जोशीमठ की जनता के विस्थापन और पुनर्वास के सम्बन्ध में जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति का पक्ष

तीन दिन पूर्व जोशीमठ के विस्थापन पुनर्वास के सन्दर्भ में सरकार की बनाई सरकारी कमेटी ने विस्थापन पुनर्वास से सम्बन्धी तीन प्रस्ताव सरकार को भेजे हैं ।
जिन पर हमने अपनी राय अपने फ़ेसबुक लाईव में, तहसील में चल रहे धरने में वक्तव्य में, कुछ पत्रकारों के सवाल के जवाब में व टी वी चैनल पर दिये हैं ।
हमारा कहना है कि यह बहुत आधे अधूरे व अपरिपक्व सुझाव हैं , जिनसे कुछ भी स्पष्ट नहीं होता ।यह केवल समाचारों सुर्खियां बनाने के काम भर के हैं ।
हमने मांग की थी सम्पूर्ण विस्थापन एवं पुनर्वास नीति की । जिसमें व्यापक तौर पर सभी प्रभावित लोगों के हितों के बारे में व उनके लिए किए जाने वाले पुनर्वास के सन्दर्भ में ठोस व्यवहारिक नीति होती ।जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों के हितों को समाहित किया जाता । यथा व्यापारी, छोटे व्यापारी, कृषि से जुड़े लोग, दैनिक मजदूर, वेतन शुदा, होटल व्यवसायी, पर्यटन से जुड़े लोग , भूमिहीन व दस्तकार ,स्थाई मूल निवासी एवं किराएदार आदि ।
इसके लिये हमने सुझाव दिया था कि भारत सरकार की विस्थापन एवं पुनर्वास नीति 2007 को आधार मानकर उसमें जोशीमठ की भौगोलिक एवं व्यावसायिक स्थिति के मद्देनजर परिवर्तन कर अथवा जोड़कर नीति बने । वर्तमान मंहगाई व बाजार दर को इसमें जोड़ा जाय । इस नीति में समाज के सभी वर्गों के हितों के अनुरूप अलग अलग योजना व प्रस्ताव किये गए हैं । जिससे वर्ग विशेष के हितों व अध्यवसाय की सुरक्षा हो सके ।
किन्तु सरकार के द्वारा कहा गया कि हम जोशीमठ के लिये अलग से नीति ला रहे हैं । जिसका अभी तक कोई संकेत नहीं है । जो भी बात आ रही है टुकड़ों में । आज ही लोगों के ऋण के सन्दर्भ एक बयान आया है । अब सिर्फ एक बैंक से लिए कर्ज की वसूली रोकने से किसका क्या भला होने वाला है । यह कहाँ तक व्यवहारिक है । ऐसे ही बिजली पानी के बिलों को लेकर आए तदर्थ आदेश हैं ।
आपने न तो अभी भूमि का चयन किया है न भूमि के मूल्य का निर्धारण । किन्तु लोगों की भूमि के अधिग्रहण करने का पहले ही मंसूबा कर लिया है ।
हमारी राय थी कि आप पहले लोगों को अस्थाई सुरक्षित शिविर में शिफ्ट कर लें । इसके लिये हमने अस्थाई प्रिफेब्रिकेटेड घर बनाने का सुझाव रखा था । जिसे 5 जनवरी को हुए हमारे साथ समझौते में आपने लिखित रूप में मन लिया था । तब आपने 4 हजार प्री फेब बनाने के तत्काल आदेश की बात कही थी । जो अभी तक जमीन पर नहीं दिखा, सिवा कुछ मॉडल ढांचों के ।
इससे साल छः महीने लोग वहां रहते और जोशीमठ में भू धंसाव पर तब तक नजर रखी जाती, स्थिरीकरण आदि के बारे में प्रयास होते । विस्थापन- पुनर्वास नीति पर निर्णय होते । इतना समय मिल जाता । उसके बाद इसको व्यवहार में लाने का कार्य होता । लोगो पर और सरकार पर भी दबाब नहीं होता ।
आज आप होटल के कमरों का लाखों रुपया दे रहे हैं और लोग संतुष्ट नहीं हैं । क्योंकि एक कमरे में कब तक समान सहित 4 – 5 लोग स्वस्थ हो रह सकते हैं .?
इसीलिये हमने शुरू में ही इस आपदा से निपटने हेतु स्थानीय प्रतिनिधियों के साथ मिलकर हाई पावर कमेटी का सुझाव रखा था । जिससे स्थानीय परिस्थिति के साथ सामंजस्य रहे किन्तु ..!
जोशीमठ के भूस्खलन के लिये जिम्मेदार कारकों की ईमानदारी से साफ पहचान करके ही सही निदान तक पहुंचा जा सकता है । इसमें दुराव छिपाव व किसी के हितों का बचाव का परिणाम विनाशकारी होगा ।
अब भी अगर सरकार सम्पूर्ण नीति के साथ नही आती तो यह आपदा के घाव को और गहरा ही करेगा । जिससे जन असंतोष का सामना करना होगा । जोशीमठ बड़ी आबादी वाला महत्वपूर्ण नगर है । जिसका चारधाम यात्रा में व पर्यटन का महत्व है । यह इससे प्रभावित न हो इसके लिये थोड़ा उदार ह्रदय से वे व्यापक नजरिये से सोचे जाने व दूरंदेशी से निर्णय लिए जाने की जरूरत है , जो सिर्फ प्रशाशनिक दृष्टि के नजरिये से सम्भव नहीं है ।

अतुल सती via FB

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