खीर गंगा को लेकर तो आशंका धऱाली के लोगो ने 2013 में ही जता दी थी….

VED VILAS UNIYAL ( SR. Journalist, AUTHOR)
2013 में जब केदारनाथ में महाआपदा आई थी तो बद्री केदार के अलावा गंगोत्री क्षेत्र में भी गया था। उस समय यह सुंदर सा इलाका भी उजाड़ बना था। धराली के लोगों ने खीर गंगा की ओर इशारा करके कहा था एक दिन यह नदी हमारे लिए बड़ी दिक्कत का कारण बन सकती है। तब उन्होंने कहा था कि इसके बहाव के ऊपरी क्षेत्र में जमीन तेजी से रिस रही है। इस तरफ सरकार को ध्यान देना चाहिए। यह नदी एक दिन खतरा बन सकती है।
तब धराली के लोगों ने इस इलाके का इतिहास भी बताया था। और कहा था आपको मालूम यहां एक समय इसी नदी की बाढ में अस्सी से ज्यादा मंदिर डूबे थे। कुछ मंदिर आज भी नजर आते हैं। धराली के भगवान सिंह पंवार और उनके साथियों ने कुछ मंदिरों के ध्वंस दिखाए थे। तब भी खीर गंगा में कई जगहों पर 10 फीट तक मलबा जमा था।
गंगोत्री जाते हुए मैंने यह इलाके पहले भी देखे थे । बहुत शांत मनोरम सुंदर इलाका पक्षियो की कलरव। लेकिन उस दिन की उदासी अजीब थी। लोग बहुत सहमते हुए बात कर रहे थे। केदारनाथ की घटना का ही जिक्र हर जगह हो रहा था। इन इलाकों की बात तब नहीं हो रही थी। लेकिन हालात ये थे कि ये इलाके भी तहत नहस हो रखे थे।
बद्री केदार और गंगोत्री क्षेत्र में 40 दिन रहने के बाद मैंने वापस आकर केदारनाथ आपदा को लेकर देखी पीर पहाड की किताब लिखी थी। जिसका सुनील नेगीजी ने अंग्रेजी में हेवोक इन हेवन्स नाम से अऩुवाद किया था। उसमें केदारनाथ सहित इन क्षेत्र के हालातों का जिक्र किया था।
वास्तव में यही सवाल मन में उठे – आखिर पहाडों की असल समस्याएं क्या है। वहां का जनजीवन किस तरह दिक्कतों में है। किन बातों को हम नजरअंदाज करते जा रहे हैं। लोग क्या कह रहे हैं। हर जगह स्थानीय लोग अपने स्तर पर
पर खुद क्या गलत कर रहे हैं। बादल फटने जैसी आपदा कह कर नहीं आती। लेकिन नदियों और उनके बहाव क्षेत्रों का ध्यान तो रखना ही होगा। रह रह कर पहाडों में भूस्खलन हो रहा है।
मैं अपने जीवन में रिपोर्टिग करते हुए कभी रोया नहीं था। लेकिन केदारनाथ के इलाके में उस दिन जब एक पिता अपने बेटे की मौत पर बिखलते देखा मे भी रोने लगा था। केवल एक महीने बाद उस घर में उसकी बहन की शादी थी। गंगोत्री आते हुए दो छोटे बच्चों को पानी में खेलते देखा था जिनके पिता की केदारनाथ में पानी में डूबने से मौत हो गई थी। वो टैक्सी चालक थे। बच्चे दिल्ली में पढते थे। उन्हें यह कहकर गांव लाया जा रहा था कि दादीजी में मिलाने ले जा रहे हैं। उनकी मां केवल इतना जानती थी कि पति को चोट आई हैं। सोचिए घर में पहुंच कर इनके मन में क्या गुजरी होगी।
कोई भी सरकार हो लेकिन अगर किसी क्षेत्र के लोग कोई बात कहते हैं तो उस पर गौर जरूर करना चाहिए। उनके कुछ पुराने अऩुभव होते हैं। कुछ बातें उन्हें पता होती है । उनकी कुछ आशंकाएं होती है। उनके कुछ सुझाव होते है। हर चीज नौकरशाह नहीं जान सकती। कोई भी सरकार हो ग्रामीणों क्षेत्र के लोगों के पास सरकारों को आना ही होगा। पहाड़ों को बचाने के लिए अब इतना जरूर है कि आपदा प्रबंधन को और बड़े स्तर पर तैयार करना होगा। वो तो एनडीआरएफ एसडीआऱ एफ हमेशा देंवदूत बनकर आ जाते हैं। लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर हमें सिस्टम को समर्थ करना होगा। और बसावट भी एक बडा सवाल है। लोगों को भी सोचना होगा।
Journalist Sunil Negi ke mutabik
वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास उनियाल आपदाग्रस्त उत्तराखंड के केदारनाथ, उत्तरकाशी और देहरादून सहित प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं और इस मानव निर्मित आपदा के कारणों को गहराई से समझा है। उन्होंने इस खतरनाक पर्यावरणीय आपदा के हर पहलू को बारीकी से समझा और आपदा के बाद हुए नुकसान के प्रत्यक्षदर्शी भी रहे। उन्होंने एक शानदार किताब लिखी है जो मेरे विचार से एक समेकित और अत्यंत ज्ञानवर्धक किताब है। मैं उन्हें तहे दिल से बधाई देता हूँ।