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Uttrakhand

जसपुर कुंडा , उत्तराखंड में एक निर्दोष महिला की उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा गोली मार कर की गयी हत्या पर पूर्वमुख़्यमंत्री हरीश रावत ने लिया कड़ा रुख

हाल ही में जसपुर में कुंडा , उत्तराखंड के निकट सादे कपड़ों में उत्तर प्रदेश के पुलिस कर्मियों द्वारा एक महिला की गोली मारकर हत्या के मामले पर पनि गंभीर प्रतिक्रिया दी है. हरीश रावत व्यक्तिगत तौर पर इस महिला गुरप्रीत कौर के घर गए और उनके पीड़ित परिवारजनों महिला से मुलाकात कर उन्हें सांत्वना दी और उन्हें न्याय दिलाने का आश्वासन दिया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ध्यान इस गंभीर मसले की तरफ खींचते हुए हरीश रावत ने कहा कि इस सारे प्रसंग में उत्तराखंड पुलिस को निसहाय उपहास का पात्र दिखाना या अपराधियों को संरक्षण देने वाला जताना, कहां तक तर्कसंगत है इसका जवाब तो राज्य के मुख्यमंत्री जी देंगे ! मगर एक नागरिक के तौर पर मैं अपनी व्यथा जरूर आगे रख रहा हूंँ। इस मसले को पूरी गम्भीरता से लेते हुए उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तर रदेश पुलिस को आड़े आड़े हाथों लेते हुए आरोप लगाया की बगैर कुंडा और उत्तराखंड की पुलिस को सूचित कर किसी अनजान घर में ताबड़ तोड़ घुसना और फिर एक निर्दोष महिला को गोली से भून देना न सिर्फ एक अपराध है बल्कि गंभीर कुकृत्य . हरीश रावत का इस सन्दर्भ में दिया गया विस्तृत बयान :

जसपुर में कुंडा के निकट मेरी बहन गुरप्रीत कौर, पुलिस की गोली से मारी गई उनको मेरी श्रंद्धाजलि। कई सवाल इस प्रसंग में उठे हैं। मैं शोक संतप्त परिवार से मिलने गया था। मेरी पोस्ट पर हमारे दोस्तों ने कुछ गंभीर सवाल उठाए हैं। मेरा दर्द गुरप्रीत कौर की हत्या का तो है ही है, क्योंकि एक महिला अपने घर के अंदर जो उसका मंदिर था, वहां पुलिस की गोली का शिकार हो गई। उत्तर प्रदेश पुलिस का तर्क है कि वह अपराधी का पीछा करते हुए उस घर की लोकेशन मिली थी वहां पहुंचे थे। बाहर पुलिस के लोग उस घर पर डेरा नहीं डाल सके! और नीचे उनके पति से बात करते हुए दनादन सीढ़ियां चढ़कर ऊपर गए और गोली चल गई। क्या उत्तर प्रदेश पुलिस को यह नहीं चाहिए था कि उस घर पर पहुंचने के बाद, कुंडा क्षेत्र की पुलिस को जो उनकी पड़ोस की पुलिस थी, उनको खबर कर दें कि हम यहां डेरा डाल कर के बैठे हैं! क्या उधमसिंहनगर पुलिस, प्रशासन को इस बात की जानकारी नहीं दी जानी चाहिए थी? यह जानकारी गोली चलने के बाद जब गांव के लोगों ने घेर लिया उत्तर प्रदेश पुलिस को जो सादी वर्दी में थी, तब उत्तराखंड पुलिस को घटनाक्रम की जानकारी मिलती है और वह घटनास्थल पर पहुंचती है। उत्तर प्रदेश पुलिस का तर्क है कि, यदि वह खबर करते कि हम अपराधी का पीछा करते हुए आपकी सीमा में घुस गए हैं तो अपराधी को हमारे पीछा करने की भनक लग जाती। मगर मेरा सवाल है कि घेरा डालने के बाद तो सूचना दी जा सकती थी, क्या उधमसिंहनगर, उत्तराखंड की पुलिस इतनी अविश्वसनीय है कि किसी इंटर स्टेट गैंग का पीछा करते हुए पड़ोसी राज्य की पुलिस हमारी सीमा में प्रवेश करे तो उसको सूचना देना वह मुनासिब न समझे। दो घटनाएं उधमसिंहनगर में हुई और दो घटनाएं अभी हरिद्वार व देहरादून में भी हुई हैं। इंटर स्टेट गैंग ऑपरेशन में है यह तथ्य क्या उत्तर प्रदेश पुलिस को सम्मान पूर्वक उत्तराखंड पुलिस से बातचीत कर ऐसे गैंग्स को समाप्त करने या उनको जेल में डालने की कार्ययोजना नहीं बनानी चाहिए? प्रश्न यह उठता है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने उत्तराखंड पुलिस प्रशासन के स्वाभिमान पर चोट की है। उत्तराखंड के स्वाभिमान पर भी चोट की है। उत्तर प्रदेश हमारा बड़ा भाई भी है। वहां के पुलिस के प्रति मेरे मन में बहुत आदर है। मगर इस सारी प्रक्रिया में जिस प्रकार हमारी पुलिस का मान वर्धन हुआ है जो उत्तर प्रदेश पुलिस के सिपाही, लोगों ने पकड़कर के कुंडा पुलिस के हवाले किए थे, वो कुंडा पुलिस को धक्का देकर भाग जाते हैं? बैरीकेट तोड़कर के निकल जाते हैं, उन पर वह तो स्वंय एक अपराध है, पुलिस कस्टडी से भागना। चाहे वो पुलिस वाले ही क्यों न भाग रहे हों ? उनके उपर कोई कार्रवाई करने के बजाए दोनों राज्यों के बीच में जो एक-दूसरे के ऊपर दोषारोपण का प्रसंग चल पड़ा है, वह बहुत दु:खद है। क्या यही डबल इंजन और ट्रिपल इंजन की सरकार की पहचान है! यह गंभीर सवाल है। अपराधी गेंगों को समाप्त करिए, मगर दोनों पुलिस के लोग परस्पर विश्वास के आधार पर कार्रवाई करिए। इस सारे प्रसंग में उत्तराखंड पुलिस को निसहाय उपहास का पात्र दिखाना या अपराधियों को संरक्षण देने वाला जताना, कहां तक तर्कसंगत है इसका जवाब तो राज्य के मुख्यमंत्री जी देंगे ! मगर एक नागरिक के तौर पर मैं अपनी व्यथा जरूर आगे रख रहा हूंँ।

Uttarakhand Police Uttar Pradesh Police
Pushkar Singh Dhami ंयोगीआदित्यनाथ

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