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Uttrakhand

“कौन याद करता है , हिचकियाँ समझती हैं

-राजीव नयन बहुगुणा

आज वीर सैनिक चन्द्र सिंह गढवाळी के प्रसंग में मुझे गढ़वाल के सैन्य जीवन से जुड़ा एक प्रसंग याद हो आया । मेरी ऐसी शालीन पोस्ट बहुत कम लोग पढ़ते हैं । फिर भी … जो नहीं पढ़ते उनका फूटा कपार । मुझे यह याद नही कि यह प्रसंग मैने कब और कहां पढा , पर हॉइ सच्चा ।
1946 के आस पास लैंसडाउन छावनी के एक कर्नल ने राठ गढ़वाल के सुदूर क्षेत्र में अपने रिटायर सैनिकों का हाल चाल लेने को गांवों का दौरा बनाया । अंग्रेज़ अपने सैनिकों का सेवा के उपरांत भी ध्यान रखते थे ।
नियत तिथि एवं समय पर कर्नल साहब बहादुर अपने घोड़े पर सवार हो पदतियों के लश्कर समेत राठ के अमुक गांव पँहुचा । साहब के लिए 6 मील दूर
पटवारी चौकी से एक लकड़ी की कुर्सी मंगवा ली गयी थी । मिट्टी के तेल का खाली कनस्तर उल्टा कर उसे मेज़ की शक्ल दे दी गयी , और साहब को काफल , चूलु आदि वन फल परोसे गए । उनकी बैठक , उन्हीं की इच्छा के अनुरूप रिटायर सूबेदार मेघ सिंह बुटोला के खलिहान में रखी गयी थी । कर्नल बहादुर ने बुटोला से कोई परेशानी पूछी , तो सूबेदार ने इच्छा जताई कि उनके पुत्र और भतीजे को भी सेना में अवसर दिया जाए । पांच पास करने के बाद घर में आवारा हुए जाते हैं.
दोनो जवान पट्ठे वहीं मौजूद थे । कर्नल ने अपने साथ आये लेफ्टिनेंट को इंगित किया । जूनियर अफसर ने मौके पर ही फीता लगा कर उनकी नाप जोख की । एक की उम्र कुछ माह कम बैठ रही थी , पर सब ok कर दोनों को तत्काल भर्ती कर लिया गया ।
दो साल बाद जब भारत विभाजन के उपरांत भारत – पाक में झड़प हो गयी , तो ये दोनों जवान पुंछ के एक पहाड़ी इलाके में सीमा पर तैनात थे । एक रोज़ सुबह की गश्त के वक्त दोनो ने तार बाड़ के उस पार पके हुए लाल आड़ू देखे । अपना गांव याद हो आया । अल्हड़ तो थे ही । आनन फानन बाड़ फांदी और पेड़ पर चढ़ आड़ू से खीसे भरते ही थे कि पाक रेंजर्स ने आ दबोचा । यह पाक का इलाका था । दोनो को गोली से उड़ाने हेतु पाक रेंजर्स उन्हें अपने मेजर के पास ले गए । मेजर ने गौर से उनका चेहरा देख नाम , गांव का नाम और बाप का नाम पूछा । फिर अपने सिपाहियों को वापस फिरने का हुक्म दिया । उन दोनों छोकरों को उसी तार बाढ़ तक ले गया और हुक्म दिया , जैसे बाड़ फांद कर आये थे , वैसे ही वापस जाओ ।साथ ही चेतावनी दी , आईन्दा यह गलती मत करना ।
जब छोकरे बाड़ टाप रहे थे , तो मेजर गढवाळी में बुदबुदाया – मरला माचू तुम । ( मरोगे माचो… तुम ) । यह वही मेजर था , जिसने 3 साल पूर्व लेफ्टिनेंट रहते हुए उन्हें उनके गांव में भर्ती किया था । लाहौर का मुस्लिम होने की वजह से बंटवारे के बाद पाक सेना का अंग बन गया था ।”
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