क्या वरिष्ठ कांग्रेसी नेता प्रीतम सिंह वाकई आहत हैं ? क्या उनके भाजपा में जाने की अटकलें मात्र अफवाहे हैं ?
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उत्तराखंड राजनैतिक गलियारों में इन दिनों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रीतम सिंह के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की अफवाएं गर्म हैं. यूँ तो राजनीती में अटकलों और कयास का बाजार अक्सर गर्म रहता है, लेकिन जिस तरह कांग्रेस से भाजपा और फिर भाजपा से कांग्रेस में आने का घर वापसी का दौर पिछले दिनों देकने को मिला उनसे इस तरह की अफवाएं आये दिन जोर पकड़ती रहती हैं. खैर , कभी कभी अटकलें सच bhi साबित हो जाती हैं, खासकर तब जब नेताओं की तरफ से इस प्रकार की खबरों का खंडन नहीं आता.
बहरहाल, कांग्रेस की उत्तराखंड में जबरदस्त पराजय के बाद जis तरह से कांग्रेस के वरिस्ट नेता जिनकी प्रदेश में पारदर्शी छवि है और जो निरंतर अपने विधान सभा क्षेत्र से 6 मर्तबा चुनाव जीतते रहे सभी एडवर्स पोलिटिकल वेव्स के बावजूद , यहाँ तक की भाजपा के ध्रुवीकरण को धता दिखaते हुए, को जिस बेरुखी से कांग्रेसी नेतृत्व ने शनै शनै किनारे किया पहले प्रदेश अध्यक्ष पद से, फिर लीडर आफ अपोजिशन पद से और बाद में उनपर पार्टी से दग़ाबाज़ी का आरोप लगाकर, इन घटनाक्रमों से तो ये स्पष्ट प्रतीत होता है की सम्भवता इन अफवाहों में कुछ दम्भ अवश्य है.
ये तो सभी जानते हैं कि प्रीतम सिंह का कार्यकाल बतौर उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष काफी प्रभावशाली रहा. उनके कार्यकाल में उत्तराखंड कांग्रेस ने काफी तादाद में जलसे, धरने और सार्वजानिक सभाएं की और पार्टी को प्रदेश में काफी सशक्त बनाया.
यही यही बल्कि वे जन्मजाति कर्मठ कांग्रेसी हैं और उन्होंने बुरे से बुरे समय में पार्टी का साथ दिया, कभी बिदके नहीं तब भी नहीं, जब ९ से ११ विधायक हरीश रावत को अधर में छोड़कर भाजपा की झोली में बैठ गए थे.
उन्होंने पार्टी में इनजस्टिस भी झेला जब उन्हें पहले अध्यक्ष पद से निकला और फिर विरोधी दल नेता पद से. हद तो तब हो गयी जब उनपर पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगाया गया.
यही वजह थी की अंदर से टूट चुके प्रीतम सिंह ने अपने विधान सभा क्षेत्र चकराता तक से त्यागपत्र देने की धमकी दे डाली. यhi नहीं बल्कि उनके बजाय यशपाल आर्य को नेता विपक्षी दल बना डाला जो हरीश रावत की कांग्रेस सर्कार को aधर में छोड़कर भाजपा में चले गए २०१७ में और पॉंच साल मंत्री पद का स्वाद चखने के बाद ऐन चुनाव के वक़्त फिर कांग्रेस में आ गए.
यानी अवसरवाद को कांग्रेस ने पुरुस्कृत किया और कर्मठ नेता जो हमेशा बुरे अच्छे दिनों में कांग्रेस के साथ रहे उन्हें अंगूठा दिखा दिया.
नतीजतन आहत प्रीतम सिंह मुख्यमंत्री को मिले. उनकी इस मीटिंग के कई मायने निकाले जाने लगे. मीडिया में खबरें चलीं की वे भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं ?
लेकिन प्रीतम सिंह की तरफ से अभी तक इस दिशा में कोई खंडन नहीं आया. जिस दिन करन महारा के स्वागत में देहरादून में मीटिंग आहूत की गयी उसमे भी पार्टी के कई विधायक सम्भवता ११ और प्रीतम सिंह नदारत थे.
साफ़ जाहिर है की वे आहत हैं.
खैर अब इन अटकलों के चलते कई सवाल हवा में तैर रहे है. पहाड़ का पत्थर यू ट्यूब न्यूज़ चैनल के मुताबिक सम्भवता प्रीतम सिंह चम्पावत चुनाव के दौरान भाजपा ज्वाइन कर सकते है ? या फिर वे रणनीति के तहत पार्टी नेतृत्व में दबाव बना रहे हैं की २०२४ में उन्हें पार्टी सांसद का टिकट दे और उनके बेटे को संगठन में एडजस्ट करें ? खैर राजनीती आगे क्या मोड़ लेती है कुछ कहा नहीं जा सकता.
राजनैतिक समीक्षकों का कहना है की जब किशोर उपाध्याय और महिला कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती आर्य भाजपा में जाकर विधायक बन सकते हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और आर पी न सिंह भाजपा में जा सकते हैं तो प्रीतम सिंह क्यों नहीं ? हालांकि ये तमाम खबरें मात्र अफवाएं ही नज़र आ रही हैं.