जब हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने मुख्यमंत्री रहते हुए उत्तर प्रदेश से राज्य सभा में नहीं आने दिया उद्योगपति बिरला को
RAJIV NAYAN BAHUGUNA
व्यापारी चाहे कितना भी बड़ा हो, उसकी हैसियत भारतीय लोकतंत्र में कभी नहीं रही, कि वह विदेशी राष्ट्रध्यक्ष गण को दिए गये भोज में दन्दनाये.
विपक्ष का नेता चाहे कितना भी अप्रिय क्यों न हो, वह हमेशा ऐसे अवसरों पर सादर आमंत्रित रहा है.
दुकानदार को अवश्य ऐसे अवसर पर आटा, चावल, गोश्त, तरकारी आदि की बेहतरीन व्यवस्था का निर्देश दिया जाता था.
याद पड़ता है, 1973 में कभी सेठ बिड़ला जी को राज्य सभा
पहुंचने की सूझी.
वह सत्तारूढ कांग्रेस के सबसे बड़े फाइनेंसर थे. एक तरह से कांग्रेसी ही थे.
प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने उन्हें निर्दलीय लड़ने की सलाह और सहयोग का वचन दिया. वह उनकी जीत चाहती भी थीं. लेकिन पार्टी टिकट देने की अनैतिकता नहीं दर्शायी.
उनका दूत बन कर उनका क्लर्क यशपाल कपूर लखनऊ आया और अटैची लेकर मुख्यमंत्री आवास में गाव तकिये पर पसर गया.
शाम को मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा घर आये, तो क्लर्क विधायकों को बारी बारी निर्देश दे रहा था.
बहुगुणा ने तत्काल उसे अपने सरकारी आवास से धकियाया, और धमकाया, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर से गैर कांग्रेसी उम्मीदवार वास्ते अभियान चलाने की.
फिर विधायकों को दो टूक कहा, जिसने भी क्रॉस वोटिंग की, उसे मैं दरवाज़ा दिखाऊंगा.
सेठ जी चुनाव हार गये.
( The views of Sr. Journalist Rajiv NAYAN BAHUGUNA are personal)