चार धाम यात्रा, कई मौतें , बदइंतज़ामी , महंगा खाना , पुजारियों की शिकायतें , आखिर क्या है सच्चाइयां ?
उत्तराखंड में इन दिनों पंडों पुजारियों और चारधाम यात्रा के दौरान बदइंतज़ामी और महंगे खाने के बारे में बहुत ही विवादस्पद खबरें प्रकाशित हो रही हैं. और ये भी खबरें हैं की अभी तक ४६ पिलग्रिम्स ने अपनी बेशकीमती जान इस यात्रा के दौरान गवां दी. उत्तराखंड चार धाम यात्रा के दौरान हुई बदइंतज़ामी की कई तस्वीरें भी सोशल मीडिया में वायरल हुई हैं और साथ ही ४६ बेशकीमती जाने भी गयी हैं सिर्फ दो सप्ताह के भीतर. खबर ये भी चल रही हैं की चार धाम के पुजारी बगैर पैसा लिए नो तो केदारधाम में टिका लगते हैं न ही दर्शन करने देते हैं शिव लिंग के. इसके कई विडिओ भी सोशल मीडिया में जारी हुए हैं.सवाल ये है की इसमें उत्तराखंड की अस्मिता का सवाल कहाँ से पैदा हो गया. कई पत्रकार बुद्धिजीवी और सत्तारूढ़ दल के पैरोकार सरकार और भगवा नेताओं पुजारियों और होटल मालिकों के पक्ष में खड़े हो गए हैं , नए नए तर्क देते हुए . यानि वे चाहते हैं की खाने की थाली तीन सौ या ३५० रुपये में बिकती रहे मैगी ५० रुपये में बिकती रहे , मिनरल वाटर ३० रुपये बोतल बिकता रहे लोग अपनी जान गंवाते रहें , चाहे वे दिल के मरीज़ हों और ऊपर औक्सीजन कम मिलती हो , चाहे परांठा १६० रुपये का मिले. वाह क्या तर्क है ?
मैं उनसे पूछना चाहता हूँ क्या बदइंतजामि से निपटना सरकार का काम नहीं , क्या पिलग्रिम्स का चारधाम यात्रा के दौरान मरना दुखद नहीं है, क्या इन्हे रोकने के लिए उपयुक्त और भरपूर मेडिकल फेसिलिटीज के इंतज़ाम नहीं होने चाहिए , क्या भीड़ को नियंत्रित करने के इंतज़ाम नहीं होने चाहिए, क्या पिलग्रिम्स से प्रति खाने की थाली के लिए तीन सौ या ३५० रुपये लेना गैर कानूनी नहीं है, क्या पण्डे और पुजारियों की लूट को नहीं रोका जाना चाहिए, क्या भगवन के दर्शन करने आये यात्रियों के साथ ऐसा सौतेला बर्ताव होना चाहिए ? अगर ऐसा है तो सर्कार कहाँ है, साधन कहाँ है, जवाबदेही कहाँ है ?
क्या सोशल मीडिया में ये बेसिरपैर के तर्क इन खामियों को झुटला सकते हैं ?
सही बात तो ये है की प्रसाशन की खामी और अक्षमता को इन तर्कों से उत्तराखंड देवभूमि के नाम से हम नहीं झुठला सकते बल्कि हमें इन खामियों को दूर करना होगा, देश और दुनिया में एक अच्छा उदहारण देना होगा, ईमानदारी , पारदर्शिता रखनी होगी और बदइंतज़ामी को दूर करना होगा . धुआं वहीँ निकलता है जहाँ आग होती है .
ऐसा कैसे हो सकता है की दिल्ली से जब हम कोटद्वार आते हैं तो ढेरो शिकायतें मिलती हैं की रास्ते में ढाबे वाले बस ड्रिवेरों के साथ मिलकर पहाड़ के लोगों को लूटते हैं. और ये सही भी है यही नहीं बल्कि करनाल जाते वक्त भी ऐसा कई आर हुआ कई विडिओ वायरल हुई सोशल मीडिया में. क्या जब ये हम लोगों के साथ घटा हमने हल्ला नहीं मचाया. खूब मचाया. तो भाइयों जब यही बर्ताव उत्तराखंड के चार धामों में होगा तो हमे दुःख होने के या इसे नहीं दोहराने की बात करने के, हम भला गलत बात को कैसे प्रोत्साहित कर सकते हैं. ये सब सब सोच से परे है. क्या चार धाम यात्रा में उत्तराखंड भाई बहन नहीं होते हैं , क्या बहरी पिलग्रिम्स हमारे भौ बहन नहीं हैं ?
सभी भली भाँती जानते हैं की ज्यादातर धार्मिक स्थानों में किस प्रकार दर्शर्नार्थियीं के साथ न इंसाफ़ी होती है व्यापक पैमाने पर , प्रसाद की थाली के नाम पर 350 रुपये लेकर, चोर दरवाज़े से दर्शन कराने के नाम पर, होटलों के दाम बढाकर , खाने के नाम पर लूटमारी कर वर्षों से भक्तों को लुटा जा रहा है . यही यही बल्कि मेरी तो तीन तोले की सोने की चेन एक प्रसिद्ध मंदिर में सरे आम चोरी हुई लेकिन आज तक नहीं मिली. है किसी के पास इसका जवाब? न मंदिर प्रसाशन कुछ पाया और न ही पुलिस. है कोई जवाब ?
नोट : मुझे ये कहते हुए कोई शक और परहेज नहीं है की उत्तराखंड की पुलिस द्वारा बुजुर्ग पिलग्रिम्स की मदद करने के कई मदद उदहारण भी सामने आये हैं जिनकी चारों ओर भूरी हरि प्रसंशा हो रही है . ऐसे कर्मठ पुलिस कर्मियों को हमारा प्रणाम और शुक्रिया . हमें कभी भी किसी समस्या को राजनैतिक नजर से नहीं देखना चाहिए बल्कि क्या यही है और क्या गलत उसपर मनन करना होगा.
हमें कभी भी किसी समस्या को राजनैतिक नजर से नहीं देखना चाहिए बल्कि क्या यही है और क्या गलत उसपर मनन करना होगा.
जय हो बाबा केदार की जय बद्री विशालजी की, जय गंगा मैय्या , जय भारत जय उत्तराखंड
ये लूट प्रथा अमानवीय है। सरकार का पर्यटन प्रबंधन कहीं नहीं दिखाई देता। क्या हमेशा चुनाव की त्यैयारी में रहना है??? बड़े बड़े भारी भरकम नेता जो वर्षों के अनुभव का दावा करत हैं काया कर रहे हैं धरातल पर? तीर्थाटन व पर्यटन पर आये श्रद्धालुओं के लिए सजा है या विपरीत विपणन का प्रमाण?????