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Uttrakhand

छावला हत्या और सामूहिक बलात्कार काण्ड में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर

प्रोफेसर हरेंद्र असवाल

उत्तराखंड की दिल्ली स्थित समाज सेवी संस्थाओं ने माननीय उच्चतम न्यायालय के छावला अपहरण , सामूहिक बलात्कार और नृशंस हत्या पर दिये गये फ़ैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की है ।किरण नेगी को न्याय मिले , महिलाओं को काम- काज के लिए आने- जाने की आज़ादी और उसकी सुरक्षा से जुड़ा यह बहुत ही संवेदनशील मामला है । हम समाज के सभी न्यायप्रिय लोगों से अपील करते हैं कि इस मामले को किसी एक किरण नेगी से जोड़कर देखने की बजाय , अपनी बहू – बेटियों , माताओं – बहिनों की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे के रूप में देंखें । माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने साक्ष्यों के अभाव की बात करते हुए दोषियों को बरी करने का जो फ़ैसला दिया हम उस पर पुनर्विचार की न्यायिक माँग कर रहे हैं । हम किसी को सजा देने के बात नहीं कर रहे , हम तो सिर्फ़ किरण नेगी के अपहरण, बलात्कार और हत्या के खिलाफ उसकी आत्मा की शांति के लिए न्याय की माँग कर रहे हैं । मैं दिल्ली उच्च न्यायालय बार कौंसिल के सचिव एडवोकेट आदरणीय संदीप दरमोड़ा जी और उनके सभी साथियों का एक सामान्य न्यायप्रिय नागरिक के तौर पर आभार व्यक्त करता हूँ ।
भाई सुनील नेगी , गढ़वाल हितैषिणी सभा ,और अन्य वे सभी संगठन जो भी इस पुनीत कार्य से जुड़े हुए हैं सबका अभिवादन करता हूँ । मैं ने पहले भी अपनी पीड़ा व्यक्त की थी , जब द्वारका कोर्ट में लोग आन्दोलित थे तब भी सहभागिता की थी लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले से बहुत आहत था , दिल्ली के माननीय राज्यपाल द्वारा दिल्ली पुलिस को किरण नेगी केश पर पुनर्विचार याचिका दायर करने के आदेश की भी मैं सराहना करना चाहता हूँ । यह केश जिन कमियों के कारण सर्वोच्च न्यायालय में जिस न्यायिक दुर्गति का शिकार हुआ ,पुलिस भी उस कमी को दूर करने का भरसक प्रयास करेगी और अपनी छवि को धूमिल होने से बचाएगी । साथ ही सरकारी वकीलों ने जो ढीला रवैया अपनाया उम्मीद करता हूँ वे अब इस तरह की लापरवाही नहीं अपनाएँगे और अपनी छवि को केन्द्र सरकार भी सुधारने का काम करेगी । यह लड़ाई किसी व्यक्ति की नहीं पूरी आज़ादी के आधे हिस्से की लड़ाई है । महिलाओं के सम्मान की लड़ाई है , उनके काम करने और स्वाभिमान से जुड़ी लड़ाई है ।यहाँ हार जीत का सवाल नहीं सदियों से दमित माँ बहनों के हक़ की लड़ाई है । इस केस का असर उत्तराखंड की अंकिता भंडारी और अन्य उन सभी लड़कियों ,स्त्रियों को सम्मान से जीने की आज़ादी से जुड़ा है । एक ग़लत फ़ैसला हमें सैकड़ों वर्ष पीछे ले जा सकता है । न्याय की उम्मीद का आकाँक्षी ।

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