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क्या इत्तेफ़ाक़ था जब हेमवती नंदन बहुगुणा और राजेश खन्ना ८१ लोधी एस्टेट बंगले में रहे !

इसे इत्तेफ़ाक़ नहीं तो और क्या कहेंगे. कभी कभी प्राकृतिक तौर पर जीवन में ऐसे इत्तेफ़ाक़ हो जाते हैं की बाद में ये ख्याल आता है की ये कमाल कैसे हो गया. मेरा पूर्व केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणाजी के साथ करीबी का रिश्ता रहा. मैं जब १९८०- ८१ में मोतीलाल नेहरू कालेज का अध्यक्ष था , और उस से पहले केंद्रीय पॉर्षद तब से बहुगुणाजी के सानिध्य में रहा . वे १९८९ में ह्यूस्टन, अमेरिका में हार्ट सर्जेरी के दौरान दिवंगत हुए. मेरा उनके साथ करीब दस वर्षो का साथ रहा जब में पहले स्टूडेंट्स फार डेमोक्रेसी और बाद में युथ फार डेमोक्रेसी का अध्यक्ष रहा. दिल्ली प्रदेश डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट पार्टी का महामंत्री भी रहा .

और साथ साथ पत्रकारिता से भी जुड़ा रहा बतौर विश्वमानव के विशेष संवाददाता , नूतन सवेरा में और अन्य अखबारों में भी लिखता रहा. बहुगुणा जी के जाने के बाद के बाद जीवन में एक अजीबोगरीब शून्यता रही . उनकी मौत के बाद उनका सारा परिवार कांग्रेस की शरण में चला गया. कहते हैं इस संसार से विदा होने से पहले संसार बहुगुनाजी ने ही उन्हें ये सलाह दी थी . लेकिन देश भर में फैले उनके हार्ड कोर समर्थक बिखर गए , उनके अपने टूट गए , जिनमे से एक मैं भी था.

खैर , फ़िल्मी दुनिया के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना जिनका मई ( me) जबरदस्त फेन था , से मेरा रिश्ता बना १९९१ में , ठीक उस दिन जब उनका नयी दिल्ली से कांग्रेस पार्लियामेंट्री टिकट फाइनल हुआ. अशोका होटल के सुईट में मेरी एक रात पहले लम्बी बात हुई और काकाजी ने मुझे उनका मीडिया देखने और उनके साथ जुड़ने को कहा सम्भवता मेरी बातों से प्रभावित होकर. उसके बाद उनका मीडिया देखने लगा और निरंतर उनके सांसद बनने तक और बाद तक भी उनसे जुड़ा रहा . जबकि पत्रकारिता का दौर भी जारी रहा.

खैर मुद्दे की बात ये है की जब भाजपा के प्रत्याशी एक्टर टर्न्ड पॉलिटिशियन शत्रुघ्न सिन्हा को लगभग २९००० वोटों से हराने के बाद राजेश खन्ना सांसद बने तो उन्हें भी वही सरकारी बांग्ला आवंटित हुआ जहां , कुछ वर्ष पूर्व मेरे राजनैतिक गुरु हेमवती नंदन रहते थे , जिनके परिवार यानि उनकी पत्नी कमला बहुगुणा, विजय बहुगुणा शेखर बहुगुणा रीता बहुगुणा जोशी साकेत बहुगुणा को मिलाने उनके बाद के घर २१/ ९३ में काका के साथ गया था . काका को मिलकर पूरा परिवार बेहद रोमांचित था . तब काका चुनाव के दौरान उनसे समर्थन की गुहार करने गए थे ताकि उत्तराखंड के मतों में उनका प्रभाव हो सके और उत्तराखंड समाज काका को समर्थन करे.

मैं फिर वापस ८१ लोधी एस्टेट लौट रहा हूँ . ये १९८४ की बात है जब बहुगुणाजी इलहाबाद से अमिताभ बच्चन के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे थे . बच्चन कांग्रेस के प्रत्याशी थे . बहुगुणा गढ़वाल से इलाहाबाद लौट आये थे . तब राजेश खन्ना सक्रीय राजनीत में नहीं थे , उनका राजनीती से दूर दूर का कोई रिश्ता नहीं था. ये तो सभी जानते हैं की तब राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन का ३६ का आंकड़ा था. अलाहाबाद में अमिताभ बच्चन का जबरदस्त क्रेज़ था.

यूँ कहिये की लोग बच्चन के लिए पागल थे. लेकिन हिम्मत और साहस की प्रतिमूर्ति बहुगुणा पूरी शक्ति और हिम्मत के साथ चुनाव लड़ रहे थे . हालांकि जिस दिन अमिताभ ने एक सभा के दौरान बहुगुनाजी को अचानक मिल कर उनके पैर चुवे और आशीर्वाद मॉंगा तो विशाल ह्रदय इस नेता ने उन्हें जीत का आशीर्वाद दे दिया जो अगले दिन अखबारों की सुर्खियां बन गयी. बहुगुणाजी समझ गए की वे चुनाव हार गए और हुवा भी ऐसा ही . बहुगुणा एक राजनैतिक नौसिखिया से १८७००० वोटों से पराजित हो गए थे .

इसी दिन से दरअसल उनका राजनैतिक डाऊनफॉल शुरू हुआ था. एक बहुत ही दिलचस्प किस्सा है इलाहबाद के इस चुनाव से कुछ दिन पहले ८१ एस्टेट के बंगले के लौन का .

मैं और बहुगुणाजी , एक पेड़ के नीचे बैठे थे जहाँ कुछ देर बाद टीहरी गढ़वाल के संसद त्रेपन सिंह भी आ गए. सभी बातों में मशगूल थे तभी उनके घर के ऑफिस वाले कमरे से उनके निजी सचिव रेहमान साहब दौड़ते हुए आये की साहब लाइन पर खन्नाजी हैं. बहुगुणा जी ने पुछा कौन खन्ना . तो उत्साहित रेहमान ने कहा एक्टर राजेश खन्ना. बहुगुनाजी मुस्कुराते हुए गए और हाथ में फ़ोन लिए रेहमान ने उन्हें थमाया. मुझे आज भी याद है बहुगुणाजी के शब्द : बरखुरदार कैसे हैं आप ? बहुगुणाजी और राजेश खन्ना की कुछ देर हुई बातचीत, जिसका लब्बोलुआब मैंने ये लगाया की बहुगुणा राजेश खन्ना से समर्थन की तो गुहार कर रहे थे, उन्हें ये भी समझा रहे थे की तुम कैसे मित्र हो की दोस्त और दुसमन में फ़र्क़ नहीं समझते. उनका मतलब था की राजेश खन्ना उनकी मदद करें अमिताभ बच्चन के खिलाफ .

बातचीत से साफ़ झलक रहा था की बहुगुणा चाहते थे की काका उनकी इलहाबासद चुनाव में आएं और उनके लिए केम्पेन करें आदि. दरअसल उन दिनों ट्रंक कॉल आसानी से नहीं मिलती थी . और राजेश खन्ना का फ़ोन कॉफी देर बाद मिला था. खैर तब नॉन पोलिटिकल काका नहीं आये बहुगुणा जी के समर्थन में. ( ऐसा लगता है)

इस किस्से का मतलब है की कितनी अजीब बात है की जिस बंगले से बहुगुणाजी १९८४ में काका से फ़ोन पर बात की इलाहबाद चुनाव के सिलसिले में क्या काका ने कभी सोचा होगा की वह उसी नयी दिल्ली से सांसद बनकर इसी कोठी में आएंगे एक दिन, नौ साल बाद और वही सुनील नेगी जो बहुगुणाजी के साथ करीब रहा वह उनके साथ होने का प्रिविलेज लेगा. जीवन की कुछ घटनाएं वास्तव में इत्तेफ़ाक़ होती हैं. यकीन मानिये इस इत्तेफ़ाक़ को मैंने कई दिन बाद रियलाइज़ किया. दरअसल दो शख्सियतों के साथ का यादगार सफर एक ही बंगले में ८१ लोधी एस्टेट में निसंदेह एक न मिटने वाली यादगार बनकर रह गयी. राजेश खन्ना के बाद ये बांग्ला प्रमोद महाजन जी को आवंटित हुआ और ये तीनो ही शख्सियत आज हमारे बीच नहीं रहीं .

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5 Comments

  1. सुनील जी अपने समय की चोटी की हस्तियों में शरीक श्री बहुगुणा जी और राजेश खन्ना जी के साथ आपका जुड़े रहना अपने आप मे एक उपलब्धी है.
    आपको इसके लिए साधुवाद.

    1. Bahut bahut abhar bhai ji. You have always been a true cooperative and adorable friend blessing me always.
      Thanks n grateful.
      Profound regards

  2. काका काकू का सा संबंध था राजेश जी व बहुगुणा जी में। और श्री सौनिल जी ने इन महानुभावों के सानिध्य मे रहकर पत्रकारिता के सभी पायदान पर सराहनीय कार्य किया है।

    1. Bahut bahut abhar bhai ji. You have always been a true cooperative and adorable friend blessing me always.

      Sunil Negi
      Thanks n grateful.
      Profound regards

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