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Uttrakhand

जिन्होंनेअपनी जिन्दगी की 45 दिवाली , वसन्त जिले के विकास के लिए समर्पित किए और शहीद हो गए थे उनके नाम से एक भी योजना लागू नहीं कर पाए क्षेत्र और जिले के जन प्रतिनिधि


KUCH DONATE KIJIYE

स्व० राणा सत्यं सिंह जी ने कालीमठ में मां काली की उपासना की तत्कालीन एक पुजारी के द्वारा इन्हें मां काली का एक श्रीयंत्र आशीर्वाद स्वरूप दिया गया था उस यंत्र को पाने के बाद स्व० राणा जी को कभी भी हार, भ्रम, दुख व विषाद का सामना नहीं करना पड़ता था ,राणा जी सुबह चार बजे उठकर मां काली की भक्ति में लीन हो जाते थे। स्व० राणा सत्ये सिंह जी के पुत्र समर विजय राणा जी के अनुसार मां काली ने राणा जी को स्वप्न में बताया कि हे राणा सत्ये सिंह बस तेरा मेरा साथ यही खत्म होता है, तू अपने जरूरी कार्य निपटा ले बहुत जल्द हम बिछड़ने वाले हैं यह बात स्व० राणा जी ने अपने करीबी मित्र को बतायी ,और चल पड़े लखनऊ की ओर तभी घर वापसी के समय वाहन दुर्घटना में राणा सत्येसिंह जी का नाम अमर हो गया।

स्व० राणा सत्ये सिंह जी, गांव: चौरा पट्टी नैलचामी, पो०: डांगी, जिला टिहरी गढ़वाल में जन्मे थे। उन्होंने तत्काल बी.ए., एल.एल.बी. की पढाई पूरी की और अध्यापन कार्य के लिए प्रताप हायर सेकेण्डरी स्कूल टिहरी चले गये। उसके बाद उन्हें आजादी के बाद की अन्तरिक सरकार में पी.ए. सेटलमेन्ट कमिश्नर टिहरी स्टेट में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। यही नहीं वे एस.डी.एम. टिहरी स्टेट भी रहे। वे वर्ष 1952-57 तक देव प्रयाग क्षेत्र से निर्दलीय विधायक रहे। उन्होंने 1957 से 23-7-1963 तक कीर्तिनगर व टिहरी में लगातार वकालत की। जबकि वे अंतरिम सरकार के दौरान अध्यक्ष जिला परिषद, टिहरी गढ़वाल रहे। और पुनः नवम्बर 1961-1963 तक जिला परिषद, टिहरी गढ़वाल के अध्यक्ष बने, मात्र 45 वर्ष की आयु में वे संघर्ष करते करते इस दुनियां को अलविदा कह गये।
टिहरी से घनसाली तिलवाड़ा मोटर मार्ग हो या फिर रूद्रप्रयाग का जखोली विकासखण्ड जो कि पहले टिहरी जिले में था और अब रुद्र प्रयाग में चला गया है के साथ साथ समस्त टिहरी जिले के ब्लॉकों की स्थापना की बात, जब भी आती है तो स्व: राणा सत्ये सिंह जी को भुलाया नहीं जा सकता। गरीब किसान कीर्ति सिंह राणा जी के घर पर पट्टी नैलचामी के चौंरा गांव में जन्मा यह लाल बचपन से ही तेजस्वी रहा। इनका परिवार बहुत धनी नहीं था। लिहाजा मुसिबतों का सामना करते हुए पढ़ाई लिखाई का जिम्मा इन्होंने खुद लिया। बी. ए. करने बाद जब किसी गरीब को खुद के हक के लिए लड़ते देखा तो उनके मन में पीड़ा सी होने लगी। एल.एल- बी. की पढ़ाई पूरी कर लौटते ही स्वः राणा जी का चयन अध्यापन कार्य हेतु प्रताप इण्टर कॉलेज टिहरी में हो गया। कुछ वर्ष अध्यापन कार्य करने के बाद फिर उनका चयन पी.ए. सेटेलमेन्ट कमीशनर टिहरी स्टेट के लिए हुआ। वहां पर अपनी सेवा दी और बाद में परिस्थितियां ऐसी बनी कि स्वः सत्ये सिंह राणा को उप जिला मजिस्ट्रेट टिहरी स्टेट बना दिया गया किन्तु उनके मन में गरीबों की पीड़ा सताती रही। आगे चलकर स्व० राणा ने नौकरी छोड़ दी सामाजिक कार्यों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी शुरू कर दी। राजनीति के क्षेत्र में भाग्य अजमाना चाहा और वर्ष 1952 में देवप्रयाग क्षेत्र से विधायक का चुनाव लड़ा तब तक स्वः राणा जी आम जनता में अपने नाम का डंका बजा चुके थे। बच्चा-बच्चा भी राणा सत्येसिंह का नाम जानता था। अन्य पार्टीयों ने भी राणा जी को डोरे डालना शुरू कर दिया था किन्तु राणा जी ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की ठानी और कारण इसके स्व० राणा जी भारी बहुमत से विजयी हुये।

राणा सत्ये सिंह जी ने अपने लघु जीवन काल में सकारात्मक सोच, विकास में लोगों की भागीदारी और गरीबों के दर्द को बांटने की बात की। वर्तमान में भले ही उनकी राजनीतिक विरासत को कोई भी राजनेता व राजनैतिक संगठन आगे नहीं बढ़ा पा रहे हो मगर उनकी क्षेत्र के विकास में दी जाने वाली आहूति लोगों के जेहन में आज भी तरोताजा रहती है। उनमें सूरज के जैसा तेज था वो उठते ही सुबह चार बजे स्नान कर सामाजिक कार्यों में लग जाना लोगों की समस्याओं को सुनना व उनका समाधान कर उनकी दिनचर्या बन चुकी थी। स्थानीय लोग बताते हैं कि राणा सत्ये सिंह जी बाद बाद में इतना व्यस्थ होने लगे कि उनके पास परिवार को समय देना मुश्किल हो गया। राणा सत्यसिंह जी के पास दूसरों के प्रति उदारता की सच्ची भावना लिए क्षेत्रीय विकास को नीति अपनी मेज पर नहीं बल्कि गांव-गांव में चौपाल लगवाकर लोगों की गम्भीर समस्याओं की एक सूची तैयार करवाते थे फिर शुरू होते थे विकास कार्य। राणा सत्येसिंह ने अपने जीवन का सारा समय दूसरों की सेवा व दूसरों को हर प्रकार के सुख पहुंचाने में लगाया। अपने लिए उनके पास एक रति का भी समय नही रहता था। राणा सत्ये सिंह जी ने अपने संक्षिप्त राजनीति के क्षेत्र में बड़े बड़े कार्य किए जिनसे आम जनता आज भी रूबरू होती है स्व० राणा को जनता ने विधायक के बाद नवम्बर 1961 में टिहरी जिला परिषद का अध्यक्ष चुना और पुनः हुए चुनाव में भी टिहरी जिला परिषद के अध्यक्ष पद पर दुबारा लोगों की पसंद बने अपने लम्बे और विभिन्न विकास कार्यों की फेहरिस्त में स्व० राणा द्वारा कुछ ऐतिहासिक कार्य किए गये। जिन्हें टिहरी घनसाली चिरवरिया-तिलवाड़ा मोटर मार्ग रूद्रप्रयाग व जखोली विकास खण्ड के साथ साथ समस्त जिले में विकास खंड खुलवाए , चम्बा-मसूरी फलपट्टी- योजना तैयार करवायी, टिहरी जिला परिषद का गठन, स्वरोजगार हेतु लोगों को भेड़ पालन के लिए प्रोत्साहित करना, गांव-गांव जाकर वृक्षारोपण करवाना, जनपद को यातायात से जोड़ने के लिए दर्जनों मोटर मार्गों की वृद्धि करवाना एवं शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न स्कूलों को खुलवाने का श्रेय आज भी लोग इन्हें देते हैं। स्व सत्ये सिंह राणा जी का एक ही सपना था कि देश के बढ़ते विकास के साथ टिहरी कभी पिछड़े ना। यही कारण था कि स्व० राणा जी ने हर व्यक्ति को
आत्मनिर्भर व स्वरोजगार अपनाने की प्रेरणा दी। स्व राणा जी ने क्षेत्र के विकास के लिए रोड , पेड़ और भेड़ का नारा दिया था । गांवों में चौपाल लगाकर सम्बन्धित क्षेत्र की विकास योजनओं को स्वीकृति करवाकर यह विकास पुरुष लखनऊ से टिहरी लौट ही रहे थे कि अचानक जाजल गदेरे पर बस दुर्घटना ग्रस्त हुई। जिसमें सवार राणा सत्यसिंह काल के गोद में समा गए। साथ ही राणा सत्ये सिंह के द्वारा चलाए गए विकाश का अविरल रथ आखिर हमेशा-हमेशा के लिए यही ठहर गया। चिंता का विषय यह है कि इस महापुरूष के नाम से आज पूरे टिहरी जनपद व नैलचामी पट्टी में एक भी योजना संचालित नहीं है. जिससे कि इनका नाम अमर रह सके। सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोग हों या राजनीतिक संगठनों के मुख्यधारा से जुड़े लोग इन लोगों ने कभी भी इस शख्सियत का सुमिरन करना मुनासिब नहीं समझा और ना ही उनके द्वारा स्थापित कार्यों को उनके नाम से संचालित करने की बात कही। बजाय ये नेता/ कार्यकर्ता किस्म के लोग योजनाओं के ठेके लेने के लिए जरूर विभागों के चक्कर काटते पिटते है । परन्तु दुःख इस बात का है कि क्षेत्र में स्व० राणा जी के नाम का एक भी अस्पताल, स्कूल व सड़क नहीं है।जबकि उस जमाने में राणा जी एक मात्र नेता के नाम से जाने जाते थे ,और तो और राणा जी टिहरी जिले की कई विकास योजनाओं को लखनऊ से पास करा कर टिहरी भी नही पहुंच पाए और ऑन ड्यूटी दुनिया को अलविदा कह गए, स्व श्री सते सिंह राणा जी ने अपनी जिन्दगी के पैंतालीस बसन्त और पैंतालीस दिवाली टिहरी के विकास के लिए न्योचार की है मैं भगवान सिंह चौधरी अध्यक्ष वन यू के टीम सामाजिक संगठन भिलंगना ब्लॉक आप सभी जिले वा क्षेत्र के जन प्रतिनिधियों ( सांसद, विधायको ,और जिला अध्यक्ष महोदय) से निवेदन करता हूं कि आप घनसाली तिलवाड़ा मोटर मार्ग का नाम, राजकीय इंटर कालेज डांगी का नाम और राजकीय मेडिकल कालेज टिहरी का नाम स्व श्री सते सिंह राणा जी के नाम से करवाने की कृपा करें, और भूत पूर्व विधायक श्री भीम लाल आर्य जी द्वारा जो भिलंगना विकास खंड के मुख्यालय के प्रांगण में स्व राणा जी की मूर्ति स्थापना की गई है उसको भव्या और दिव्या स्वरूप देकर उसका सौंदर्यकरण करवाया .

Rana ji प्रशासनिक अधिकारी टिहरी जिला रहे , . प्रथम विधायक देव प्रयाग क्षेत्र टिहरी उत्तर प्रदेश रहे, . वकालत की, . दो बार जिला अध्यक्ष टिहरी चुने गए , और 45 साल की उम्र में ऑन ड्यूटी लखनऊ से विकास योजनाओं को पास करा कर टिहरी जाने ही वाले थे की रास्ते में बस दुर्घटना में नेता जी की मृत्यु हो गई , 1963 में शिल्प कारों द्वारा इन के नाम से एक गीत रचा गया था जो की समय के साथ ही विलुप्त हो गया है परन्तु बड़ा दुर्भाग्य है कि जिले के साथ साथ क्षेत्र के किसी भी जनप्रतिनिधि ने या कहे शासन प्रशासन ने इनके नाम का आज तक न तो कोई स्कूल, कॉलेज , रोड, हॉस्पिटल तक इनके नाम से नही बनवाया , जबकि स्व राणा जी ने जिले के सभी ब्लॉक खुलवाए,
पहाड़ के विकास के लिए रोड, पेड़ और भेड़ राणा जी का नारा था

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