गढ़वाल हितैषिणी सभा का शताब्दी समारोह 2023
प्रो . हरेंद्र सिंह असवाल
गढ़वाल हितैषिणी सभा ने दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में 23 अप्रैल 2023 को भव्य शताब्दी समारोह का सफल आयोजन किया । सभा के अध्यक्ष श्री अजय सिंह बिष्ट की पूरी कार्यकारिणी ने मिलकर एक महीने पहले से गढ़वाल भवन पंचकुइयां रोड नई दिल्ली में शताब्दी समारोहों की श्रृंखला की शुरुआत 25 अक्टूबर 2023 से ही कर दी थी ।एक महीने चले इन उत्सवों में उत्तराखंड के प्रवासियों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया ।
गढ़वाल हितैषिणी सभा की स्थापना सौ साल पहले गढ़वाल के प्रवासियों ने शिमला , दिल्ली, लाहौर , क्वेटा आदि स्थानों से शुरू की थी । यह आज़ादी से पहले अखंड भारत की ऐसी संस्था थी जो आजीविका के लिए देश के विभिन्न क्षेत्रों में गये । अपनी संस्कृति और प्रकृति के अनुरूप हमारे इन पूर्वजों ने सीमित साधनों के होते हुए भी अपनी पहचान को क़ायम रखा । जब देश गुलाम था ,आज़ादी का आन्दोलन चल रहा था , सभा समितियाँ अंग्रेज सरकार शक की नज़र से देखती थी ,उस समय अपनी संस्था को चलाना , बड़ी बात थी । संस्था ने सामाजिक ज़िम्मेदारी तो निभाई ही , साथ ही राजनीतिक और आज़ादी के आन्दोलन में भी भाग लिया । लाहौर में जी ए वी कालेज में पढ़ने वाले स्वर्गीय भजन सिंह सिंह के बारे में राहुल सांस्कृत्यायन ने वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की जीवनी में लिखा है कि जब लाहौर में प्रजा भातृ मंडल बना तो क्रान्तिकारियों से इस संस्था के युवा जुड़ गये ।जिनमें भजन सिंह भी थे । , पेशावर कांड के नायक चंद्र सिंह गढ़वाली का इनसे सीधा संबंध था । इनसे सारी राजनीतिक गतिविधियों से वे अवगत थे । पेशावर कांड के बाद संस्था के युवक वहाँ से ग़ायब हो गये और बाद में भजन सिंह गाँव आकर फिर फ़ौज में भर्ती हो गये । इस तरह के अनेक उदाहरण हैं । गढ़वाल हितैषियों सभा आज अपने सौ साल के शताब्दी समारोहों के माध्यम से अपने उन पूर्वजों का स्मरण कर रही है । देश की आज़ादी के बाद संस्था निरन्तर प्रवासियों की चिंता करती रही ।
उत्तराखंड पर्वतीय राज्य की माँग इस संस्था की एक और पहचान रही । अपने सीमित साधनों के चलते भी संस्था का भवन निरन्तर उत्तराखंड राज्य की माँग को लेकर संघर्ष करता रहा । अपनी पहाड़ी पहचान के साथ वैचारिक विमर्श और राज्य आन्दोलन की दिशा तय करने में भी इस संस्था का अभूतपूर्व योगदान रहा । आज भी संस्था से जुड़े लोग उत्तराखंड की राजनीति और विकास को लेकर चिंता और सुधार के लिए निरन्तर प्रयास रत रहते हैं । उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भी दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों के लोग समय समय पर गढ़वाल भवन में अपने लिए समर्थन जनमत बनाने का प्रयास करने के लिए संस्था से जुड़कर गौरव का अनुभव करते हैं। सामाजिक संस्थाएँ किसी भी समाज की आन्तरिक ऊर्जा और निरन्तरता को एक विरासत के रूप में नयी पीढ़ी तक पहुँचाने का ऐतिहासिक काम करती हैं । गढ़वाल हितैषियों संस्था इसी तरह से ख़ास कप उन बच्चों के बीच सेतु का काम आज भी कर रही है जो अब उत्तराखंड से बड़े बड़े महानगरों में आजीविका के लिए आ रहे हैं उनमें और जो इन महानगरों में ही पैदा हुए , जिन्हें उत्तराखंड की सामाजिक स्थितियों का बहुत ज्ञान नहीं है , जब वे इस संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेते हैं तो नये और पुराने प्रवासियों के संगम स्थल का काम करती हैं ।
गढ़वाल हितैषिणी संस्था ने इस शताब्दी समारोह के अवसर पर “ विरासत “ के रूप में एक पत्रिका का भी प्रकाशित की है । जिसे शताब्दी समारोह की सोविनियर के रूप में रखा गया है । इस पत्रिका में संस्था की गतिविधियों से लेकर उत्तराखंड की पुरानी और नयी चिंताएँ किस रूप में बढ़ रही हैं और भविष्य में उनका क्या समाधान हो सकता है इन विषयों पर भी कुछ प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है । आज चक बंदी क़ानूनों की माँग , उत्तराखंड में पर्यटन और विकास किस तरह का हो ? तीर्थाटन और पर्यटन को कैसे अलग किया जाये ? विकास क्या मेघा टाउन से ही होगा या किसी और तरह से ? पर्वतीय राज्य की अवधारणा से हम कैसे अलग हो गये ? चुनाव का प्रतिनिधित्व क्षेत्रफल की जगह आज़ादी से होगा तो उसके ख़तरे क्या हैं ?
हिमालय के पर्यावरण को कैसे बचाया जाए? नदियों पर बड़े बांध बनाने से क्या ख़तरे हैं ? क्या प्रकृति सिर्फ़ दोहन के लिए है ? क्या हिमालय जो पूरे उत्तर भारत की लाइफ़ लाइन है हमें उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए ?
क्या उत्तराखंड की संस्कृति सिर्फ़ नाच गाना ही है ? हिमालय बचेगा तो उत्तराखंड बचेगा , यह बात हम जितना जल्दी समझ लें उतना ही अच्छा है । चौड़ी चौड़ी सड़कें , मेघा मन्दिर टाउनशिप , विशाल बांध , अनियंत्रित पर्यटन बढ़ता पलायन , धनपतियों द्वारा नदी के तटबंधों को ख़रीद कर बन रहे रिजार्ट ,जंगलों का लगातार कटान , सुविधाओं की तलाश में संस्कृति का विनाश , ये भविष्य की चिंताएँ हैं लेकिन इन पर काम जितना जल्दी से होगा उतना ही देश ,संस्कृति और उत्तराखंड सुरक्षित होगा । आओ एक बार इन पर पुनः विचार कर सार्थक विकास की ओर अग्रसर हों । धन्यवाद ।
प्रोफ़ेसर हरेन्द्र सिंह असवाल