दिल्ली में छाया “पांडव भारत” का जादू








दिल्ली के मुक्तधारा ऑडिटोरियम में “द्रौपदी को नारैण” एवं मौर – मौरयाणका मंचन पांडव एवं मुखौटा नृत्य लोकनाट्य शैली में हुआ। दर्शकों ने उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोकगायिका डॉ. कुसुम भट्ट के निर्देशन में हुए भव्य मंचन को खूब सराहा। कुसुम ने उत्तराखंड की पारम्परिक शैली को जिस तरीके से युवाओं को साथ मिलकर प्रस्तुत किया वो काबिले तारीफ था। लोकनाट्य के समापन पर दर्शक अपनी सीटों पर खड़े होकर बहुत देर तक तालियां बजाते रहे. यह इस बात का सबूत था कि प्रस्तुति कितनी जीवंत थी.
इस लोकनाट्य में गढ़वाल के कुछ पारंपरिक लोकगीतों का इस्तेमाल किया गया, लेकिन इसे मंचीय स्वरूप देने के लिए उन्हीं पारंपरिक धुनों पर डॉ .कुसुम ने खुद कुछ गीतों की रचना की.
इस प्रस्तुति ने दिखा दिया कि अगर अच्छी टीम पारम्परिक शैली में कुछ नए प्रयोगों के साथ प्रस्तुति दे तो दर्शक खासकर युवा आकर्षित होते है।

कार्यक्रम में सह निर्देशन आर्यन कठैत ने किया व कार्यक्रम का संचालन राहुल सती ने किया
यह कार्यक्रम दिल्ली सरकार की गढ़वाली, कुमाऊनी एवं जौनसारी अकादमी द्वारा आयोजित किया गया था।अकादमी के सचिव संजय गर्ग ने कार्यक्रम की काफी तारीफ की और कहा ऐसे कार्यक्रम दर्शाते है कि पहाड़ी समुदाय दिल्ली में रहकर भी अपनी संस्कृति से जुड़ा हुआ है। इसमें अतिथि के रूप में लक्ष्मी रावत , पद्मेंद्र रावत ,डी.एस.सुगाडा , राकेश सिंह, रवि वर्मा, गजेंद्र चौहान ,शैलेंद्र मैठाणी , राधा बल्लभ आदि सम्मिलित हुए।





