जल जंगल जमीन हमारी । नहीं सहेंगे धौंस तुम्हारी।।

९ अगस्त भारत छोड़ो के द्दिन महिलाओं का हेलंग कुच

हेलंग एकजुटत्ता मंच और उत्तराखण्ड की महिलायें अपने मौलिक हक हुकूक के लिए ९ अगस्त भारत छोड़ो के ऐतिहासिक दिवस पर हेलंग जा रही हैं. इस मौके पर हेलंग एकजुटत्ता मंच ने अपील जारी की है.

15 जुलाई को राज्य के दूरस्थ पहाड़ी हिस्से में एक घसियारी महिला के साथ जो हुआ उसकी एक झलक ने सम्पूर्ण राज्य में आक्रोश की एक लहर पैदा कर दी । एक महिला.. घास लाती हुई .. और पुलिस की छीना झपटी .! एक महिला जो इस राज्य की बुनियाद में रही है । राज्य आंदोलन की पहली पंक्ति में । जिसने राज्य आंदोलन में सत्ता के दमन को सबसे विभत्स रूप में झेला । एक महिला जो इस पहाड़ को आज भी अपनी पीठ पर उठाए है ।.. घास वही पहाड़ है जिसे महिलाओं के श्रम ने अभी भी बचाए रखा है जिंदा रखा है । पुलिस वही पुलिस है जिसके दमन के बीच से राज्य को जीत कर लाए थे ।


इस दृश्य ने हर आम ओ खास को शहरी ग्रामीण को नौजवान वृद्ध को भीतर से झकझोरा । और इसने लोगों को पुनः राज्य आंदोलन के बुनियादी सवालों को हल करने की लड़ाई को सतह पर ला दिया ।
इसी का परिणाम था कि 15 तारीख को हुई घटना का जो वीडियो 16 को प्रसारित हुआ उसके महज दो दिन बाद 19 को पूरे राज्य में लोगों ने घटना के विरोध में प्रदर्शन किए ज्ञापन दिए और इसके 4 दिन बाद ही 24 जुलाई को राज्य के तमाम हिस्सों से लोग हेलंग में जुटे । 1 अगस्त को पूरे राज्य में 13 जिलों में 35 स्थानों पर पांच सूत्री मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन व ज्ञापन दिए गए ।
हेलंग की इस घटना से न सिर्फ जल जंगल जमीन के बुनियादी सवालो को सतह ला दिया है वरन राज्य आंदोलन की बिखरी हुई शक्तियों को भी एकजुट कर एक मंच पर लाने का काम किया है । अब इस मंच के साथ साथ हम आप सबकी जिम्मेदारी है कि इन सवालों के हल होने तक इस संघर्ष को जारी रखें । राज्य बनने के बाद सरकारों ने नए नए कानूनों के जरिये उत्तराखण्ड की जमीनों की लूट को आसान किया है । आज हालत यह है कि उत्तराखण्ड के भू कानून का लाभ उठाते हुए कोई भी कितनी भी भूमि खरीद सकता है जिससे उत्तराखण्ड भू माफियाओं की खुली लूट का चारागाह बन गया है । पहले से ही बहुत अल्प कृषि भूमि वाले इस राज्य में कृषि भूमि की इस लूट से भविष्य में यहां के निवासियों के सम्मुख इसका संकट पैदा हो जाएगा ।
72 प्रतिशत वन भूमि वाले इस राज्य में वन कानूनों का शिकंजा इतना कड़ा है कि लोगों के पास अपने ही खेत मे अपने उगाए लगाए पेड़ों पर भी अधिकार नहीं है । अपने आस पास जंगल होते हुए भी लोग लकड़ी के लिए बाहर से आई लकड़ी पर निर्भर हैं अपने जंगलों पर अधिकार की सौ साल पुरानी लड़ाई में अंग्रेजों से लड़ कर जो अधिकार हमने हासिल किए थे आज वे भी गंवा दिए हैं । वन अधिकार कानून 2006 के माध्यम से लोगो के परंपरागत वन हकों को मान्यता देने के बजाय सरकार वन पंचायतों में मिले हकों को भी हड़पने के लिए आतुर हे।
उत्तराखण्ड को ऊर्जा प्रदेश वनाने के नाम पर हमारे पानी को सरकारों ने पहले ही बड़ी बड़ी कम्पनियों को बेच दिया है । अपनी नदियों पर घाटों पर भी जनता का अधिकार खत्म कर दिया गया है । बहुत सी जगहों पर लोग शवदाह करने के लिए भी कम्पनियों की कृपा पर निर्भर हो गए हैं । इन कम्पनियों से मिलने वाला रोजगार भी नितांत अस्थाई किस्म का है। अपना जल जंगल जमीन गंवा कर,हक अधिकार के बदले, महज कुछ सालों के लिए चंद लोगों को कुछ हजार रुपये में बंधुआ बना कर यह लूट को जायज बनाने का षड्यंत्र के सिवा कुछ नहीं है ।
इसके कारण पहाड़ जगह जगह से कमजोर कर दिए गए हैं । जगह जगह भू धंसाव व भू स्खलन से लोगो के घर मकानों में दरारें आ गयी हैं । यह सब पूरे पहाड़ में एक बड़े विस्थापन का कारण बन रहा है । जबकि आपदाओं से ग्रस्त लोग पहले ही वर्षों से विस्थापनो की प्रतीक्षा में हैं ।

अपनी जमीन अपने जंगल और अपने पानी पर जनता के बुनियादी अधिकार की जो मांग उत्तराखण्ड आंदोलन के बाद भी पूरी नहीं हुई वह लड़ाई यह आंदोलन इन बुनियादी सवालों के साथ हल करे इसलिए जरूरी है । हेलंग की घसियारी महिला की लड़ाई महज एक चरागाह बचाने की, महज एक कम्पनी के हाथों अपने हक अधिकार लुटने लूटे जाने की लड़ाई नहीं है इसकी बुनियाद में यही जल जंगल जमीन पर जनता के हक अधिकार के मूल सवाल हैं । इसलिए हेलंग की इस लड़ाई को इसकी मंजिल तक पहुंचना जरूरी है ।
पांच सूत्री तात्कालिक मांगों के साथ इस लड़ाई को पहाड़ के उत्तराखण्ड के जन जन तक ले जाए जाने की जरूरत है ।उत्तराखण्ड राज्य के भविष्य व अस्तित्व के लिए यह संघर्ष जरूरी है ।


आइये बेहतर उत्तराखण्ड के लिए..जनता के उत्तराखण्ड के लिए.. महिलाओं के सम्मान के लिए…पहाड़ के अस्तित्व व अस्मिता के लिए..इस संघर्ष को मजबूत करें । शहीदों के सपनो को मंजिल तक पहुंचाने के लिए इस लड़ाई को इसके मुकाम तक ले जाने के लिए एकजुट हों !