क्या १६ जून २०१३ की भयंकर उत्तराखंड आपदा से हमने कोई सबक लिया ? सुनील नेगी
आज ही के दिन १६ जून २०१३ को केदारनाथ धाम में चोराबारी झील के फटने के बाद प्रलंकारी बाढ़ आयी जिसने,गढ़वाल उत्तराखंड के सैकड़ों गावों को न सिर्फ तबाह कर दिया बल्कि केदारनाथ धाम में बाबा केदार के दर्शनार्थ आये हज़ारो श्रद्धालुओं को मौत के घाट भी उतार दिया जिसमे असहाय बच्चे , वृद्ध , महिलाएं, पुरुष इस भयंकर बाढ़ की भेंट चढ़ गए. रामबाड़ा में सैकड़ों की तादाद में दूकानदार , होटल मालिक और कर्मी , खच्चर और केदारनाथ मंदिर से दर्शन कर नीचे लौट रहे या चाय की दुकानों और होटलों में ठहरे सैकड़ों श्रद्धालु और पर्यटक इस नियन्त्रिक बाढ़ में या तो बह गए या सैकड़ों टन मिटटी , गंदगी और बहते पत्थरों के मलबे में दब गए. रामबाड़ा में केदारधाम से नीचे की तरफ आयी भयंकर बाढ़ ने केदारनाथ धाम , राम बाड़ा और श्रीनगर गढ़वाल तक वह तबाही मचाई जो उत्तराखंड के इतिहास में पहले कभी नहीं देखी गयी हालांकि गढ़वाल और कुमाऊँ में पूर्व में भी कई रौद्ररूप लिए प्राकृतिक पर्यावरणीय आपदाएं आयीं जिनमे बेतहाशा जान माल की क्षति हुई . इस आपदा में सैकड़ों गांव तबाह हुए , सरकारी आकड़ों के मुताबिक पांच हज़ार से अधिक लोगों ने जान गवाँई जबकि असल में ये आंकड़ा हज़ारों का रहा, ऐसा लोगों का कहना है. केदारनाथ धाम से लेकर श्रीनगर गढ़वाल तक सैकड़ों बिल्डिगें , चार मंजिल इमारतें , होटल्स, कार्यालय , विद्यालय बिल्डिंगें , आयी टी आयी , लोगों के रिहाइशी पक्के घर और भरी संख्या में गाड़ियां बसें , ट्रैक टेम्पो और दुपैया भी इस बाढ़ में बह गए . उत्तराखंड सरकार और आम जनता को हज़ारों करोड़ों का नुक्सान हुआ. सैकड़ों महिलाये विधवा हो गयीं , हज़ारों बच्चे ऑर्फ़न हो गए और उनका भविया अंधकारमय हो गया. १६ जून २०१३ को आयी इस प्राकृतिक आपदा में ऐतिहासिक १२०० वर्ष पुराना केदारनाथ मंदिर सिर्फ इसलिए बच गया क्योंकि ईश्वरीय कृपा के चलते एक हज़ारों टन वज़न का बड़ा बोल्डर इस भयकर बाढ़ के साथ ठीक मंदिर के पीछे आ आया जिसके चलते इस भयकर बाढ़ के फ्लो को इस भारी भरकम पत्थर से टकराकर दो दिशाएं ले ली और उसका ( बाढ़ का) प्रेशर कम हो गया जिसके चलते न सिर्फ १२०० बर्ष पुराना केदारनाथ धाम सुरक्षित हो गया बल्कि मंदिर के अंदर शरण लेने वाले सैकड़ों लोग साधू संत और पुजारी भी बच गए . ये अपने आप में एक हैरतअंगेज़ करिश्मा था , जिसने अंततः ये साबित कर दिया की ईश्वरीय शक्ति अवश्य विद्यमान है खासकर उन श्रद्धालुओं के लिए जो इस आपदा में मंदिर के अंदर शरण लेने से इस भारी भरकम पत्थर की वजह से बच गए .
हालांकि बाढ़ से पहले ही केदारनाथ धाम में बेतहाशा हानि हो चुकी थी क्योंकि जिस दिन ये प्रयलंकारी बाढ़ आयी , केदारनाथ धाम में सैकड़ों, नहीं हज़ारों की तादाद में श्रद्धालु और उनके परिवार के लोग उपस्थित थे जो धर्मशालाओं में टेंट्स में , होटलों में शरण लिए हुए थे और कई रामबाड़ा के रास्ते नीचे उतर रहे थे , ये भयंकर बाढ़ दो दिन तक चलती रही और तबाही का आलम जारी रहा . दरअसल इस दुर्भाग्यजनक प्राकृतिक आपदा की मुख्य वजह थी , केदारनाथ के ऊपर वाले हिस्से में भयंकर बादलों का फटना . इन दिनों पुरे गढ़वाल और उत्तराखंड में पिछले दो दिनों से लगातार बारिश आ रही थी , ये बरसात बहुत ही भयंकर थी जो रुकने का नाम यही ले रही थी , उत्तराखंड की नदियों में पहले ही बेतहाशा बारिश के चलते उनका लेवल बढ़ गया था , नदियां पुरे उफान पर थी . इसी बीच भयंकर बादल फटने के बाद बेतहाशा पानी चोराबारी लेक ( गांधी सरोवर ) में गिरा जिसने इस तालाब को ध्वस्त कर दिया और भारी मात्रा में बाढ़ का पानी हज़ारों लाखों टन मलबा सिल्ट, पत्थर , रेत आदि लेकर नीचे की तरफ तबाही मचाते हुए आया . इस रौद्ररूप लिए भयंकर बाढ़ ने जहाँ एक ओर हज़ारों लोगों को अपनी जद में ले लिया वहीँ दूसरी तरफ नदियों के समीप बसे गॉंव , बाजार , रिहाइशी मकान कमर्शियल बिल्डिंग ताश के पत्तों की तरह बिखर गए. इस प्रयलंकार बाढ़ से हुई अनियंत्रित तबाही और जान माल के नुक्सान के चलते उत्तराखंड की सरकार इस कदर भयभीत और असहाय हो चुकी थी की अंततः इंडियन आर्मी , पैरामिलिटरी फोर्सेज , डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटीज आदि को जनता की मादद के लिए आना पड़ा. हम सलाम करते हैं आर्मी और एयरफोर्स के जवानों , अधिकारियों और पायलटों को जिन्होंने अपनी जान को जोखिम में डालकर सैकड़ों , हज़ारों लोगों की जाने बचें और उन्हें अलग अलग माध्यमों से सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया .
इस अभियान में कई पायलटों, आर्मी और एयर फाॅर्स के जवानों ने अपनी जान भी गवायीं . उन्हें हमारा सलाम . सरकार के मुख्यमंत्री , मंत्री नेता हेलि काप्टर्स से सैर सपाटा करते हुए भी नज़र आये , वे अपनी पब्लिसिटी के लिए अपने साथ हेलिकॉप्टर्स में इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़ चेन्नल्स के पत्रकारों और केमरामेन को साथ ले जाना नहीं भूलते थे . मुझे याद है उस समय के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और बाद में हरीश रावत ने बड़ी बड़ी घोषणाएं की थी . २५० गॉवों को पुनर्स्थापित और व्यवस्थितः करने की बात की थी . लेकिन आज तक इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ. केंद्र सरकार , वर्ल्ड बैंक और पब्लिक सेक्टर्स से भी हज़ारों करोड़ रुपयों की मदद मिली , हज़ारो की संख्या में गैर सरकारी संस्थाओं , पहाड़ी संस्थाओं ने भी काफी कपडे , भोजन , और धन की मदद की .
लेकिन सरकारी अधिकारीयों द्वारा किये गए करोड़ों के घपले भी प्रकाश में आये , उनका क्या हुआ कोई पता नहीं .
ऐसा नहीं है की इस प्रलयंकारी बाढ़ में हुई तबाही के चलते उत्तराखंड के लोग ही हताहत हुए हों , इसमें देश के कोने कोने से आये श्रद्धालु और पर्यटक भी मारे गए जिन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा की बाबा केदार के दर्शनार्थ जा रहे इन श्रद्धालुओं का मौत इंतज़ार कर रही है . मुझे भली भांति याद है कैसे दिल्ली सरकार में कार्यरत एक अधिकारी जो मूलतः पहाड़ से ही थे , अपने सास ससुर जो जापान से आये थे , को लेकर अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ पहले श्रीनगर के पास अपने गाँव गए और बाद में केदारनाथ धाम, लेकिन १३ जून के दिन काल ने उन्हें अपने अंदर समां लिया. इस प्रलंकारी बाढ़ में पूरा परिवार जिसमे सात लोग थे मारे गए . कितनी बड़ी ट्रेजेडी , उनका रमा कृष्णा पुरम का घर बंद का बंद रह गया , ऐसे सैकड़ों अन्य उदहारण थे , जिनमे से एक था की अपने बेटियों के साथ यात्रा पर आये पिता को अअपने आँखों के सामने अपनी अधमरी बेटी को हेलीकाप्टर में अन्य स्वस्थ बेटी के साथ इसलिए जाना पड़ा क्योंकि उनके बचने की उम्मीद न के बराबर थी और ख़राब मौसम के चलते हेलीकॉप्टर को तुरंत उड़ान भरनी थी अन्य विक्टिम्स को बचने के लिए. भली
ईश्वर दिवंगत आत्माओं को शांति दें यही हमारी उनके प्रति श्रद्धांजलि है. लेकिन इतनी भयंकर आपदा के बाद भी शायद हम सबक नहीं ले रहे हैं. तथाकथित विकास के नाम पर आज भी ज्यादा तेज गति से पहाड़ों के भीतर उन्हें खोखला बनाकर हज़ारों किलोमीटर लम्बी टनल्स बनायीं जा रही है , आल वेधर रोड्स के नाम पर लाखों पेड़ कट रहे हैं , हज़ारो टन मिटटी मलबा नदियों में बहाया जा रहा है , उन्हें मैला और संकुचित बनाकर उनका बहाव प्रभावित किया जा रहा है , नदियों के समीप बेतहाशा गति से निर्माण गतिविधियां जारी है , हज़ारो की तादाद में पर्यटकों की गाड़ियां पहाड़ों को रौंदकर और हज़ारो टन प्लास्टिक छोड़ कर बेतहाशा पोल्लुशण फैला रहे हैं और सरकारें चुप हैं. इन्हे ईश्वर सद्बुद्धि दें, यही प्रार्थना है.