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Uttrakhand

ज्वालपा धाम-संस्कृत और संस्कृति केंद्र पर जयंतियों का उत्सव


पार्थसारथि थपलियाल

ज्वालपा धाम, पौड़ी गढ़वाल में कोटद्वार और पौड़ी के मध्य राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। कोटद्वार से इस स्थान की दूरी 74 किलोमीटर और जिला मुख्यालय पौड़ी से 34 किलोमीटर है। नबालका नदी (पश्चिमी नयार नदी) के तट पर स्थित ज्वालपा देवी का सिद्धपीठ होने के कारण इस स्थान की महिमा प्राचीन काल से लोकाख्यानों और लोकगीतों के माध्यम से जन जन में व्याप्त है। दैत्यराज पुलोमपुत्री शची को क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी पार्वती ने ज्वाला रूप में प्रकट होकर मनोकामना पूर्ण होने की सिद्धि प्रदान की थी इसलिए यह सिद्धपीठ है। इस सिद्धपीठ में भगवती ज्वालपा का गढ़वाल शैली का एक प्राचीन मंदिर है जहां श्रद्धालु माता की अखंड जोत का दर्शन करने जाते हैं।


बीसवीं सदी के सातवें दशक तक इस धाम पर माँ ज्वालपा के मंदिर के अलावा कुछ भी निर्माण नही हुआ था। 1969 में कुछ भक्तों ने मिलकर श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति बनाई और यात्री सुविधाओं व विकास कार्यों पर ध्यान दिया। श्रीमती सुरेशी देवी थपलियाल (मूल गांव सिमतोली) जिनका परिवार टिहरी रहता था, उन्होंने पहली धर्म शाला निर्माण के लिए धनराशि समिति को दान की। उसके बाद पिछले 53 वर्षों में अनेक दानदाताओं के आर्थिक सहयोग से एक दर्जन से अधिक धर्मशालाएं बनाई गई। वर्तमान में यहाँ 60-70 लोगों के लिए ठहरने की सुविधा उपलब्ध है।
समिति ने सबसे बड़ा काम संस्कृत और संस्कृति के संवर्धन के लिए किया। वर्ष 1973 में ज्वालपा धाम में श्री ज्वालपा धाम संस्कृत विद्यालय की स्थापना की। यह विद्यालय अपनी स्वर्ण जयंती मना रहा है। इस विद्यालय में आधुनिक शिक्षा सहित प्रथमा और मध्यमा (जूनियर हाई स्कूल से इंटरमीडिएट तक) संस्कृत भाषा में शिक्षा दी जाती है। इसके अलावा विद्यार्थियों को सांस्कृतिक स्तर पर कई तरह से तैयार किया जाता है- जैसे- ब्रह्मबेला में उठाना, स्नान ध्यान व योग की शिक्षा प्राप्त करना। संध्या करना सीखना, रुद्री पाठ, रूद्राभिषेक, कर्मकांड, ज्योतिष, संगीत सीखना, शास्त्रों का अध्ययन, पूजा पाठ का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करना भी शामिल है। लगभग गुरुकुल पद्ध्यति से पढ़ाई की व्यवस्था यहां पर उपलब्ध है। भोजन, आवास, पाठ्य सामग्री, गणवेश आदि सब, विद्यार्थियों के लिए निशुल्क है। वर्ष 1996 में समिति ने अनुभव किया कि जब तक शास्त्री स्तर तक कि पढ़ाई न हो तब तक संस्कृत शिक्षा अधूरी है। इस समिति द्वारा 1997 में श्री ज्वालपा देवी आदर्श संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की गई। इस महाविद्यालय का रजत जयंती वर्ष 2022 था। 2022 में समिति ने केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली से स्नातकोत्तर संस्कृत शिक्षा की मान्यता प्राप्त करने का निवेदन किया। प्रक्रिया पूरी होने पर मई 2022 में साहित्य और व्याकरण विषयों में आचार्य स्तर तक मान्यता मिलने की खुशी समिति और विद्यार्थियों को मिली। अब छठी में प्रवेश लेकर कोई विद्यार्थी आचार्य की डिग्री तक ज्वालपा धाम में शिक्षा ग्रहण कर सकता है। समिति के अपने संसाधन बहुत कम हैं। सब कुछ मंदिर समिति को दानदाताओं द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता से ही संभव हो रहा है। इन दानदाताओं में समिति के सदस्य, माँ ज्वालपा के श्रद्धालु, संस्कृत संवर्धन में रुचि रखने वाली संस्थाएं व व्यवस्थाएं आदि शामिल हैं।


12 मई 2023 को प्रातः 11 बजे ज्वालपा धाम में मंदिर समिति द्वारा श्री ज्वालपा धाम संस्कृत विद्यालय की स्वर्ण जयंती और श्री ज्वालपा देवी आदर्श महाविद्यालय की रजत जयंती के उपलक्ष्य में एक समारोह का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर समिति द्वारा तैयार की जा रही स्मारिका ज्वालपा जोत का विमोचन भी किया जाएगा।
इस आयोजन में शिक्षा मंत्री, उत्तराखंड डॉ. धन सिंह रावत को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के देवप्रयाग पीठ (परिसर) के निदेशक प्रो. वी बी सुब्रमण्यम, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलपति प्रो. दिनेश चंद्र शास्त्री, संस्कृत शिक्षा निदेशक श्री एस पी खाली और संस्कृत शिक्षा परिषद उत्तराखंड के सचिव डॉ. वाजश्रवा आर्य विशिष्ठ अतिथि होंगे।
इस आयोजन में कई अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों को भी आमंत्रित किया गया है। अतिथि भाव से आने वाले हर व्यक्ति का स्वागत है। संभवतः आप भी ऐसा अवसर हमें देने का सोच रहे हैं? सोचिए मत, आइए।
आंखों में उमंगें हैं मनमें तरंगें स्वागत करने आपका
हाथों में पुष्प गुच्छ है, भाव से अभिनंदन आपका।।

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