दिवान सिंह नयाल फिर याद आए।

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