google.com, pub-9329603265420537, DIRECT, f08c47fec0942fa0
Uncategorized

जब झुकाया धूलिया ने 1937 में पंत सरकार को

उत्तराखंड के चर्चित स्वाधीनता सेनानी एवं पत्रकार , भैरव दत्त धूलिया की 123 वी जयंती पर पहाड़ का समाज उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता है। गढ़वाल में बेगार आंदोलन, वन आंदोलन , नमक सत्याग्रह से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक कुल ७ साल की सजा भुगतने वाले भैरव दत्त धूलिया गढ़वाल में ऐसे जननायक रहे हैं जिन्होंने अपने समकालीन नेताओ मुकंदी लाल , अनसूया प्रसाद बहुगुणा , गोविंद वल्लभ पंत , मथुरा प्रसाद नैथानी , मंगत राम खंतवाल और गोवर्धन बडोला के साथ मिलकर गांधी वादी आंदोलनों को धार देने का काम किया। इन लोगों ने पहली बार महात्मा गांधी को आइना दिखाते हुए उत्तराखंड में बेगार और वन आंदोलन को सफलतापूर्वक संचालित कर गढ़वाल के जनजागरण में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। यहां एक प्रसंग उल्लेखनीय है की कि जब 1937 में संयुक्त प्रांत में गोविंद वल्लभ पंत के नेतृत्व में पहली कांग्रेस सरकार का गठन हुआ था , तब उन्होंने गढ़वाल में दुगड्डा, पौड़ी मोटर सड़क के निर्माण में जहां 20000 रु की धनराशि स्वीकृत को थी , वहीं कुमाऊं के लिए एक लाख रु की धनराशि स्वीकृत को थी । सरकार के इस भेद भाव पूर्ण निर्णय के विरुद्ध भैरव दत्त धूलिया ने प्रताप सिंह नेगी , कुलानंद बर्थवाल , आदि नेताओं के साथ मिलकर पंडित जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखा था। साथ ही धमकी दी थी की यदि गढ़वाल में सड़क निर्माण के लिए उचित धनराशि का आवंटन नहीं किया जाता तो एक माह के भीतर गढ़वाल कांग्रेस के नेता अपने पदों से इस्तीफा देकर अलग हो जाएंगे। समय अवधि समाप्त होने पर जब उनकी यह मांग पूरी नहीं हुई तब गढ़वाल कांग्रेस से एक बड़े वर्ग ने कांग्रेस से अलग होकर जागृत गढ़वाल संघ की स्थापना की थी। अंत में जवाहरलाल नेहरू ने पंडित भैरव दत्त धूलिया को पत्र लिखकर स्वयं इस समस्या का हल करने के लिए मोर्चा संभाला। आखिरकार भैरव दत्त धूलिया की धमकी को गंभीरता को लेते हुए जवाहरलाल नेहरू ने गोबिंद वल्लभ पंत को लिखकर कुमाऊं के समान ही गढ़वाल को भी एक लाख रु की धनराशि स्वीकृत प्रदान की थी। इस बीच पौड़ी जिला बोर्ड के अध्यक्ष हरेंद्र सिंह रावत ने गुमखाल से सतपुली तक सड़क का निर्माण करवा लिया था। किंतु इस बीच दृतीय विश्व युद्ध होने के कारण 1938 को पंत सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। और एक बार फिर सड़क नही पहुंच पाई। अंतः 22 फरवरी 1944 को यू.पी. वाई.29 नंबर की गाड़ी पौड़ी पहुंची । इस तरह धूलिया ने सरकार से अपना लोहा मनवाया। कर्मभूमि पत्र का यह महान योद्धा 1988 को इस दुनिया से चला गया। भैरव दत्त धूलिया ने 1947 से 1950 में टेहरी रियासत के जन आंदोलन में गढ़वाल कांग्रेस और कर्मभूमि को जनता का मुख पत्र बना दिया। कर्मभूमि उत्तराखंड का एक मात्र ऐसा समाचार पत्र था जिसके कई संपादकीय लेखों की चर्चा पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा अपने भाषणों में की गई थी।

डॉ योगेश धस्माना

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button