क्या उत्तराखंड कांग्रेस में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है ?
क्या उत्तराखंड कांग्रेस में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है ? क्या पार्टी, राज्य की करारी हार के बाद राज्य में नेताओं के आपसी कलह से ऊपर उठकर पुनः एकजुटता के मार्ग को प्रशस्त करने की दिशा में प्रयासरत है ? क्या सभी वरिष्ठ नेता संगठन को पारदर्शिता के साथ सुदृढ़ बनाने की दिशा में प्रयत्नशील दिखाई दे रहे हैं पिछले कड़वे अनुभवों से सीख लेकर ? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके जवाब तलाशने आबश्यम्भावी हैं.
रविवार को देहरादून में हुई कांग्रेस की बैठक और प्रेस मीट को देखकर फिलहाल ऐसा कुछ प्रतीत नहीं होता जिसके चलते ये कहा जाय की प्रदेश में कांग्रेस के भीतर चल रही गुटबाज़ी पर पूर्णविराम लगने जा रहा है .
इस बैठक में यूँ तो कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं की भीड़ और उत्साह देखने लायक था क्योंकि गुलदस्ते देने वाले नेताओं की कोई कमी नहीं थी. उनका उत्साह इस कदर कार्यक्रम पर हावी था की पार्टी नेता और महामंत्री विजय सारस्वत को मंच पर स्वागत करने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं से हाथापाई करते और उन्हें गुस्से में गिड़गिड़ाते देखा गया.
मंच पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जरूर थे लेकिन वे काफी निराश और बुझे बुझे नज़र आये. उन्हें गुलदस्ता देने वालों की भीड़ में शायद ही कोई था. सारे पुष्पगुच्छ देवेंद्र यादव और नए प्रदेश अध्यक्ष करन महरा को ही मिल रहे थे. और फोटो सेशन भी रावत के साथ न होकर यादव और करन महरा के साथ हो रहा था.
पूर्व नेता परिपेक्ष प्रीतम सिंह भी बैठक से नदारत थे जो नए अध्यक्ष के स्वागत के लिए बुलाई गयी थी हालांकि कांग्रेस पूर्व अध्यक्ष मंच पर अवश्य थे. ये भी खबर है की उनके( Pritam Singh) धड़े के नेता और कार्यकर्ता भी इस समारोह से अलग थलग रहे.
ऐसा लग रहा था की मानो पुराने नेताओं की कोई पूछ नहीं हो रही है. कल तक जो कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता हरीश रावत और गणेश गोदियाल के पीछे खड़े रहते the और उनके साथ सेल्फी लेने को आतुर रहते थे वो सारो भीड़ आज उन्हें पूछ तक नहीं रही थी.
मंच के पीछे लगे विशाल बैनर से भी वरिष्ठ पार्टी नेता हरीश रावत गायब थे और गणेश गोदियाल भी नहीं दिखाई दे raहे थे. इसके मायने बिलकुल साफ़ हैं की अब कांग्रेस इन्हे इसी प्रकार से तवज़्ज़ो देने के मूड में नहीं है. ये वास्तव में हैरतअंगेज़ बात है.
और इसका स्पष्ट प्रणाम तब मिल गया जब पूर्व अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने गुस्से भरे बागी अंदाज में मौजूदा अध्यक्ष और कांग्रेस हाई कमान पर खुले आम ताने कस्ते हुआ कह डाला की वे बेहद आहात और दुखी हैं की उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद से बेरुखी से निकाल डाला गया जबकि सत्य ये है की उन्होंने स्वयं ही पार्टी की पराजय के बाद मोरल ग्राउंड्स पर त्यागपत्र देने की घोषणा कर दी थी. पद खोने से बेहद कुंठित गणेश गोदियाल ने कहा की उन्होंने पार्टी को जिताने में कोई कसर नहीं छोड़ी, दिन रात काम किया लेकिन मीडिया में घोषणा कर दी गयी की उन्हें निकाला गया पद से. इससे मैं बेहद कुंठित हूँ क्योंकि पार्टी के दृष्टिकोण से हम तो इस जवानी में कंडम हो गए. लेकिन ऐसा कतई नहीं है. मुझमे आज भी इतना दमख़म है की जहाँ हम खड़े होने वही से लाइन शुरू होगी.
नाराज़ पूर्व अध्यक्ष गोदियाल ने ये भी कहा की बतौर अध्यक्ष उनपर एक ग्रुप या धड़े विशेष के साथ होने का आरोप लगाया गया जबकि सचाई ये है की वो सभी के साथ रहे और उन्होंने किसी धड़े का साथ nahi दिया.
उनके विरुद्ध ये सुनियोजित षड़यंत्र था उन्हें बदनाम करने हेतु. गोदियाल के इस आक्रामक सम्बोधन से यह स्पष्ट हो चला है की वे पार्टी में सहयोग करने के मूड में नहीं हैं और बेहद आहात हैं.
प्रीतम सिंह ने पहले ही मीडिया में धमकी दे डाली थी की यदि उनपर पार्टी विरोधी गतिविधियों का एक भी चार्ज साबित होता है तो वे अपनी असेंबली सीट से त्यागपत्र दे देंगे.
चकराता से निरंतर आठ मर्तबा जीत चुके पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष उत्तराखंड एवं नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह भी पार्टी के वरिष्ठ तम नेता और विधायक होने के बाद उनसे विरोधी नेता पद से च्युत कर देना उनके लिए घोर अपमान की बात है जो उन्हें आज तक हजम नहीं हो रही.
उनकी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं जिनकर प्रीतम सिंह ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी बावजूद इसके की उनकी इस मीटिंग को उनके भाजपा ज्वाइन करने की अटकलों से जोड़ा जा रहा है.
यही नहीं बल्कि इस सभा में कांग्रेस के कई नाराज़ विधायक भी नदारद थे. उधर धारचूला के बेहद नाराज़ विधायक हरीश धामी तो पहले ही अपनी सीट पुष्कर सिंह धामी के लिए खाली करने को तैयार हैं.
उन्होंने ये भी घोषणा की है की २०२७ में भी वो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव nahi लड़ेंगे क्योंकि उनके साथ हमेशा कांग्रेस में बेइंसाफी हुई है और उनकी जगह अवसरवादी नेता यशपाल आर्य को नेता विपक्षी दाल बना दिया गया जबकि वे निरंतर तीन मर्तबा धारचूला से विधायक के रूप में चुनाव जीत चुके हैं .
गौर तालाब है की इस समय लगभग दस विधायक कांग्रेस से बेहद नाराज़ बताये जा रहे हैं जो कभी भी भाजपा का दामन थम सकते हैं. इनकी भी नाराज़गी वही है जो कांग्रेस विधायक धामी की है. हालांकि ये सभी अटकलें ही हैं . इनका कहना है की जो व्यक्ति अपने क्षेत्र से स्वयं चुनाव हार गया उसे प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया और अवसरवादी विधायक को सी अल पी लीडर.